88 हज़ार बकाया था बिजली कंपनी का, कंपनी ने कर ली थी बाइक, मोटर और चक्की जब्त, खुद को अपमानित महसूस कर दी अपनी जान ।
छतरपुर / इंडियामिक्स न्यूज़ जिले के मातगुवां गाँव के मुनेंद्र (35) ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली । मुनेंद्र ने ये कदम अपनी खस्ता हालत से परेशान होकर उठाया , मुनेंद्र पर बिजली कंपनी के 88 हज़ार का बकाया था । जिसे वो अदा नही कर पा रहा था । बिजली कंपनी ने कई नोटिस के बाद जब बकाया जमा नही हो पाया तो वसूली की कार्यवाही शुरू की और एक दिन पहले ही इस युवा किसान की मोटर, बाइक और चक्की जब्त की थी । इसके बाद से ही मुनेंद्र खुद को अपमानित महसूस कर रहा था जिसके फलस्वरूप उसने आत्महत्या कर ली ।
आत्महत्या के पहले उसने सूइसाइड नोट लिखा था जो मौके पर पाया भी गया इस को पढकर इस देश के छोटे किसानों की हालत समझी जा सकती है । उसने नोट में लिखा कि :
मेरी पत्नी और 3 पुत्रियां और एक पुत्र है । मेरे मरने के बाद मेरा शरीर शासन को दे दिया जाए और शासन मेरे शरीर के एक एक अंग बेचकर मेरा कर्ज़ चुका सके । और मीडिया से भी शिकायत के रूप अनुरोध किया की वो सरकार की अच्छाइयां तो बहुत दिखाती है मुझ गरीब का इस चिट्ठी भी दिखाए ।
उसने आगे कहा कि कर्ज़ न चुकाने के कारण में उसकी भैंसे चोरी हो जाना, असाढ़ में फसलों से कुछ न मिलना और लॉक डाउन में कुछ काम न मिलना और फिर चक्की न चला इन्ही कारणों की वजह से इतना बकाया हुआ ।
इससे उसकी हालत समझी जा सकती थी । सरकार के लॉकडाउन में लोगो को रियायत देने के बड़े बड़े वादों की कलाई खोलता ये हादसा हमे समाज की एक अलग तस्वीर दिखाता है जहाँ शासन की योजनाएं सिर्फ कागज़ी बनकर हवा में उड़ती दिखाई देती है । हज़ारो लोग लॉक डाउन से दौर में भी अपने लोन की क़िस्त जाम करने की मजदूरी को ज़हर के घूंट समझकर पीने को मजबुर हुए । और जिन्होंने जमा नही की उनसे भी ब्याज की वसूली की गई । सरकार तब भी तमाशा देख रही थी । उसे अपनी योजनाओं की घोषणा करने भर से ही इतना विश्वास हो गया था कि बस अब हर व्यक्ति को उसने राहत दे दी है । धरातल पर अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने का समय शायद उनके पास नही रहा होगा ।
खैर इसी जद्दोजहद में एक किसान अपनी जान से चला गया । जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया जारी रहेगी मगर शायद कोई जिम्मेदार निकल भी आये तो उससे होगा क्या ? क्या उस किसान के परिवार का दर्द कम किया जा सकेगा ?
जबकि मुनेंद्र अपने सामर्थ अनुसार 10 से 15 हज़ार रु जमा करने को राजी हो चुका था । लेकिन सरकार/कंपनी कोई व्यक्ति नही है जिसमे दया या करुणा की गुंजाइश हो वो तो विधान से कार्य करती है और करती रहेगी ।
अब शासन कह रहा है जांच की जा रही है और जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही की जाएगी । अब हर कर्मचारी अपना कार्य ही तो कर रहा था उसने मुनेंद्र को नही मारा और न ही उसने इसको लेकर मुनेंद्र को उकसाया । मुनेंद्र तो आपकी और हमारी लचर व्यवस्था की भेंट चढ़ गया । शासन की घोषणाएं और क्रियान्वयन में जब तक इतना अंतर रहेगा ऐसे ही मुनेंद्र अपनी जान देते रहेंगे ।