141 जयंती पर विशेष : विश्व में भारत का सम्मान बढ़ाने वाले महान विचारक काशीप्रसाद जायसवाल

A+A-
Reset

भारतीय दर्शन, इतिहास, भाषा-साहित्य, सभ्यता-संस्कृति व धर्म के गौरवशाली अतीत को काशीप्रसाद ने जिस प्रखरता से उभारा हैं, उस तरह की प्रखरता अभी तक कोई दूसरा साहित्यकार या इतिहासकार नहीं उजागर कर पाया है।

141 जयंती पर विशेष : विश्व में भारत का सम्मान बढ़ाने वाले महान विचारक काशीप्रसाद जायसवाल

इंडियामिक्स / विशेष धन्य है उत्तर प्रदेश का जिला मिर्जापुर जिसकी मिट्टी में डाक्टर काशीप्रसाद जैसी महान विभूति ने जन्म लेकर देश की ख्याति और गंगा-जमुनी संस्कृति को विश्व पटल पर नई ऊंचाइयां प्रदान की थीं,जिसकी वजह से सम्पूर्ण मानव जाति को गौरव प्रदान हुआ. ऐसे महान विचारक-लेखक और अर्थशास्त्री  डाक्टर काशीप्रसाद का जन्म 27 नवम्बर 1881 को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था। डा. काशी प्रसाद जायसवाल मिर्जापुर के प्रसिद्ध रईस साहु महादेव प्रसाद जायसवाल के पुत्र थे.काशीप्रसाद जायसवाल का जीवनकाल बहुम लम्बा नहीं रहा था और मात्र 56 साल की उम्र में 04 अगस्त 1937 को काशीप्रसाद की मृत्यु हो गई थी. बीसवीं सदी में जिन भारतीय विद्वानों ने विमर्श की दिशा को प्रभावित करने में अग्रणी भूमिका निभाई, उनमें काशी प्रसाद जायसवाल (1881-1937) अग्रणी हैं. उनके जीवन के कई आयाम हैं और कई क्षेत्रों में उनका असर रहा है.

    अपने छोटे से जीवनकाल में डा0 काशीप्रसाद जायसवाल ने बड़ी ऊंचाई हासिल की.जायसवाल के जीवनदर्शन को लेकर उनके शिष्यों, मित्रों की न केवल अनेक संकलित रचनाएं प्रकाशित हुईं, बल्कि उन पर न जाने कितने शोध-प्रबंध और किताबें और लेख लिखे गए. अनगिनत सभाएं, संगोष्ठी, कार्यक्रम बदस्तूर जारी हैं. जायसवाल युग-निर्माताओं में से एक थे और अपने कृतित्व के आधार पर आज भी बेजोड़ हैं. इतिहास उनके कार्यों की समीक्षा और पुनर्पाठ तो करेगा ही, लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ज्ञान की दुनिया में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त काशीप्रसाद जायसवाल का क्या हुआ? क्या वे फ़ुट नोट्स और इतिहास के पन्नों में दबा दिए गए? क्या इतिहास और साहित्य के मठाधीशों ने जायसवाल के मामले में कोई ‘सामाजिक-लीला’ की है? यह सवाल तो बनता ही है. काशीप्रसाद ने देश और समाज को जो दिया,वह बिरले ही दे पाते हैं,लेकिन इनके बदलें में उन्हें वह सम्मान मिला,जिसके वह हकदार थे ? यह एक यक्ष प्रश्न है,इसी लिए तमाम बुद्धिजीवी और जायसवाल समाज लगातार काशीप्रसाद को ‘भारत रत्न’ दिए जाने की मांग कर रहा है।

141 जयंती पर विशेष : विश्व में भारत का सम्मान बढ़ाने वाले महान विचारक काशीप्रसाद जायसवाल

     तमाम विद्याओ में निपुण डाक्टर काशीप्रसाद जायसवाल सामाजिक रूप से हिन्दू-मुस्लिम-एकता को जरूरी समझते थे। उनका मत था कि ताली एक हाथ से नहीं, बल्कि दोनों हाथ से बजती है। क्योंकि अधिकांश हिन्दू साहित्यकार अपने उपन्यासों में मुसलमानों को अत्याचारी और हिन्दुओं को सदाचारी के रूप में चित्रित कर रहे थे, इसलिए काशी प्रसाद इस कृत्य को राष्ट्रीय एकता में बाधक के रूप में देख रहे थे। काशी प्रसाद के व्यक्तित्व की व्याख्या उनके संबंधियों, मित्रों, विरोधियों और विद्वानों ने अपने-अपने हिसाब की की थी.कोई उन्हें घमंडाचार्य’ और ‘बैरिस्टर साहब’ (महावीरप्रसाद द्विवेदी) तो कोई ‘कोटाधीश’ (रामचंद्र शुक्ल),‘सोशल रिफ़ॉर्मर’ (डॉ. राजेन्द्र प्रसाद), ‘डेंजरस रेवोलूशनरी’ और तत्कालीन भारत का सबसे ‘क्लेवरेस्ट इंडियन’ (अंग्रेज शासक), ‘जायसवाल द इंटरनेशनल’ (पी. सी. मानुक) ‘विद्यामाहोदधि’ (मोहनलाल महतो ‘वियोगी’) और ‘पुण्यश्लोक’ (रामधारी सिंह ‘दिनकर’) की उपमा से सुशोभित करता था।

    काशी प्रसाद जायसवाल  की आरंभिक शिक्षा मिर्ज़ापुर, फिर बनारस और इंग्लैंड में (1906-10) हुई. इंग्लैंड में अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने तीन डिग्रियां प्राप्त कीं. इसमें लॉ और इतिहास (एम.ए.) के अलावा चीनी भाषा की डिग्री शामिल थी. जायसवाल पहले भारतीय थे, जिन्हें चीनी भाषा सीखने के लिए 1,500 रुपए की डेविस स्कालरशिप मिली. जायसवाल की सफलता के संबंध में महावीरप्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती में कई संपादकीय टिप्पणियां और लेख लिखे. इंग्लैंड में काशीप्रसाद का संपर्क वी.डी. सावरकर, लाल हरदयाल जैसे ‘क्रांतिकारियों’ से हो गया था, जिसकी वजह से वे औपनिवेशिक पुलिस की नज़र में चढ़े रहे.गिरफ़्तारी की आशंका को देखते हुए, काशीप्रसाद जल-थल-रेल मार्ग से यात्रा करते हुए 1910 में भारत लौटे और यात्रा-वृतांत तथा संस्मरण सरस्वती और मॉडर्न रिव्यू में प्रकाशित किया. वे पहले कलकत्ता में बसे और फिर 1912 में बिहार बनने के बाद 1914 में हमेशा के लिए पटना प्रवास कर गए. उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में आजीवन वकालत की. वे इनकम-टैक्स के प्रसिद्ध वकील माने जाते थे. दरभंगा और हथुआ महाराज जैसे लोग उनके मुवक्किल थे और बड़े-बड़े मुकदमों में काशीप्रसाद प्रिवी-कौंसिल में बहस करने इंग्लैंड भी जाया करते थे.

141 जयंती पर विशेष : विश्व में भारत का सम्मान बढ़ाने वाले महान विचारक काशीप्रसाद जायसवाल

    काशी प्रसाद कई भाषाओं के जानकार थे। वह संस्कृत, हिंदी, इंग्लिश, चीनी, फ्रेंच, जर्मन और बांग्ला भाषा पर पूरा कमांड रखते थेे. लेकिन अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार वे हिंदी और अंग्रेजी में ही लिखते थे. अंग्रेजी बाह्य जगत के पाठकों और प्रोफेशनल इतिहासकारों के लिए तथा हिंदी,स्थानीय पाठक और साहित्यकारों के लिए.काशीप्रसाद ने लेखन से लेकर संस्थाओं के निर्माण में कई कीर्तिमान स्थापित किए. दर्ज़न भर शोध-पुस्तकें लिखीं और सम्पादित कीं, जिसमें हिन्दू पॉलिटी, मनु एंड याज्ञवलक्य, हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया (150 ।.क्.दृ350 ।.क्.) बहुचर्चित रचनाएं हैं.

  काशीप्रसाद ने हिंदी भाषा और साहित्य तथा प्राचीन भारत के इतिहास और संस्कृति पर तकरीबन दो सौ मौलिक लेख लिखे, जो प्रदीप, सरस्वती, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, जर्नल ऑफ़ बिहार एंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, इंडियन एंटीक्वेरी, द मॉडर्न रिव्यू, एपिग्रफिया इंडिका, जर्नल ऑफ़ द रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड, एनाल्स ऑफ़ भंडारकर (ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टिट्यूट), जर्नल ऑफ़ द इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरिएण्टल आर्ट, द जैन एंटीक्वेरी इत्यादि में प्रकाशित हैं.

 जायसवाल ने मिर्ज़ापुर से प्रकाशित कलवार गज़ट (मासिक, 1906) और पटना से प्रकाशित पाटलिपुत्र (1914-15) पत्रिका का संपादन भी किया और जर्नल ऑफ़ बिहार एंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी के आजीवन संपादक भी रहे. इसके अलावा अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए जिनमें टैगोर लेक्चर सीरीज(कलकत्ता,1919),ओरिएण्टल कॉफ्रेस(पटना / बड़ोदा, 1930/ 1933),रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन (1936, पहले भारतीय, जिन्हें यह अवसर मिला), अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेन, इंदौर (1935) इत्यादि महत्वपूर्ण हैं. नागरी प्रचारिणी सभा, बिहार एंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, पटना म्यूजियम और पटना विश्वविद्यालय जैसे महत्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना से लेकर संचालन तक में जायसवाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

  डॉक्टर काशी प्रसाद जायसवाल ने ‘पाटलिपुत्र’ पत्र के संपादक भी रहे, बिहार एण्ड ओडीशा रिसर्च सोसायटी के जनक, निबंधकार, विचारक, ‘हिंदू पालिटी’(ए कांस्टीट्यूशनल हिस्ट्री आफ इंडिया इन हिंदू टाइम्स), ’मनु और याज्ञवल्क्य’, ’एन इंपीरियल हिस्ट्री ऑफ इंडिया’(फ्रॉम 700 बीसी टू 770 एडी),’ए क्रोनोलॉजी एंड हिस्ट्री ऑफ नेपाल’,’हिस्ट्री ऑफ इंडिया’(150 एडी टू 350 एडी) के लेखक, आलोचक, विचारक, काशीप्रसाद का जीवन और व्यक्तित्व देशभक्ति की भावनाओं से रंगा-भरा हुआ था. अंग्रेज लोग महान काशी प्रसाद जायसवाल को ’क्लेवरेस्ट इंडियन’ मानते थे और उनको ’डेंजरस रिवॉल्यूशनरी’ कहते थे। 

    भारतीय दर्शन, इतिहास, भाषा-साहित्य, सभ्यता-संस्कृति व धर्म के गौरवशाली अतीत को काशीप्रसाद ने जिस प्रखरता से उभारा ह,ै उस तरह की प्रखरता अभी तककोई दूसरा साहित्यकार या इतिहासकार नहीं उजागर कर पाया है। शायद, इसलिए ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, व पद्मभूषण से सम्मानित राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपने संस्मरण और ‘श्रद्धां- जलियां’ नामक पुस्तक में लिखा है कि सूर्य, चंद्र, वरुण, कुबेर, वृहस्पति भी डॉक्टर काशी प्रसाद जायसवाल जी की बराबरी नहीं कर सकते। एक अन्य साहित्य अकादमी तथा पद्मभूषण से विभूषित प्रख्यात साहित्यकार डॉ अमृतलाल नागर ने तो यहां तक कहा है कि अगर उन्हें चंद घड़ी के लिए हिंदुस्तान का बादशाहत मिल जाए तो वे हिंन्दुस्तान की तकदीर और तकदीर बदल सकते हैं।

  टाइम्स आफ इंडिया के 31 अगस्त, 1960 के अंक में प्रकाशित एक समाचार से यह भी पता चलता है कि भारत सरकार ने सन् 1961 में कुछ विशिष्ट महापुरूषों के सम्मान में विशेष डाक टिकटों को जारी करने का निर्णय लिया है।उन महापुरूषों में एक नाम प्रसिद्ध इतिहासकार डा.काशी प्रसाद जायसवाल का भी था. प्रसिद्ध उपन्यासकार अमृतलाल नागर ने कहा है कि यदि मुझे पीर मोहम्मद चिश्ती की भांति तीन घंटे की बादशाहत मिल जाए, तो मैं गाँव-गाँव के मंदिरों में डा. काशी प्रसाद जायसवाल की मूर्तियाँ स्थापित करने का आदेश प्रसारित कर दॅू

Rating
5/5

ये खबरे भी देखे

 

इंडिया मिक्स मीडिया नेटवर्क २०१८ से अपने वेब पोर्टल (www.indiamix.in )  के माध्यम से अपने पाठको तक प्रदेश के साथ देश दुनिया की खबरे पहुंचा रहा है. आगे भी आपके विश्वास के साथ आपकी सेवा करते रहेंगे

Registration 

RNI : MPHIN/2021/79988

MSME : UDYAM-MP-37-0000684

मुकेश धभाई

संपादक, इंडियामिक्स मीडिया नेटवर्क संपर्क : +91-8989821010

©2018-2023 IndiaMIX Media Network. All Right Reserved. Designed and Developed by Mukesh Dhabhai

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00