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INDIAMIX > राजनीति > जेएनयू छात्र संघ चुनाव में कैसे ‘राइट’ पर भारी पड़ा लेफ्ट
देशराजनीति

जेएनयू छात्र संघ चुनाव में कैसे ‘राइट’ पर भारी पड़ा लेफ्ट

SANJAY SAXENA
Last updated: 08/11/2025 2:38 PM
By
SANJAY SAXENA
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8 Min Read
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How the Left outweighed the Right in the JNU Students' Union elections

इंडियामिक्स/छात्र संघ चुनाव नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इस साल के छात्रसंघ चुनाव नतीजों ने फिर इतिहास दोहरा दिया। राइट विंग के उम्मीदवारों को हाशिये पर ढकेल कर यहां के छात्रों ने लेफ्ट की विचारधारा को तवज्जो दी। वामपंथी छात्र संगठनों के साझा गठबंधन लेफ्ट यूनिटी ने चारों केंद्रीय पदों पर जीत दर्ज कर एक बार फिर साबित किया कि जेएनयू की राजनीति में अभी भी लाल विचारधारा की जड़ें गहरी हैं। वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को एक भी केंद्रीय पद पर जीत नहीं मिल सकी, जो उसके लिए पिछले कुछ वर्षों में सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है। यह केवल एक चुनावी नतीजा नहीं, बल्कि छात्र राजनीति के बदलते रुख, विचारधारात्मक संघर्ष और नए युग की शुरुआत का संकेत है।पिछले पांच वर्षों में जेएनयू की राजनीति में जिस तरह के उतार-चढ़ाव देखे गए, उसने इस बार के नतीजों को और दिलचस्प बना दिया। 2020 के बाद से विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव लगातार राजनीतिक खींचतान का केंद्र रहे हैं। कभी एबीवीपी ने कैंपस में अपनी उपस्थिति मजबूत की, तो कभी वाम छात्र संगठन आपसी मतभेदों से जूझते दिखे। मगर इस बार हालात उलट गए। वामदलों ने पहली बार बेहद संगठित रणनीति अपनाई कर एकता बनाए रखते हुए उन्होंने हर संकाय और हर हॉस्टल स्तर तक गहराई से काम किया। यही कारण रहा कि अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव, चारों पदों पर लेफ्ट यूनिटी के उम्मीदवारों ने एबीवीपी को बड़े अंतर से हराया।

अध्यक्ष पद पर वाम उम्मीदवार अदिति मिश्रा की जीत सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही। अदिति जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से शोध कर रही हैं और उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान फीस वृद्धि, शोध छात्रवृत्ति, हॉस्टल में सुविधाओं की कमी और छात्र सुरक्षा जैसे मुद्दों को मुख्य केंद्र में रखा। उन्होंने कहा था कि “जेएनयू का संघर्ष सिर्फ विचारों का नहीं, बल्कि शिक्षा को सबके लिए सुलभ बनाने का है।” उनका यह सीधा और भावनात्मक संदेश छात्रों के दिल में उतर गया। दूसरी ओर, एबीवीपी की उम्मीदवार तन्या कुमारी राष्ट्रवाद और संगठनात्मक अनुशासन की बात करती रहीं, पर उनकी बातों में वह सादगी और जमीनी जुड़ाव नहीं दिखा जो अदिति के अभियान में झलक रहा था। इस बार के चुनाव में एक दिलचस्प बात यह रही कि मुद्दों का फोकस नारेबाजी से हटकर व्यावहारिक समस्याओं पर रहा। पिछले वर्षों में जहाँ बहसें “देशविरोधी” और “राष्ट्रभक्ति” जैसे मुद्दों तक सीमित रह जाती थीं, इस बार छात्र अपने वास्तविक कैंपस जीवन की दिक्कतों पर ज्यादा मुखर रहे। हॉस्टल फीस, रिसर्च फंड, लैब की स्थिति, और छात्र संगठनों की पारदर्शिता पर गहन चर्चा हुई। वाम संगठनों ने इस बदलाव को भांपते हुए अपने अभियान को “स्टूडेंट्स फॉर स्टूडेंट्स” की थीम पर केंद्रित किया, जबकि एबीवीपी पारंपरिक नारों और रैलियों तक सिमटी रह गई। मतदान प्रतिशत में कमी भी इस चुनाव का एक दिलचस्प पहलू रहा। इस बार लगभग 67 प्रतिशत छात्रों ने मतदान किया, जो पिछले वर्षों की तुलना में कुछ कम था। विश्लेषकों के अनुसार, यह कमी बताती है कि छात्र राजनीति में अब विचारधारा से ज्यादा ‘काम करने वाले’ नेतृत्व की तलाश बढ़ रही है। वाम संगठनों ने इस भावना को समझा और युवाओं से सीधे संवाद किया कर क्लास टू क्लास कैंपेन, कैफे चर्चाएँ, और सोशल मीडिया पर सक्रिय अभियान ने माहौल बनाया।

जेएनयू के चुनाव परिणामों का असर सिर्फ इस विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं रहता। ऐतिहासिक रूप से यह विश्वविद्यालय देश के अन्य विश्वविद्यालयों की छात्र राजनीति की दिशा तय करता रहा है। जब जेएनयू में लेफ्ट का झंडा बुलंद होता है, तो इलाहाबाद, हैदराबाद, कोलकाता और भोपाल जैसे शहरों में भी उसकी गूंज सुनाई देती है। इसी साल हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी एबीवीपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी में एबीवीपी ने जीत दर्ज की थी, मगर जेएनयू में उसकी हार ने छात्र राजनीति के समीकरणों को फिर उलझा दिया है। एबीवीपी की इस हार ने उसके अंदर आत्मचिंतन की लहर पैदा की है। संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों का कहना है कि यह हार केवल चुनावी नहीं, संगठनात्मक चेतावनी भी है। वाम संगठनों की सक्रियता और एकजुटता ने उसे घेर लिया है। हालांकि, एबीवीपी ने यह दावा भी किया कि उसने पार्षद स्तर पर कई सीटें जीती हैं और यह संकेत है कि संगठन की जड़ें अभी भी मौजूद हैं। परंतु केंद्रीय पदों पर हार ने यह साबित किया कि जेएनयू के मुख्य नेतृत्व पर अब वामपंथ का वर्चस्व एक बार फिर स्थापित हो गया है। कैंपस में जीत की घोषणा होते ही वामपंथी कार्यकर्ताओं ने लाल झंडों और नारेबाज़ी के साथ पूरे परिसर को उत्सव में बदल दिया। छात्रों ने ‘लाल सलाम’ के नारे लगाए और देर रात तक जश्न मनाया। दूसरी ओर, एबीवीपी के कार्यकर्ता शांत दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि वे संगठन को फिर से मजबूत करेंगे और छात्रों के मुद्दों को लेकर संघर्ष जारी रखेंगे। यह तस्वीर भारतीय छात्र राजनीति की असली आत्मा दिखाती है, जहाँ हार के बाद भी उम्मीद बनी रहती है और हर चुनाव एक नई कहानी लिखता है।

पिछले पाँच वर्षों में हुए बदलावों की बहार अब साफ दिखती है। 2019 से लेकर 2025 तक, जेएनयू ने कई वैचारिक प्रयोग देखे हैं, कभी एबीवीपी ने अपनी पकड़ बढ़ाई, कभी लेफ्ट यूनिटी में दरार आई, तो कभी एनएसयूआई और अन्य समूहों ने गठबंधन की कोशिश की। पर अब लगता है कि छात्र वर्ग फिर से वैचारिक रूप से वाम झुकाव की ओर लौटा है। इसका कारण शायद यह भी है कि बढ़ती महंगाई, शिक्षा का व्यापारीकरण और रोज़गार की कमी जैसे मसले अब युवाओं को सीधे प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे में वाम विचारधारा उन्हें अपने करीब खींचने में कामयाब रही है। जेएनयू के इस चुनावी परिणाम का संदेश स्पष्ट है, छात्र राजनीति में एक बार फिर विचारों की ताकत ने जीत दर्ज की है। सत्ता या संगठन नहीं, बल्कि मुद्दों और संवेदनाओं ने निर्णायक भूमिका निभाई। यह बदलाव सिर्फ जेएनयू के गलियारों तक सीमित नहीं रहेगा, इसका असर देशभर के विश्वविद्यालयों में महसूस होगा। भविष्य में जब छात्रसंघ चुनाव फिर होंगे, तो यह परिणाम संदर्भ के रूप में याद किया जाता है कि कैसे जेएनयू ने फिर से बताया कि राजनीति केवल जीतने का नहीं, सोच बदलने का जरिया भी है। इस जीत और हार से परे एक बात स्पष्ट भारतीय विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति अभी भी जिंदा है, सक्रिय है और विचारों से भरी हुई है। जेएनयू के इस लाल परचम ने यह दिखा दिया है कि बदलाव की बहार फिर लौट आई है। एबीवीपी के लिए यह ठहराव आत्ममंथन का क्षण है, और वाम छात्र संगठनों के लिए यह जिम्मेदारी का दौर। आखिरकार, जो जीतता है उसे अगली सुबह उम्मीदों का बोझ भी उठाना पड़ता है और यही असली राजनीति है, जो जेएनयू के हर कोने में सांस ले रही है।  

डिस्क्लेमर

 खबर से सम्बंधित समस्त जानकारी और साक्ष्य ऑथर/पत्रकार/संवाददाता की जिम्मेदारी हैं. खबर से इंडियामिक्स मीडिया नेटवर्क सहमत हो ये जरुरी नही है. आपत्ति या सुझाव के लिए ईमेल करे : editor@indiamix.in

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