
न्यूज़ डेस्क/इंडियामिक्स डोनाल्ड ट्रंप, एक ऐसा चेहरा जिसने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दुनिया के समक्ष और खासकर से भारत-पाकिस्तान के बीच हुए ऑपरेशन सिंदूर में स्वयं की भूमिका को पूरी महिमा मंडन के साथ प्रस्तुत किया। हालांकि, दुनिया के कई राजनीतिक विश्लेषक एवं विशेषज्ञ उनकी भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाते आए हैं, जिनमें उनके अपने कई कारण हो सकते हैं.
डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के एक ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनकी सफलता से ज्यादा असफलताओं पर चर्चा होती रही है, ट्रंप को दो बार राष्ट्रपति चुना गया है, लेकिन उनकी राजनीतिक विजय और उनके अंतहीन आत्म-प्रचार भी उनकी छवि को नहीं बदल सके। करीब 150 से ज़्यादा इतिहासकारों के एक सर्वेक्षण में ट्रम्प को अमेरिकी इतिहास का सबसे ख़राब राष्ट्रपति बताया है ।
ट्रम्प एक अमेरिकी नागरिक के रूप में विफल रहे हैं। वह एक अपराधी है, उस पर 91 आपराधिक आरोप लगे । ट्रम्प को उनकी अपनी ही कंपनियों के बोर्ड 9फ़ डायरेक्टर द्वारा यौन शोषण और मानहानि में शामिल पाया गया, जिसमें मानहानि के फ़ैसलों के लिए पीड़ित ई. जीन कैरोल को $88 मिलियन से अधिक का भुगतान करना शामिल है। राष्ट्रपति के रूप में प्रतिनिधि सभा द्वारा ट्रम्प पर दो बार महाभियोग लगाया गया, अमेरिकी इतिहास में इस बदनामी को झेलने वाले वे एकमात्र व्यक्ति हैं।
ट्रम्प के शासन में अमेरिका की वैश्विक छवि में काफी गिरावट आई, दुनिया भर के लोगों ने ट्रंप के बारे में नकारात्मक विचार व्यक्त किए। 32 देशों के एक सर्वेक्षण में 64% लोग विश्व मामलों में सही काम करने के लिए ट्रंप पर भरोसा नहीं करते। कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए ट्रम्प की नीतियों पर भी विश्लेषकों ने प्रश्नचिन्ह लगाए, जिसके कारण विश्व पटल पर अमेरिका को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। अमेरिका में कोविड-19 के 24.3 मिलियन से ज़्यादा मामले सामने आ चुके थे और 4,05,000 से ज़्यादा मौतें हो चुकी थीं।
मई 2018 में 2015 के परमाणु समझौते से अमेरिका को एकतरफा रूप से बाहर निकालने के ट्रम्प के फैसले से पूरे मध्य पूर्व में अराजकता फैल गई। वैश्विक परिदृश्य में यह ट्रम्प के सबसे अलोकप्रिय निर्णयों में से एक है, तथा अमेरिका के उन शीर्ष सहयोगियों द्वारा भी इसकी निंदा की गई है, जो इस समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता भी थे।
जनवरी 2020 की शुरुआत में ट्रम्प द्वारा ईरान के शीर्षजनरल कासिम सुलेमानी को मारने के आदेश के बाद युद्ध की आशंकाएं काफी हद तक बढ़ गई। ईरान ने जवाबी कार्रवाई की, ईरान ने 2015 के परमाणु समझौते को भी छोड़ दिया , जो उसे परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोकने के लिए बनाया गया था। अक्टूबर 2019 में उत्तरी सीरिया से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने का ट्रम्प का फ़ैसला भी उनकी सबसे विनाशकारी विदेश नीति चालों में से एक था।
इस वापसी से मानवीय संकट उत्पन्न हुआ, जिसका लाभ रूस, ईरान तथा सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, जो एक आरोपी युद्ध अपराधी हैं, सभी को मिला। ट्रंप के अधीन अमेरिका को अपने इतिहास की सबसे खराब आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा, 2022 में बेरोजगारी दर 7.9% पर आ गई जब की महामारी से पहले की बेरोजगारी दर 3.4% थी।जब ट्रम्प ने कार्यालय छोड़ा, तब अमेरिकी राष्ट्रीय ऋण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के उच्चतम स्तर पर था।
यूं तो डोनाल्ड ट्रंप की असफलताओं की सूची काफी लंबी है, परंतु इन सब के बावजूद 17 दिसंबर 2024 को ट्रंप 47वें राष्ट्रपति के रूप में स्थापित होते हैं और स्वयं को महिमामंडित करते हुए नागरिकों को यह विश्वास दिलाते हैं कि वह दुनिया चला सकते हैं।
ट्रंप की छवि एक ऐसे नेता की है जिसकी कथनी और करनी में अंतर होता है। वो कब क्या निर्णय लेते हैं और कब यू-टर्न मारते हैं, इसका सही सही अनुमान लगाना मुश्किल होता है।
भारत के नज़रिए से भारत पर ट्रम्प का क्या प्रभाव हो सकता है, यह हम भारत-पाकिस्तान के बीच हुए ऑपरेशन सिंदूर से समझ सकते हैं।सीज़फायर पर दिए गए अपने ही बयान को बार-बार बदलना यह स्पष्ट करता है कि ट्रंप का स्वयं पर कोई नियंत्रण नहीं है, और उनके लिए गए निर्णय उनके स्वयं के लिए संदेहास्पद मालूम होते हैं। ऐसे में आगे यह देखना आवश्यक हो जाता है कि भारत ऑपरेशन सिंडूर के बाद ट्रंप की भूमिका का आंकलन किस तरह से करता है और भविष्य में ट्रंप सरकार पर किस तरह का भरोसा जता पता है।