जनता कर्फ्यू के बाद से ही लॉक डाउन शुरू हुआ तब से आज अनलॉक की प्रक्रिया तक रतलाम में लगातार मामले बढ़ते जा रहे है । रतलाम में दिनबदिन बढ़ रहे संक्रमण का जिम्मेदार कौन ?
रतलाम / इंडियामिक्स न्यूज़ रतलाम जिले में लगातार कोरोना संक्रमण के मामलों में वृद्धि होती जा रही है । एक, दो लोगो से शुरू हुए ये मामले अब 28 प्रतिदिन ( 13 अगस्त 2020 ) तक पहुच गए है , जबकि अब तक कोरोना संक्रमण से 579 लोग प्रभावित हो चुके है । मौसम को देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाले वक्त में ये आंकड़ा बढ़ता हुआ ही लग रहा है क्योंकि ये मौसम सामान्य रूप से भी सर्दी और संक्रमण का ही है और बारिश के बाद सर्दियां शुरू होने वाली है । ऐसे में मामलो में वृद्धि होना कोई आश्चर्य की बात नही होगी .
अब ये सवाल उठता है कि आखिर क्यों रतलाम जैसे छोटे शहरों और ग्रामीण अंचलों में ये संक्रमण लगातार बढ़ रहा है । इसका जिम्मेदार कौन है ? क्या जिला प्रशासन इसके लिए जिम्मेदार है ? क्या इसके लिए नगर निगम जैसी संस्थायें और उनकी सफाई व्यवस्था जिम्मेदार है ? या वो लोग जिम्मेदार है जो प्रदेश में सरकार में बैठे है या देश मे शासन कर रहे है ? या फिर इसके लिए जनता और उसकी बेफिक्री जिम्मेदार है ?
आखिर में इसके लिए कौन है जिम्मेदार ?
जब चीन मे कोरोना का संक्रमण शुरू हुआ तब तक रतलाम के लोगो के लिए ये बीमारी एक चर्चा का विषय थी कि इसमें ऐसा वैसा होता है इसके ऐसे लक्षण है , इसे बनाया गया है चीन द्वारा या ये लेब में कुछ गलती का नतीजा है । इसे लेकर हर चौराहे और हर मंच पर चर्चाएं होती थी, मगर तब तक किसी ने आज के रतलाम की कल्पना नही की थी जहां 579 लोग संक्रमित हो चुके है और ये आंकड़ा रोज़ लगभग 12 से 15 लोगो की गति से बढ़ता ही जा रहा है । खैर मुद्दे पे आते है फिर संक्रमण के मामले देश मे आना शुरू हुए तब तक रतलाम के लोगो की सोच इसे लेकर कुछ बदली और वो अब इसे लेकर सोचने लगे थे ।
लेकिन उन्हें विश्वास था कि सरकार कही न कही जो बाहर से आ रहे लोग है उन्हें ट्रेस कर उनको उचित चिकित्सा दे कर उन्हें ठीक कर देगी और ये सिर्फ कुछ दिन चलेगा फिर हालात सामान्य हो जायेगे । तब तक किसी को इसके खतरे का अंदाज़ा नही था । लेकिन जब मामले लगातार बढ़ने लगे और शहर में पहला मामला सामने आया तो प्रशासन के हाथ पांव फूल गए और आनन फानन में एक मरीज के संक्रमित होने पर 1 से 1.5 KM तक के एरिया को कन्टेन्टमेंट एरिया बना कर वहा आस पास के एरिया में जबरदस्त सख्ती कर दी गयी । अब वो जनता जो कोरोना को लेकर अभी तक बेफिक्री थी उसे एक बड़ा झटका लगता है क्योंकि जिसे वो हल्के में ले रहे थे वो संक्रमण जब शहर में आ चूका था और उसे लेकर जिला प्रशासन ने जो सख्ती दिखाई उसकी उम्मीद लोगो को नही थी ।
अब लोगो के मन मे रातोरात एक बड़ा डर घर कर चुका था । ये डर दिन ब दिन अपनी जड़ें जमा रहा था । लोगो को आमदनी, काम धंधे की चिंता हो रही थी और इस कोरोना संक्रमण जैसे अदृश्य दुश्मन का डर जहन में घर कर चुका था । अब इस कोरोना संक्रमण को लेकर लोगो की मानसिकता बदली… बदली नही बल्कि बहुत ज्यादा बदल चुकी थी क्योंकि कुछ महीनों पहले वो जिसे हल्के में लेकर मज़ाक करते थे वो आज उनके शहर को एकदम ठप कर चुका था । इस संक्रमण से बचाव को लेकर प्रचार प्रसार शुरू हुआ तो लोगो मे इसका डर और बढ़ा क्योंकि ये तो लोगो को छुआछूत जैसी बीमारी लगी और इसमें सामाजिक दूरी भी बचाव का उपाय बताया गया । अब रतलाम जैसे शहर के लोगो के लिये ये अपनी पूरी जीवन शैली बदलने जैसा था क्योंकि यहां तो लोग एक की दो चाय करके पीने के शौकीन है । अब डर और बढ़ा तो लोगो ने आपस मे ही दूरियां बनाना शुरू कर दी, हर छिक या खांसी लोगो को अब डरा रही थी ।
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए प्रशासन के लिए लोगो का ये डर बड़े काम आया क्योंकि लोग खुद ही इतने संवेदनशील हो गए थे कि प्रशासन को उन्हें समझाने में ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ी । शहर में अब ये संवेदनशीलता बहुत काम आ रही थी, पूरे लॉक डाउन 1 में ये बहुत सटीक तरीके से काम कर रहा था । प्रशासन इसे अपनी उपलब्धि मान रहा था जनता इसे खुद को सुरक्षित करने के तरीके के तौर पर ले रही थी । जो भी हो शहर में सख्ती से ये संक्रमण काबू में था । जिले की सीमाएं बंद थी तो बाहर से भी संक्रमण की संभावनाएं नही थी । सब कुछ ठीक चल रहा था ।
कहाँ हुई चूक कैसे और क्या हुआ फिर
लापरवाही का सिलसिला शुरू होता है जिला पुलिस और प्रशासन से, इंदौर से लॉक डाउन में और जिले की सीमा सील होने के बाद भी एक मरीज जो रतलाम निवासी होकर इंदौर में चिकित्सरत था उसकी मृत्यु हो जाती है और उसके परिजन उसकी डेड बॉडी को रतलाम लाकर दफना देते है । तब प्रशासन को पता चलता है कि मृतक की कोरोना की जांच की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है ये खबर उन्हें इंदौर से पता चलती है । आनन फानन में प्रशासन मृतक के परिजनों और करीबियों को कोरनटाईन कर देता है और कुछ लोगो के खिलाफ केस रजिस्टर कर देता है । जनता में प्रशासन की इस बड़ी चूक को लेकर बहुत गुस्सा और निराशा थी । क्योंकि जिस कोरोना संक्रमण को लेकर जनता खुद इतनी संवेदनशील हो चुकी थी उसी संक्रमण को लेकर प्रशासन इतनी बड़ी चूक कर चुका था । अब जिले में इसके बाद मरीजो का आंकड़ा बढ़ता ही गया और लोगो मे इसको लेकर डर थोड़ा कम होने लगा ।
फिर हालात लगातार बिगड़ने लगे लगातार संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी और लॉक डाउन 1 से शुरू हुआ सिलसिला लॉक डाउन 3 से होते हुए अनलॉक 1 से दो पर पहुच गया । इस बीच केंद्र और राज्य सरकार की गाइडलाइन पर जिला प्रशासन ने समय समय पर लॉकडाउन 1 की पाबंदियों को कम कर हालात को सामान्य करने की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू किया । लेकिन इस दौर में लोगो को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा और मजदूर वर्ग के लोगो को खाने की दिक्कतें आने लगी जिसका समाधान भी सरकारों के निर्देश पर जिला प्रशासन द्वारा निरंतर करने का प्रयास हुआ लेकिन कोई भी इसका 100% समाधान नही कर सकता था क्योंकि कुछ लोगो को प्रशासन या सामाजिक संस्थाओं द्वारा खाना लेने में कोई आपत्ति नही थी मगर कुछ लोग अपने सामाजिक मान सम्मान और स्वाभिमान के लिए संघर्ष करते नज़र आये और उन्होंने खाना नहीं लिया ।
उन्होंने कर्ज़ लेकर काम चलाया । लोगो को रोजगार से संबंधित परेशानियां आने लगी रोज़ मजदूरी करके खाने वालों की दिक्कते कम नही हुई उन्हें खाने को खाना तो मिल रहा था प्रशासन की मदद से मगर इंसानी जरूरते खाने के अलावा भी कुछ होती है । कई जगह काला बाज़ारी की खबरे भी चर्चा का विषय रही । कई माध्यम वर्गीय लोगो की नौकरियों पर इस संक्रमण की गाज गिरी , उन्हें उनके मालिको ने 2 से 4 महीनों तक स्थाई रूप से नौकरियों से निकल दिया या उनका वेतन 25 से 50 प्रतिशत ही दिया जिससे उनके हालात भी खराब हो गए ।
कई जगह तो लोगो को वेतन नही मिलने या काम बंद होने की खबरे भी आती रही । देश के प्रधानमंत्री के आह्वान के बावजूद भी लोगो ने उनकी बातों को अपनी सोहलियत के हिसाब से मानी । कुछ लोगो ने अनैतिक तरीके से इस विपरीत परिस्थितियों में भी अपने किराएदारों से किराया लिया मगर कुछ लोगो का तो घर ही किराए से चलता था, उन्हें तो किराया लेना ही था । वेतन न मिलना या कम देने या किराए के लिए दबाव की स्थितियों में लोगो ने प्रशासन से इसकी शिकायत करने की कोशिश नही की क्योंकि उनका कहता था ये अस्थाई परिस्थिति है कुछ महिनो में ठीक हो जाएगी ऐसी स्थिति में अपने मालिको की शिकायत भविष्य में हमारी दिक्कतें और बढ़ा देगी ।
इस बीच नये मरीजो का आना और ठीक होना लगातार चलता रहा है । धीरे धीरे सबको आदत सी होने लगी जीवन भी धीरे धीरे अपनी गति पकड़ने लगा । मगर कहते है कुछ भी बर्बाद होने में ज्यादा समय नही लगता मगर उसे फिर से बनाने में बहुत समय लगता है ।
लोगो मे लापरवाही बढ़ी तभी संक्रमितों की संख्या भी बढ़ी
लॉक डाउन 1 से कठोर नियम अब उनकी अनदेखी लोगो के लिए सामान्य सी हो रही थी और लोगो मे कोरोना का डर उड़ सा गया था । पहले लोगो के जहन में जो डर था अब एकदम से उसकी जगह लापरवाही ने ले ली थी । लगता है लोग सामान्य होना नही चाहते है, जब तक कि हालात सामान्य न हो जाये । ऐसा नही है कि स्थितियां एकदम से ऐसी हुई हो, कुछ तो लोगो ने भी देखा होगा तभी तो लोग सामाजिक दूरी, मास्क और सेनेटाइजर को अब फॉर्मेलिटी समझने लगे है । तो अब सवाल ये की ऐसा क्या हुआ कि जो लोग लॉक डाउन 1 में अतिसंवेदनशील थे वो लोग अनलॉक 2 तक आते आते बिल्कुल ही लापरवाह हो गए ।
किसी ने कहा है बदलाव यू ही नही आता उसे भी कारण, कर्ता और समय चाहिए होता है । हुआ यूं कि जिस गति से लोग संक्रमित हुए उससे तेज़ गति से लोगो स्वस्थ होकर घर आ रहे थे , ये सब देखने और होने में सुखद है मगर इसने मन में एक ऐसी आशंका को जन्म दे गया कि लोग इस बीमारी पर और इसकी गंभीरता पर अब संदेह करने लगे थे । जो बीमारी पहले उनके लिए भयावह थी वही आज उसकी भयानकता को मज़ाक में ले रहे थे । सामाजिक दूरी बाजार के खुलने से और चरमरा गई, मास्क अब लोगो ने कोरोना के लिए या उसकी गाइड लाइन के लिए नही पहना था बल्कि लोगो के लिए मास्क प्रशासन के सामने घर से निकलने का लाइसेन्स बन चुका था । जिसका कोरोना नामक़ बीमारी से कोई लेना देना नही रह गया था ।
अब प्रशासन के नियम पर लोग सवाल पूछ रहे थे कि कोरोना सिर्फ रविवार को ही लोगो को संक्रमित करता है बाकी दिन वो इतना प्रभावशाली नही रहता । कोरोना रात को एक्टिव हो जाता है 10 बजे के बाद आदि बाते लोगो को और लापरवाह बनाती जा रही है । लोग अब मानसिक रूप से ऐसे नियमो को नहीं मानना चाहते है जिनका पालन करते हुए भी संक्रमितो का आकडा बढता ही रहे । लोगो का कहना है की अगर लोगो को रोज़गार की दिक्कते कम नहीं हुई तो देश को कोरोना से ज्यादा नुक्सान उठाना पड सकता है । लेकिन प्रशासन तो अपना काम करना ही पड़ता है क्युकी उसे हर विचार/सोच वाले व्यक्ति की सुरक्षा भी सुनिश्चित करना होती है ।
इस बिच त्योहारों का समय भी आया और लोगो को सब त्योहारों को घर पर ही मनाना पड़ा, बच्चो के स्कूल, कॉलेज और खेल के मैदान बंद है । ऑनलाइन क्लास ली जा रही है, कही फीस का मुद्दा तो कही ठीक से पढाई न होने का दुःख बच्चो के लिए भी ये वक़्त याद रखने योग्य है । सिनेमा हॉल बंद, जीम बंद, हर वो जगह जहाँ भीड़ आसानी से इकट्टा हो सकती है वो हर जगह अभी तक बंद ही है । जल्द ही प्रशासन इसे भी खोलने की कोशिश में लगा है ।
प्रशासन और उसके लोग भी अब थक रहे है क्योंकि लगातार पिछले 4 महीनों से इसी संक्रमण को नियंत्रित करने हेतु जिला प्रशासन के लिए काम कर रहे थे । लाख कोशिश के बाद भी इसे नियंत्रित नही किया जा सका है बल्कि इसकी संख्याओं में लगातार वृद्धि चिंताजनक भी है और प्रशासन का मनोबल कम करने वाली है । एक संक्रमित के लिए 1 km के कन्टेन्टमेंट एरिया से 3 घरों तक कन्टेन्टमेंट एरिया बनने तक कि कहानी बहुत ही रोचक है । पहले होटल/मैरिज गर्दन/स्कूल/लाज/ से अपने घर की खोली तक संक्रमितों का सफर इस शहर को और लोगो को सदा याद रहेगा ।
डिस्क्लेमर / अस्वीकार : उपरोक्त लेख में लेखक के निजी विचार उनके स्वयं के अनुभव के आधार पर है । इससे इंडियामिक्स न्यूज़ सहमत हो ये आवश्यक नही है ।