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Reading: हिन्दुओं की आस्था को रौंद कर आगे बढ़ने की कट्टरपंथी सोच
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INDIAMIX > देश > हिन्दुओं की आस्था को रौंद कर आगे बढ़ने की कट्टरपंथी सोच
देश

हिन्दुओं की आस्था को रौंद कर आगे बढ़ने की कट्टरपंथी सोच

IndiaMIX
Last updated: 20/12/2025 11:29 AM
By
INDIAMIX - Editor
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9 Min Read
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A fundamentalist mindset that seeks to advance by trampling on the faith of Hindus.

संपादकीय/इंडियामिक्स हिन्दुस्तान मुसलमानों की जहनियत में पिछले चार-पाँच दशकों से काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और संविधान से चलता है, लेकिन अब देश के मुसलमानों में भारत के प्रति वैसी वफादारी नहीं दिखती जैसी उनके मन में शरीयत के प्रति है। कहने को तो शरीयत कुरान की ही सोच है, लेकिन हकीकत यह है कि कट्टरपंथियों ने शरीयत में कुरान के कई संदेशों को अनदेखा कर दिया है। इसलिए देश में कभी वंदेमातरम और भारत माता की जय पर बवाल होता है तो कभी हिन्दुओं के प्रति घृणा फैलाई जाती है। उनकी भावनाओं को आहत किया जाता है।उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में, तीन साल पहले की वह सुबह भूलना मुश्किल है। ईद की नमाज़ के बाद सड़क पर उमड़ी भीड़ अचानक नारों से गूंज उठी। ‘भारत माता की जय’ बोलने वाले हिंदू पड़ोसियों को घेर लिया गया। पत्थर चले, गाड़ियां जलाई गईं। वजह? बस एक पुरानी मस्जिद के पास लगे राष्ट्रगान के पोस्टर। स्थानीय मुस्लिम युवाओं का कहना था कि वे ‘काफिरों के नारे’ नहीं बर्दाश्त करेंगे। पुलिस ने बाद में पकड़े गए 40 लोगों में से ज्यादातर को जमानत मिल गई, लेकिन वह घटना पूरे इलाके में दरार डाल गई। आज भी वह कस्बा दो खेमों में बंटा है। यह एक छोटी सी मिसाल है उस बदलाव की, जो आजादी के बाद भारत के मुसलमानों की सोच में आया है।

बात 1947 की है, जब आजादी की दहलीज पर खड़ा भारत दो टुकड़ों में बंट गया। मुहम्मद अली जिन्ना की ज़िद्द ने पाकिस्तान को जन्म दिया, इस्लाम के नाम पर। हिंदुओं, सिखों के लिए बचा भारत। बंटवारे का सिद्धांत साफ़ था, मुसलमान पाकिस्तान जाएँगे। लेकिन लाखों मुसलमानों ने इनकार कर दिया। उनका तर्क था, हम भारत से मोहब्बत करते हैं। यहाँ लोकतंत्र है, संविधान बनेगा, कानून राज करेगा। शरीयत की हुकूमत नहीं चाहिए। नेहरू, पटेल जैसे नेताओं ने इन्हें आश्वासन दिया। नतीजा? 1947 में भारत में 3.5 करोड़ मुसलमान रह गए, जबकि पाकिस्तान चला आधा करोड़। आज यह संख्या 20 करोड़ के पार पहुँच चुकी है।तत्पश्चात पहले दो दशक शांतिपूर्ण गुज़रे। मुसलमानों ने भारतीय सेना में हिस्सा लिया, बॉलीवुड सितारे बने, खिलाड़ी हुए। लेकिन 1970 के बाद हवा बदली। खाड़ी युद्धों ने पैसे लाए, सऊदी से वहाबी विचारधारा घुस आई। मदरसों की संख्या 1981 में 900 से बढ़कर 2023 तक 2.7 लाख हो गई। इनमें से 25 हज़ार से ज़्यादा बिना पंजीकरण के चलते हैं। आजकल शरीयत की माँग, ‘ग़ज़वा ए हिंद’ के नारे सुनाई देते हैं। सोशल मीडिया पर हिंदू देवताओं के खिलाफ नफरत भरी पोस्टें वायरल होती हैं। वंदे मातरम, भारत माता की जय जैसे नारे तक असंवैधानिक बता दिए जाते हैं। तुष्टिकरण की सियासत करने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा इस तरह की गतिविधियों से मुंह मोड़ लिया जाता है।

भारतीय राजनीति में यह सब कई दशकों तक साफ दिखता है। हिन्दू वोटरों को जाति के नाम पर बाँट दिया जाता था और मुस्लिमों को एकजुट किया जाता रहा, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से भारत की सियासत की तस्वीर काफी बदल गई। अब मुस्लिमों की तरह हिन्दू भी एकजुट होकर वोटिंग करने लगे हैं। यही वजह थी कि 2014 में देश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। इसके बाद यही पैटर्न कई विधानसभा चुनाव में भी दिखाई दिया, जहाँ हिन्दू बहुमत में भाजपा को समर्थन देते हैं, वहाँ मुसलमान एकजुट होकर विरोध करते हैं।परंतु गैर भाजपाई दलों ने हिंदुओं को बांटने की कोशिश छोड़ी नहीं। कभी बीजेपी के खिलाफ यादव-मुस्लिमों को एकजुट करने की कोशिश होती तो कभी दलित-मुसलमानों को एक बैनर तले लाने की नाकाम कोशिश की जाती। 2019 लोकसभा में 27 फीसदी मुस्लिम बहुल सीटों पर विपक्ष ने सिर्फ़ इसलिए जीत हासिल की क्योंकि वोट ट्रांसफर हुआ। भाजपा को हराने का एकमात्र मकसद तुष्टिकरण वाली पार्टियां ही सत्ता में रहें। यही पैटर्न पश्चिम बंगाल, बिहार, यूपी के विधानसभाओं में दिखा। 2022 यूपी चुनाव में 17 फीसदी मुस्लिम वोटों ने भाजपा को 60 से ज़्यादा सीटें कम करा दीं। दुनिया भर के मुसलमानों से भारत के मुसलमानों की तुलना करें तो भारत का मुसलमान सबसे सुरक्षित और सुविधाजनक जिंदगी जीता है। पहला, लोकतंत्र। भारत में हर नागरिक को वोट का हक़। पाकिस्तान में 2024 चुनावों में 40 फ़ीसदी वोटिंग हुई, सेना ने असल में सरकार बनाई। बांग्लादेश में हसीना की हुकूमत ने विपक्ष को कुचल दिया। अफगानिस्तान में तालिबान ने महिलाओं को घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी। भारत में मुस्लिम महिलाएँ चीफ जस्टिस तक बनीं।

दूसरा, धार्मिक आज़ादी। संविधान के अनुच्छेद 25-28 हर मजहब को मानने, प्रचार करने का हक़ देते हैं। भारत में 4 लाख से ज्यादा मस्जिदें, 2.7 लाख मदरसे। केंद्र सरकार ने 2023 में 5 हज़ार करोड़ मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए दिए। सऊदी में गैर इस्लामी पूजा पर कोड़े लगते हैं। मिस्र में कॉप्टिक चर्च सीमित। भारत में हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण, लेकिन वक्फ बोर्ड स्वायत्त।

तीसरा, वक्फ संपत्ति। आज 32 राज्य के वक्फ बोर्डों के पास 9.4 लाख एकड़ जमीन, करीब मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपये की है। दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं। पाकिस्तान का वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार में डूबा। भारत में यह संपत्ति मुस्लिम कल्याण के लिए आरक्षित। हालांकि, 58 हज़ार संपत्तियों पर विवाद, लेकिन कानूनी सुरक्षा बरकरार।

चौथा, व्यक्तिगत कानून। भारतीय मुसलमानों को शरीयत आधारित विवाह, तलाक, उत्तराधिकार का हक़ है। हज सब्सिडी 2018 तक 7000 करोड़ खर्च होती है। ट्रिपल तलाक पर कानून बना, लेकिन बहुविवाह वैध है। हिंदुओं पर 1955 से साझा कानून। ईरान में शरीयत सख्त, लेकिन भारत जैसी छूट नहीं।

पाँचवाँ, अभिव्यक्ति। भारत में मुसलमान सड़कों पर सीएए के विरोध में 100 दिन धरना देते हैं। 2020 दिल्ली दंगों में 50 से ज़्यादा प्रदर्शन होते हैं। पाकिस्तान में ब्लास्फेमी कानून पर 1500 मुकदमे, 80 हत्याएँ। भारत में ओवैसी जैसे नेता संसद में सरकार को ललकारते हैं।

छठा, शिक्षा और रोजगार। अल्पसंख्यक कोटा से एएमयू, जामिया में 50 फ़ीसदी आरक्षण। 2023 में यूपीएससी में 20 मुस्लिम आईएएस, भारतीय सेना में 3 फ़ीसदी मुस्लिम अधिकारी। राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, जाकिर हुसैन जैसे उदाहरण। यूएई में हिंदू मंदिर 2023 में बना, लेकिन भारत जितनी आजादी नहीं।

सातवाँ, न्यायपालिका। मुस्लिम जज सुप्रीम कोर्ट में। 2024 तक 10 फीसदी हाईकोर्ट जज। बाबरी मस्जिद केस में 10 साल सुनवाई, शांति से फैसला। तुर्की में आया सोफिया मस्जिद बनी, लेकिन भारत जैसा धैर्य नहीं।

बहरहाल, इन सुविधाओं के बावजूद समस्या कहाँ? 2023 एनसीएपी डेटा में आतंकी मॉड्यूल में 80 फ़ीसदी भारतीय मुस्लिम। आईएसआई से फंडिंग वाले 500 से ज्यादा मदरसे। ‘ग़ज़वा ए हिंद’ के 10 हज़ार से ज़्यादा प्रचारक। पाकिस्तान के लिए सहानुभूति, 26/11 हमले पर भी कुछ मौलानाओं ने इसे विद्रोह कहा। संविधान कहता है, भारत सर्वोपरि। लेकिन जब पड़ोसी दुश्मन देशों के हित साधे जाते हैं, काफ़िरों से नफ़रत फैलाई जाती है, तो चिंता बढ़ती है। 75 सालों में भारत ने सब दिया, वोट, मस्जिदें, कानून। अब ज़िम्मेदारी मुस्लिम समाज की है। क्या वे शरीयत छोड़कर संविधान अपनाएँगे? या ग़ज़वा के ख़्वाब देखते रहेंगे? लब्बोलुआब यह है कि भारत के बहुसंख्यक समाज को भी सावधान रहना होगा। नफरत का जवाब नफरत नहीं। लेकिन तुष्टिकरण बंद। कट्टरपंथ पर जीरो टॉलरेंस। जब तक मुसलमान खुद न कहें, “हम पहले भारतीय, फिर मुसलमान,” तब तक दरारें बढ़ेंगी। भारत का भविष्य एकता पर टिका है, नफरत पर नहीं। यह बात उन मुसलमानों को आगे बढ़कर बतानी होगी जो देश का भला चाहते हैं।

डिस्क्लेमर

 खबर से सम्बंधित समस्त जानकारी और साक्ष्य ऑथर/पत्रकार/संवाददाता की जिम्मेदारी हैं. खबर से इंडियामिक्स मीडिया नेटवर्क सहमत हो ये जरुरी नही है. आपत्ति या सुझाव के लिए ईमेल करे : editor@indiamix.in

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