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INDIAMIX > राजनीति > राजनीति: नीतीश की नई सरकार में जेडीयू-बीजेपी की बराबरी साझेदारी
राजनीतिराज्य

राजनीति: नीतीश की नई सरकार में जेडीयू-बीजेपी की बराबरी साझेदारी

अजय कुमार
Last updated: 17/11/2025 11:05 PM
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अजय कुमार
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8 Min Read
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JDU-BJP equal partnership in Nitish's new government

राजनीति/इंडियामिक्स बिहार की राजनीति में यह वह क्षण है, जब सत्ता के गलियारे नए समीकरणों से भरे हुए हैं और गठबंधन की राजनीति अपने सबसे निर्णायक मोड़ पर खड़ी दिखाई देती है। विधानसभा चुनावों में एनडीए की जीत ने महागठबंधन को भारी झटका दिया है, लेकिन उससे भी बड़ा संदेश यह है कि इस बार जो राजनीतिक परिदृश्य बना है, वह पिछले दो दशकों की तुलना में एकदम अलग और बिल्कुल नई बुनियाद पर टिकने वाला मॉडल तैयार कर रहा है। पटना के गांधी मैदान में 20 नवंबर को होने वाला शपथ ग्रहण सिर्फ सरकार गठन का औपचारिक कार्यक्रम नहीं होगा, बल्कि यह उस नए सत्ता-संतुलन की शुरुआत होगी, जिसमें जेडीयू और बीजेपी को पहली बार वास्तविक बराबरी वाली स्थिति में देखा जा रहा है। इस बार की चुनावी जंग में एनडीए ने सीट बंटवारे का जो फार्मूला अपनाया था, उसने राजनीति के पुराने मापदंडों को बदल दिया। जेडीयू और बीजेपी दोनों ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा और नतीजों ने इस बराबरी के प्रयोग को सियासी तौर पर मजबूती प्रदान की है। दोनों दलों के बीच केवल चार सीटों का अंतर होना इस बात का संकेत है कि सियासत का पलड़ा अब किसी एक तरफ़ भारी नहीं है। यही वजह है कि इस बार की सरकार में मंत्रिमंडल का हिस्सा भी उसी बराबरी वाले फार्मूले पर टिक सकता है।

यह स्थिति 2020 से बिल्कुल उलट है। 2020 में बीजेपी की 74 सीटें थीं और जेडीयू की महज 43, जिसके कारण 12-22 वाला मंत्रिमंडलीय बंटवारा बना था। तब बीजेपी का राजनीतिक कद जेडीयू से ज्यादा दिख रहा था, लेकिन इस बार नतीजों ने गठबंधन के भीतर की शक्ति-संरचना को पूरी तरह संतुलित कर दिया है। 2025 में एनडीए के कुल 202 विधायक हैं जिसमें बीजेपी के 89, जेडीयू के 85, एलजेपी (रामविलास) के 19, हम के 5, और आरएलएम के 4 विधायक शामिल हैं। इन आँकड़ों की रोशनी में यह स्पष्ट है कि नये मंत्रिमंडल के गठन में पुराने फार्मूले का दोहराया जाना लगभग असंभव है।राजनीतिक समीकरणों की गणना से यह बात भी सामने आ रही है कि गठबंधन इस बार 6 विधायक पर 1 मंत्री का फार्मूला अपना सकता है। अगर ऐसा हुआ तो जेडीयू और बीजेपी दोनों ही लगभग 15-16 मंत्री दे सकेंगे। साथ ही छोटे दलों चिराग पासवान की पार्टी, मांझी की हम और कुशवाहा की आरएलएम को भी उचित प्रतिनिधित्व देने के संकेत हैं। चिराग की पार्टी को 2-3 मंत्री, जबकि मांझी और कुशवाहा को 1-1 मंत्री मिलना संभावित माना जा रहा है। यह संयोजन दिखाता है कि एनडीए इस बार सिर्फ बड़ा दिखने की राजनीति नहीं, बल्कि सबको साथ लेकर चलने की संतुलित भूमिका अपनाना चाहता है।

डिप्टी सीएम का समीकरण भी इस बार बेहद दिलचस्प होगा। 2005 से लेकर 2024 तक बीस सालों में एक परंपरा बनी रही कि जब-जब जेडीयू और बीजेपी साथ हुए, बीजेपी के हिस्से में डिप्टी सीएम की कुर्सी गई। सुशील मोदी हों, तारकेश्वर प्रसाद या रेणु देवी हर दौर में यह कुर्सी बीजेपी ने ही संभाली। 2024 की शुरुआत में जब नीतीश दोबारा एनडीए में आए तो सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाया गया। अब सवाल यह है कि नए मंत्रिमंडल में बीजेपी को एक डिप्टी सीएम मिलेगा या दो? और क्या जेडीयू इस बार डिप्टी मुख्यमंत्री पद पर दावा पेश कर सकता है? हालाँकि संकेत यही हैं कि नीतीश कुमार गठबंधन की एकता बनाए रखने के लिए वही पुराना पैटर्न बरकरार रखेंगे और बीजेपी को ही डिप्टी सीएम का दायित्व मिलेगा, पर अंदरखाने मंथन लगातार जारी है।नीतीश कुमार की राजनीति हमेशा संतुलन, समझौता और स्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ने के कौशल पर आधारित रही है। इस बार भी वे उसी रास्ते पर चलते दिखाई दे रहे हैं। जेडीयू को बराबरी की हिस्सेदारी दिलवाकर वे न केवल जाति-आधारित समीकरणों को मजबूती दे रहे हैं, बल्कि यह संदेश भी भेज रहे हैं कि जेडीयू अब किसी भी स्थिति में जूनियर पार्टनर बनने के लिए तैयार नहीं। उनकी रणनीति यह दिखाती है कि वे 2020 की तरह का परिदृश्य नहीं दोहराना चाहते, जिसमें बीजेपी का पलड़ा भारी हो गया था और जेडीयू कमजोर स्थिति में चली गई थी।

बिहार का राजनीतिक परिदृश्य हमेशा से संख्या, जाति और गठबंधन की बारीकियों पर टिका रहा है। इस बार के नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में सत्ता की लड़ाई अब सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है, बल्कि गठबंधन के भीतर भी शक्ति का संतुलन उतना ही अहम होगा। एनडीए की नई सरकार अगर 50-50 वाले मॉडल पर खड़ी होती है, तो यह बिहार में राजनीतिक साझेदारी के एक नए अध्याय का संकेत होगा। यह वह मॉडल होगा जिसमें दोनों बड़े दलों को बराबर का सम्मान, बराबर का स्थान और बराबर का दायित्व मिलेगा।हालाँकि चुनौतियाँ कम नहीं हैं। बराबरी की साझेदारी का अर्थ यह भी है कि किसी भी मुद्दे पर मतभेद उत्पन्न होने पर गठबंधन में तनाव बढ़ सकता है। दोनों दलों को मंत्रियों के चयन में समाजिक संतुलन भी ध्यान में रखना होगा अगड़े, पिछड़े, महादलित, अल्पसंख्यक, अत्यंत पिछड़ा वर्ग इन सभी का उचित प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल की अनिवार्य शर्त है। छोटे दलों की अपेक्षाएँ भी गठबंधन के लिए परीक्षा बन सकती हैं, क्योंकि शक्ति-साझेदारी में थोड़ी भी कमी उन्हें गठबंधन से दूर कर सकती है।

इसके बावजूद यह भी सच है कि इस बार एनडीए के पास बिहार को राजनीतिक स्थिरता देने का बड़ा अवसर है। यदि यह सरकार संयुक्त जिम्मेदारी और साझा नेतृत्व के सिद्धांत पर चलती है, तो यह बिहार के विकास मॉडल को भी नई दिशा दे सकती है। बेरोजगारी, पलायन, उद्योगों का अभाव, शिक्षा और स्वास्थ्य इन सभी मोर्चों पर काम करने के लिए स्थायी और संतुलित सरकार की ज़रूरत है। और यह सरकार वैसी बनने की क्षमता रखती है, बशर्ते गठबंधन के भीतर संवाद और तालमेल कायम रहे।नीतीश कुमार की नई पारी ऐसे समय में शुरू हो रही है जब बिहार की जनता राजनीतिक उथल-पुथल से थक चुकी है। लोग स्थिरता चाहते हैं, नीतिगत निरंतरता चाहते हैं और विकास की गति चाहते हैं। यदि जेडीयू और बीजेपी अपनी बराबरी वाली साझेदारी को सियासी अहंकार से दूर रखते हुए चलाएँ, तो यह सरकार आने वाले वर्षों में बिहार की दिशा बदलने का अवसर बन सकती है।

डिस्क्लेमर

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वरिष्ठ पत्रकार , इंडियामिक्स, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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