
दुनिया/इंडियामिक्स हिंदुस्तान में ऐसे नेताओं और राजनैतिक दलों की कमी नहीं है, जो दुनिया के किसी कोने में मुसलमानों के साथ खड़े होने में देरी नहीं करते हैं। इजरायल जब गाजा में हमास के आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करता है, तो यहां तमाम दलों के नेता और मुस्लिम संगठन अपनी छाती पीटने और हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा तो विरोध स्वरूप फिलिस्तीन का बैग लेकर संसद में ही पहुंच गई थीं, लेकिन इन्हें दुनिया के किसी कोने में हिन्दुओं के साथ होने वाले अत्याचार और यहां तक कि उनकी हत्या पर भी मुंह खोलने में शर्म आती है। भारत में हर समय दलितों और पिछड़ों के नाम पर भारतीय जनता पार्टी या हिन्दू संगठनों पर हमलावर रहने वाले इन नेताओं को बांग्लादेश, पाकिस्तान में हिन्दुओं का अत्याचार नहीं दिखाई देता है। इसे मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत का चरम कहा जा सकता है। आज देश भर में बांग्लादेश में मारे गए हिन्दू युवक की हत्या पर धरना-प्रदर्शन हो रहा है, लेकिन इसमें अपवाद को छोड़कर कोई बड़ा मुस्लिम संगठन या फिर मुस्लिम की सियासत करने वाले नेता मौजूद नहीं हैं। यह बताता है कि हिन्दुओं के प्रति इन नेताओं का नजरिया क्या है। कांग्रेस के राहुल गांधी से लेकर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद और राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव तक सभी नेता चुप्पी साधे हैं। कारण साफ है मुस्लिम वोट बैंक बिखर जाने का डर। यह ओछी राजनीति दलितों-पिछड़ों की पीठ पर चढ़कर मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत सालों से करते चले आ रहे हैं।
गौरतलब हो, बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद अगस्त 2024 से शुरू हुई हिंसा ने हिंदू समुदाय को निशाना बनाया है। रिपोर्टों के मुताबिक, हजारों हिंदू घरों पर हमले हुए, मंदिर तोड़े गए और महिलाओं पर अत्याचार किए गए। खासकर पिछड़े और दलित हिंदू, जैसे नमासुद्रा और अन्य जातियां, सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच और स्थानीय मीडिया के अनुसार, कम से कम 200 हिंदू मारे गए, जबकि संपत्ति का नुकसान करोड़ों डॉलर का है। इनमें दलित हिंदू समुदायों पर फोकस करें तो तस्वीर और भयावह है। बांग्लादेश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले ये लोग पहले से ही गरीबी और भेदभाव का शिकार हैं। हिंसक भीड़ ने उनके गांवों को जला दिया, महिलाओं का अपहरण किया। फिर भी भारत के दलित नेता चुप हैं। क्यों? क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक को खराब नहीं करना है। यह पाखंड साफ दिखता है, जब ये नेता घरेलू चुनावों में दलित कार्ड खेलते हैं। न्याय की दुहाई देने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद को दलितों का मसीहा बताते हैं। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में उन्होंने दलितों के घर भोजन किया, न्याय यात्रा निकाली। लेकिन बांग्लादेश में दलित हिंदुओं का नरसंहार? एक शब्द भी नहीं। संसद में या सोशल मीडिया पर कोई बयान नहीं। क्या कारण है? असल में राहुल की चुप्पी रणनीतिक है। 2024 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने मुस्लिम-दलित गठबंधन पर दांव लगाया। अब बांग्लादेश मुद्दा उठाने से वह गठबंधन टूट सकता है। याद कीजिए, जब मणिपुर हिंसा हुई तो राहुल ने तुरंत दौरा किया, लेकिन बांग्लादेश? सन्नाटा। यह दलितों की राजनीति नहीं, बल्कि वोट बैंक की राजनीति है। दलितों की पीठ पर सवार होकर मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश तक, पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला उनका हथियार रहा है। उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनावों में उन्होंने मुस्लिम-यादव गठजोड़ को मजबूत किया। लेकिन बांग्लादेश के दलित हिंदुओं पर अत्याचार? अखिलेश की जुबान को लकवा मार गया। क्यों? क्योंकि समाजवादी पार्टी का लगभग 40 प्रतिशत वोट मुस्लिमों का है। अखिलेश ने कभी बांग्लादेश हिंसा का जिक्र नहीं किया। बल्कि वे राम मंदिर पर आक्षेप करते हैं, ताकि मुस्लिम खुश रहें। दलित नेता मायावती को कमजोर करने के लिए समाजवादी पार्टी ने चंद्रशेखर आजाद को समर्थन दिया। लेकिन असली सवाल अगर दलितों का हक बांग्लादेश में कुचला जा रहा है, तो चुप्पी क्यों? यह पिछड़ों की ओछी राजनीति है, जहां हिंदू दलितों को भुला दिया जाता है। आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर आजाद खुद को भीम आर्मी का योद्धा बताते हैं। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ वे सड़कों पर उतरे, दलित युवाओं को भड़काया। लेकिन बांग्लादेश में दलित हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार? उनकी आंखें बंद हैं। चंद्रशेखर ने नागरिकता संशोधन कानून को दलित-विरोधी बताया, जबकि बांग्लादेश के दलित हिंदू शरणार्थी बनने को तैयार हैं। नगीना, उत्तर प्रदेश से सांसद चंद्रशेखर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुके हैं। मुस्लिम वोट के लालच में वे हिंदू दलितों के मुद्दे को नजरअंदाज कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर वे जातिवाद की बात करते हैं, लेकिन बांग्लादेश के दलितों का दर्द उन्हें न दिखाई देता है, न सुनाई। यह साफ है कि उनकी क्रांति सिर्फ वोट के लिए है, न कि सच्चे दलित हित के लिए।
राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव बिहार में मुस्लिम-यादव फॉर्मूला चलाते हैं। पिता लालू प्रसाद यादव ने हमेशा मुस्लिम तुष्टिकरण किया। तेजस्वी ने 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में दलितों को लुभाया, लेकिन बांग्लादेश? एक ट्वीट भी नहीं। बिहार में 17 प्रतिशत मुस्लिम वोट निर्णायक हैं। तेजस्वी की चुप्पी सामरिक है। वे नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर पर मोदी सरकार को घेरते हैं, लेकिन बांग्लादेश के हिंदू शरणार्थियों का मुद्दा इसलिए नहीं छूते कि कहीं मुस्लिम वोट बैंक नाराज हो जाता है। याद कीजिए, जब रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार हुआ तो लालू-तेजस्वी ने शोर मचाया। लेकिन हिंदू दलितों पर? चुप्पी। यह पिछड़ों की राजनीति का काला सच है।ये सभी नेता दलित-पिछड़ों को वोट बैंक मानते हैं, लेकिन असली खतरे पर चुप रहते हैं। बांग्लादेश में हिंदू आबादी 20 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत रह गई है। दलित हिंदू सबसे कमजोर हैं। भारत सरकार ने शरणार्थियों को आश्रय दिया, लेकिन विपक्ष चुप है। क्यों? क्योंकि मुस्लिम वोट 18 से 20 प्रतिशत है, जो चुनाव का रुख पलट सकता है यह दोहरा मापदंड है। देश में दलित आरक्षण की बात, लेकिन विदेश में दलित हिंदुओं का नरसंहार? अनदेखा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2026 के पश्चिम बंगाल और 2027 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव इन नेताओं की चुप्पी की खास वजह है। दलित संगठन जैसे भीम आर्मी भी मुस्लिम गठबंधन के चक्कर में हैं। बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी ने रामदास अठावले जैसे दलित नेताओं के माध्यम से बांग्लादेश मुद्दा उठाया। दलित-पिछड़े नेता अगर मुस्लिम तुष्टिकरण छोड़ें, तो हिंदू दलितों का भला हो सकता है। बांग्लादेश सरकार से जवाब मांगा जाए, शरणार्थियों को नागरिकता संशोधन कानून का लाभ दिया जाए। वरना यह ओछी राजनीति जारी रहेगी। दलितों को समझना होगा कि उनकी पीठ पर चढ़ने वाले ये नेता असल में वोट के भूखे हैं। बांग्लादेश का दर्द उठाओ, तभी सच्ची क्रांति आएगी।

