उत्तरप्रदेश : सबको साथ लेकर चलें योगी, इसी में है सरकार-संगठन की भलाई

A+A-
Reset

उनके ‘हाथ-पैर बांध रखे हैं, जिस कारण इन मंत्रियों को अपने विभाग में छोटे-छोटे निर्णय लेने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ और उनके करीबी नौकरशाहों से ‘हरी झंडी’ लेनी पड़ती है।

उत्तरप्रदेश : सबको साथ लेकर चलें योगी, इसी में है सरकार-संगठन की भलाई

 लखनऊ/ इंडियामिक्स भारतीय जनता पार्टी आलाकमान की लगातार कोशिशों के बाद भी योगी सरकार और प्रदेश संगठन के भीतर का विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। आलाकमान एक विवाद खत्म नहीं करा पाता है और दूसरा सामने आकर खड़ा हो जाता है। सबसे खास बात यह है कि करीब-करीब सभी विवादों का केन्द्र बिन्दू सीएम योगी आदित्यनाथ ही रहते हैं। यह सिलसिला योगी सरकार के गठन के समय शुरू हुआ था जो आज तक जारी है। सरकार गठन के समय तमाम नेता सरकार में जगह नहीं मिलने के चलते नाराज हो गए थे, इसे स्वभाविक नाराजगी बता कर खारिज कर दिया गया, लेकिन जो मंत्री बन गए थे, उनका अलग तरह का दर्द था। इन मंत्रियों को लगता था कि मुख्यमंत्री जी ने उनके लिए कोई काम छोड़ा ही नहीं है। उनके ‘हाथ-पैर बांध रखे हैं, जिस कारण इन मंत्रियों को अपने विभाग में छोटे-छोटे निर्णय लेने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ और उनके करीबी नौकरशाहों से ‘हरी झंडी’ लेनी पड़ती है। सीएम योगी पर यह आरोप भी लगते रहे कि उनकी(योगी की) शह मिलने के कारण नौकरशाह और सरकारी अधिकारी बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को तवज्जों नहीं देते हैं, जिस कारण जनता के बीच जनप्रतिनिधियों की छवि धूमिल होती है। इसी बात से नाराज होकर एक बार तो बीजेपी विधायकों ने विधान सभा तक में हंगामा खड़ा कर दिया था और धरने पर बैठ गए थे। इसी तरह से योगी पर एक आरोप यह भी लगता है कि उन्होंने कभी भी तमाम आयोगों, बोर्ड आदि के रिक्त पड़े पदांें को भरने की कोशिश नहीं की,जबकि अन्य दलों की सरकारें उक्त पदों पर अपनी पार्टी के नेताओं/कार्यकर्ताओं को समायोजित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। योगी के साथ ताजा विवाद पूर्व नौकरशाह और अब एमएलसी अरविंद शर्मा के साथ जुड़ गया था,जिनको पीम मोदी, योगी सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिलाना चाहते थे,लेकिन योगी की जिदद के चलते यह हो नहीं सका। भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी संगठनों के नेताओं  को भी लगातार इस बात का मलाल रहा कि योगी मंत्रिमंडल में उनके नेताओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला। अब डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच जारी तनानती को लेकर माहौल गरमाया हुआ है, जिसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकताा है कि योगी-मौर्य विवाद का निपटारा करने के लिए बीजेपी आलाकमान और आरएसएस तक को दखलंदाजी करना पड़ गया, लेकिन दोनों नेताओं के बीच तनाव अभी भी बना हुआ हैं। 

    गौरतलब हो, योगी और मौर्या के बीच तनातनी तो सरकार बनने के समय से चल रही थी,लेकिन इसे कभी किसी ने सार्वजनिक नहीं किया। उक्त दोनों नेताओं के बीच तनातनी की सबसे बड़ी वजह ‘सीएम की कुर्सी’ है। भले ही योगी सीएम हों,लेकिन केशव प्रसाद मौर्य को हमेशा यह लगता रहा था कि वह सीएम की कुर्सी के असली हकदार थे। इसकी वजह भी है 2017 के विधान सभा चुनाव केशव प्रसाद मौर्य के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष होते लड़ा गया था। मौर्य को बीजेपी आलाकमान ने पिछड़ा वर्ग के नेता के रूप में जनता के सामने प्रमोट किया था और मौर्या के कारण बीजेपी को पिछड़ा वर्ग समाज का काफी वोट मिला था,लेकिन ऐन समय पर योगी बाजी मार ले गए जबकि चुनाव से पूर्व योगी दूर-दूर तक मुख्यमंत्री के दावेदारों में नहीं थे। योगी से ज्यादा चर्चा तो मनोज सिन्हा के मुख्यमंत्री बनने की हुई थी,जो अब जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल हैं। आलाकमान का योगी को सीएम बनाने के पीछे का ध्येय यही था कि वह यूपी में हिन्दुत्व की धार को कंुद नहीं पड़ने देना चाहता था और योगी हिन्दुत्व का सबसे बड़ा चेहरा थे।

   बहरहाल, बात योगी-मौर्या के बीच मनमुटाव की कि जाए तो केशव प्रसाद मौर्य ने कभी भी योगी को तरजीह नहीं दी। योगी सरकार में लोक निर्माण, खाद्य  प्रसंस्करण, मनोरंजन कर एव सार्वजनिक उद्यम मंत्री केशव प्रसाद मौर्य अपने विभाग अपने हिसाब से चलाते थे,मुख्यमंत्री होने के बाद भी योगी अन्य मंत्रियों से इत्तर उनके काम में किसी तरह सलाह और दखलंदाजी नहीं कर पाते हैं। कैबिनेट मीटिंग के अलावा दोनों नेताओं का आमना-सामना बहुत कम होता था। जबकि दोनों पड़ोसी हैं। एक घर में चहल-पहल होती है तो दूसरे घर में इसकी ‘गूंज’ सुनाई देती है। लखनऊ के कालिदास मार्ग पर 5 नंबर बंगला सीएम योगी का है। इसके बाद एक बंगला छोड़कर छोड़कर 7 नंबर वाले बंगले में उप-मुख्यमंत्री  केशव प्रसाद मौर्य रहते हैं। इसके बाद भी योगी चार-सवा चार साल में कभी केशव के घर नहीं गए। सिवाय एक बार के जब केशव के कौशाम्बी स्थित  पुस्तैनी मकान में उनके पिता की मौत हो गई थीं।  यहां तक की योगी ने, केशव प्रसाद मौर्य के बेटे के शादी समारोह में भी जाना उचित नहीं समझा जो अभी 15-20 पूर्व सम्पन्न हुई थी। राजनीति मंे ऐसा मौका कम ही देखने है जब कोइ नेता किसी दूसरे नेता के यहां होने वाले पारिवारिक कार्यक्रमों में जाने से गुरेज करे। अपनी पार्टी के नेता तो दूर विरोधी दलों के नेताओं के यहां तक होने वाले समारोह में सभी दलों के नेता बिना किसी हिचक के अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं,जब इनसे कोई पूछता है तो यही कहते हैं कि हमारी विचारधारा की लड़ाई है। पारिवारिक लड़ाई नहीं है। यहां तक की बसपा सुप्रीमों मायावती जो कभी किसी शादी समारोह में नहीं जाती हैं पार्टी के महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र के यहां वह भी पहुंच गई थीं 
      खैर, वैवाहिक कार्यक्रम के समय  योगी अपने ही डिप्टी सीएम के यहां शादी समारोह में क्यों नहीं गए? यह वह ही जानें, लेकिन इससे केशव मौर्य को जरूर बुरा लगा होगा और विपक्ष को हमला करने क मौका मिल गया। इसी के बाद केशव प्रसाद मौर्य के तेवर तीखे हो गए और उन्होंने अपनी खामोशी तोड़ते हुए यह बयान दे दिया कि विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, यह संसदीय बोर्ड तय करेगा। 
       हालांकि मौर्य ने यह बयान संगठन के नेताओं के बीच दिया था,लेकिन मीडिया ने इसे भुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। इसी के बाद लखनऊ से लेकर दिल्ली तक मंें हलचल शुरू हो गई और योगी को इस बात के लिए तैयार किया गया कि वह केशव प्रसाद मौर्य के यहां जाकर गिले-शिकवे दूर करें। बहाना बनाया गया कि योगी, उप मुख्यमंत्री केशव के बेेटे-बहू को आशीर्वाद देने आएंगे।  सीएम योगी जब केशव प्रसाद के घर पहुंचे तो सियासी अटकलें तेज हो गईं। यह पहली बार था जब सीएम डेप्युटी सीएम के आवास गए थे। बताया जा रहा है कि 7 कालिदास मार्ग स्थिति केशव के घर पर दोनों नेताओं के बीच लगभग डेढ़ घंटे तक बात चली। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आवास 5 कालीदास मार्ग पर है। उनके आवास से एक आवास छोड़कर 7 केडी बंगला केशव प्रसाद मौर्य का है। सीएम पहली बार केशव प्रसाद के घर पहुंच हैं। बताया जा रहा है कि कोर कमिटी का केशव प्रसाद के घर पर लंच था। यहां संघ के कृष्णगोपाल सहित बीजेपी कोर कमिटी के सभी लोग लंच पर आए। इसीलिए योगी भी यहां पहुंचे। यहां बीएल संतोष ने पार्टी नेताओं को हिदायत दी कि बंगाल जैसी गलती यूपी में न दोहराई जाए। इस मुलाकात के बाद ऊपरी तौर पर तो जरूर लग रहा है कि योगी-मौर्य के बीच सब ठीक हो गया है,लेकिन हकीकत समय बताएगा।

     योगी का मौर्य के घर जाना तो मीडिया में सुर्खियां बना ही इसके साथ-साथ एक अन्य तस्वीर ने भी सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोरी, जिसमें यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के घर से मुस्कुराते हुए निकल रहे थे। इस तस्वीर के आने के बाद सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चाएं थम गई थीं कि अब यूपी चुनाव में बीजेपी में किसी भी तरह की कोई उथल-पुथल नहीं है,लेकिन इन कयासों पर तब ग्रहण लगता दिखा जब पता चला कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के केशव प्रसाद मौर्य के घर पहुंचने से पहले निषाद पार्टी के अध्यक्ष डा0 संजय निषाद ने यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के साथ मुलाकात की थी। बताया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव से पहले संजय निषाद, केशव प्रसाद मौर्य से मिलने गए थे और इस मुलाकात में उन्होंने डिप्टी सीएम पद की मांग भी रखी थी।

      लब्बोलुआब यह है कि अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए भाजपा आलाकमान सभी पहलुओं पर नजर रखे है। बड़े से बड़े नेता को भी यह समझा दिया गया है कि पार्टी से बड़ा कोई नहीं है। किसी नेता को अपने विचार और नाराजगी व्यक्त करने का अधिकार जरूर है,लेकिन इसके लिए उचित मंच होना जरूरी है।केशव प्रसाद मौर्य ने ‘ 2022 के विधान सभा चुनाव के लिए सीएम चेहरा संसदीय बोर्ड तय करेगा वाला बयान संगठन के नेताओं के बीच दिया था,इसलिए पार्टी ने इसे अनुशासनहीनता नहीं माना। यही नहीं पिछले कुछ दिनों से योगी में भी जबर्दस्त बदलाव देखने को मिल रहा है। आयोग,बोर्ड और निगमों के खाली पड़े पदों को भरा जा रहा है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को किसी न किसी बहाने से खुश करने की भी कोशिश की जा रही है। इसी लिए तो पूरे लखनऊ को योगी ने धन्यवाद प्रधानमंत्री मोदी के बैनरों से पाट दिया है। एक तरह से योगी को यह नसीहत मिल चुकी है कि उन्हें सबको साथ लेकर चलना ही होगा,इसी में सरकार और संगठन दोनों की भलाई है। 

 अक्सर विवाद को जन्म देने वाला बंगला नंबर-7

     तनातनी सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच है लेकिन ‘दाग’ कालीदास मार्ग,लखनऊ स्थित बंगला नंबर सात पर भी लग रहा है। कहा जा रहा है कि बंगला नंबर 07(आवास डिप्टी सीएम) और 05(आवास मुख्यमंत्री) के बीच तनातनी कोई नयी नहीं है। यह बंगला दो दशक से विवाद के कारण चर्चा में रहा है। वर्ष 2000 में जब बीजेपी की सरकार थी और राम प्रकाश गुप्ता मुख्यमंत्री तब वह बंगला नंबर-05 में ही रहते थे। उस समय बंगला नंबर 07 बतौर उर्जा मंत्री नरेश अग्रवाल का ठिकाना हुआ करता था। मंत्री नरेश अग्रवाल हरिद्वार गए हुए थे। इसी बीच विवाद के चलते उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया। सरकारी गाड़ी से हरिद्वार गए अग्रवाल ‘पैदल’ वापस आए।
   2008 में बंगला नंबर सात में रहने के लिए बसपा नेता और मंत्री नसीमुददीन  सिददीकी आए। उस समय सिददीकी बसपा मंे नंबर देा की हैसियत रखते थे,लेकिन आज नसीमुददीन बसपा छोड़कर कांग्रेस में अपने लिए राह तलाश रहे हैं।ऐसी ही तनानती समाजवादी सरकार में भी देखने को मिली थी। तब 05 कालीदास मार्ग बतौर सीएम अखिलेश यादव का निवास स्थान हुआ करता था और बंगला नंबर 07 में उनके चचा शिवपाल यादव रहा करते थे। उनके पास भी केशव प्रयाद मौर्य की तरह लोक निर्माण विभाग हुआ करता था। दोनों की ही बंगला नंबर 05 में रहने वाले मुख्यमंत्री से इस लिए नहीं पटी थी क्योंकि केशव हों या फिर शिवपाल दोनों ही अपने को बतौर मुख्यमंत्री देखना चाहते थे। 2017 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा तो इसकी प्रमुख वजह बंगला नंबर 07 और बंगाल नंबर 05 के बीच रहने वालों का विवाद ही था। वैसे पिछले दिनों बंगला नंबर-04 ने भी खूब चर्चा बटोरी थी,यह बंगला एमएलसी बने अरविंद शर्मा को आवंटित किया गया था। कहा यह गया कि बतौर मंत्री श्री शर्मा यहां रहेंगे,लेकिन शर्मा न तो मंत्री बने न बंगला मिला,अब वह डालीबाग कालोनी,लखनऊ  में रहते हैं।

अभिशप्त बंगला नंबर-06

    यूपी की राजधानी लखनऊ के कालीदास मार्ग स्थित बंगला नंबर छहः जो सीएम योगी आदित्यनाथ के 5 नंबर बंगले के बगल में है। यह बंगला जिसे भी मिला और उसकी राजनीति करियर से लेकर निजी जिंदगी तक बुरी तरह प्रभावित हुई। इसमें रहने वाले नेता तरह-तरह की परेशानियों में घिर गए। ऐसे कई नामी नेता और पूर्व मंत्री हैं, जो उस बंगले में रहे और आज तक परेशानियों का सामना कर रहे हैं। दिवंगत नेता सपा नेता अमर सिंह, बसपा नेता बाबू सिंह कुशवाहा,सपा नेता वकार अहमद इसके गवाह हैं। यदि मुलायम सिंह सरकार की बात की जाए तो उस समय सपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमर सिंह भी कालीदास मार्ग बंगला नंबर-6 में रहते थे। समय के साथ-साथ उनका राजनीतिक कॅरियर भी मंझधार में चला गया था,मुलायम सरकार के समय नेताजी से तनानती के चलते अमर सिंह को सपा से बाहर तक जाना पड़ गया था। 

     बसपा सरकार में कभी मायावती के करीबी कहे जाने वाले बाबू सिंह कुशवाहा के आवास-6 पर मिलने वालों की लंबी लाइन लगा करती थी। लोग उनसे मिलने के लिए सुबह 6 बजे से आवास पर जमा हुआ करते थे। दरअसल, माया सरकार में बाबू सिंह कुशवाहा सबसे ताकतवर मंत्री माने जाते थे। उनके पास कई विभाग थे। लेकिन समय ने पलटा खाया और बाबू सिंह कुशवाहा सीएमओ मर्डर केस के साथ-साथ एनआरएचएम घोटाले में फंसे गए और फिर लैकफेड घोटाले में भी उनका नाम आया। बाबू सिंह कुशवाहा इस घर से निकले तो जेल पहुंचे और आज भी जेल में ही बंद हैं।

     2012 में बसपा सरकार के पतन और अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने पर 5 कालिदास पर सीएम अखिलेश का बसेरा बना। ऐसे में 6-नंबर बंगला कोई मंत्री लेने को तैयार नहीं हुआ। हालांकि, तत्कालीन श्रम मंत्री वकार अहमद शाह ने इस बंगले में रहने का रिस्क उठाया, लेकिन वह भी एक साल से ज्यादा इस बंगले में नहीं रह पाए। अचानक से उनकी तबीयत खराब हुई तो वह बिस्तर से नहीं उठ पाए। जिनकी अब मौत हो चुकी हैं,लेकिन वकार अहमद के घर वालों ने बंगला डर के मारे अहमद के रहते ही पहले ही खाली कर दिया था।

Rating
5/5

ये खबरे भी देखे

 

इंडिया मिक्स मीडिया नेटवर्क २०१८ से अपने वेब पोर्टल (www.indiamix.in )  के माध्यम से अपने पाठको तक प्रदेश के साथ देश दुनिया की खबरे पहुंचा रहा है. आगे भी आपके विश्वास के साथ आपकी सेवा करते रहेंगे

Registration 

RNI : MPHIN/2021/79988

MSME : UDYAM-MP-37-0000684

मुकेश धभाई

संपादक, इंडियामिक्स मीडिया नेटवर्क संपर्क : +91-8989821010

©2018-2023 IndiaMIX Media Network. All Right Reserved. Designed and Developed by Mukesh Dhabhai

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00