
न्यूज़ डेस्क/इंडियामिक्स उत्तर प्रदेश की सियासत में 2027 का विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही समीकरण बदल रहे हैं। मायावती, जो लंबे समय से दलित वोट बैंक की धुरी रही हैं, अब मुस्लिम वोटों को साधने की रणनीति पर काम कर रही हैं। दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी (सपा) के कद्दावर नेता आजम खान के बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के करीब आने की चर्चाएं तेज हैं। यह घटनाक्रम सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए सियासी चुनौती बन सकता है, क्योंकि उनकी पार्टी का आधार मुस्लिम और यादव वोटरों पर टिका है।
मायावती ने 2024 के लोकसभा चुनावों में बसपा की कमजोर स्थिति को देखते हुए अपनी रणनीति बदली है। उनकी पार्टी, जो कभी दलितों की एकमात्र आवाज थी, अब केवल एक विधायक तक सिमट गई है। ऐसे में, मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए मायावती पुराने गठजोड़ को फिर से तलाश रही हैं। आजम खान, जो सपा के वरिष्ठ नेता और मुस्लिम चेहरा रहे हैं, के बसपा के करीब आने की खबरें इस दिशा में एक बड़ा संकेत हैं। आजम और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम की सपा से दूरी और नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के साथ उनकी मुलाकातें सियासी हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
आजम खान का बसपा की ओर झुकाव अखिलेश के लिए कई मोर्चों पर खतरा पैदा कर सकता है। सपा का मुस्लिम वोट बैंक, जो लगभग 20ः है, उसकी एकजुटता अखिलेश की ताकत रही है। लेकिन आजम जैसे प्रभावशाली नेता का साथ छूटना पश्चिमी यूपी की सीटों पर सपा के लिए नुकसानदेह हो सकता है, जहां मुस्लिम और दलित वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। रामपुर और मुरादाबाद जैसे क्षेत्रों में आजम का प्रभाव अभी भी कायम है, और अगर वे बसपा के साथ जाते हैं, तो यह मायावती को मुस्लिम-दलित गठजोड़ बनाने में मदद कर सकता है।
अखिलेश यादव ने 2024 में अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के दम पर बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। लेकिन उपचुनावों में सपा की हार ने संकेत दिया कि मुस्लिम वोटों में सेंध लग सकती है। मायावती का मुस्लिम वोटरों पर फोकस और आजम खान का संभावित समर्थन सपा के इस कोर वोट बैंक को कमजोर कर सकता है। इसके अलावा, मायावती की ओर से सपा पर दलित और मुस्लिम वोटरों को गुमराह करने के आरोप सियासी तनाव को और बढ़ा रहे हैं।
दूसरी ओर, अखिलेश इस चुनौती का जवाब देने के लिए दलित और ओबीसी नेताओं को सपा में शामिल कर रहे हैं। लेकिन अगर आजम खान बसपा के साथ चले गए, तो अखिलेश को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा। 2027 का चुनाव यूपी की सियासत का नया अध्याय लिखेगा, जहां मायावती और अखिलेश की रणनीतियां एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रही हैं।
वैसे बसपा सुप्रीमो मायावती और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी के बीच गठजोड़ की सुगबुगाहट भी तेज चल रही है। दोनों का मकसद दलित और मुस्लिम वोटों को एकजुट कर भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन को टक्कर देना है। मायावती का दलित समुदाय पर मजबूत आधार है, जबकि ओवैसी मुस्लिम समुदाय में गहरी पैठ रखते हैं। यह गठजोड़ पिछड़ा, दलित, मुस्लिम (पीडीएम) के तहत पश्चिमी यूपी और बिहार में खासा प्रभावी हो सकता है।
हालांकि, यह राह आसान नहीं होगी। 2019 में मायावती ने ओवैसी पर मुस्लिम नेतृत्व को अछूत मानने का आरोप लगाया था। वहीं, ओवैसी ने कट्टरता फैलाने का दोषी ठहराया था। फिर भी, बदलते राजनीतिक माहौल में दोनों नेताओं को एकजुट होने का मौका दिख रहा है। यदि यह गठबंधन बनता है, तो यह यूपी की सियासत में भूचाल ला सकता है। यह सेक्युलर वोटों को बांट सकता है, जिससे भाजपा को अप्रत्यक्ष लाभ भी मिल सकता है।