शिक्षा नीति 2020 – नये, आत्मनिर्भर, सक्षम तथा गौरवशाली भारत का निर्माण करने में समर्थ

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34 वर्षों की लम्बी प्रतीक्षा के बाद भारत ने अपनी शिक्षा नीति में सुधार करने का निर्णय लिया, मोदी सरकार का यह निर्णय उनके कार्यकाल की स्वर्णिम उपलब्धियों में परिगणित होगा.

शिक्षा नीति 2020 - नये, आत्मनिर्भर, सक्षम तथा गौरवशाली भारत का निर्माण करने में समर्थ

इंडियामिक्स न्यूज़ / भारत ने 3 दशक लम्बे इंतज़ार के बाद अपनी शैक्षिक नीति में परिवर्तन करने का निर्णय लिया, जो की साहसिक, एतिहासिक व दूरदर्शी है. शिक्षा नीति 2020 कई मामलों में विशेष है, यह भारत सरकार द्वारा 2015 में अपनाये गये सतत विकास एजेंडा 2030 के लक्ष्य 4 में परिलक्षित ‘सभी के लिये समान व समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवनपर्यन्त शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिया जाने’ के लक्ष्य को ध्यान में रख कर बनाई गयी शिक्षा निति प्रतीत होती है जो की वर्तमान समय के साथ भविष्य को आवश्यकताओं एवं भूतकाल की त्रुटियों से सीखते हुए बनाई गई एक सम्पूर्ण सुष्ठु नीति प्रतीत होती हैं. पिछली शिक्षा नीतियों का ध्यान मुख्य रूप से शिक्षा तक पंहुच के मुद्दों पर था. 1986 में राजीव गाँधी के समय अपनाई गई राष्ट्रीय शैक्षिक नीति, जिसे 1992 में नरसिम्हा राव सरकार के समय संशोधित किया था के लक्ष्यों को पूर्ण करने के लिये मोदी सरकार का एक सुंदर प्रयास हैं. 

नई शिक्षा नीति में ‘केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ को मज़बूत करने पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा. इसीक्रम में शिक्षा को सबसे ऊपर रखने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर ‘शिक्षा मंत्रालय’ किया गया, नई शिक्षा नीति में सबसे ज़्यादा इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी का 6% तक खर्च हो, फिलहाल यह 4.43% ही है.  

शिक्षा नीति 2020 में हर बच्चे की विशेष क्षमताओं की पहचान व उसके परिवर्धन, अपनी प्रतिभा व रूचि के अनुसार शिक्षा ग्रहण करने का लचीलापन, रटंत विद्या की जगह अवधारणात्मक समझ विकसित करना, रचनात्मक व तार्किक सोच विकसित करने के प्रकल्प, तकनीक के यथासंभव उपयोग, बहु भाषिकता, सीखने के लिए सतत मुलायांकन, नवाचार तथा भारतीय, संवैधानिक व मानवीय जीवन-मूल्यों से जुडी शिक्षा देने आदि विषयों पर जोर दिया गया है, जो प्रथमदृष्टया इस निति की प्रमुख विशेषता हैं.

शिक्षा नीति 2020 का सबसे बड़ा बदलाव स्कूली शिक्षा में 10+2 की जगह 5+3+3+4 का शैक्षिणक ढांचा है. जो इस निति की USP हैं. यह नया ढांचा लचीला, बहुस्तरीय तथा खेल व गतिविधि आधारित है, जो की वर्तमान समय में स्कूली शिक्षा व्यवस्था को देखते हुए आवश्यक था. इस नवीन व्यवस्था में फाउन्डेशनल स्टेज यानि प्रीप्राइमरी अथवा आंगनबाड़ी के 3 वर्ष तथा कक्षा 1 व 2 के 2 वर्ष कुल 5 वर्ष  ( 3 – 8 वर्ष के बच्चों के लिये ), प्राइमरी स्टेज यानी कक्षा 3 से 5 ( 8-11 वर्ष के बच्चों के लिये ), मिडिल स्कूल स्टेज यानि कक्षा 6 से 8 ( 11-14 वर्ष के बच्चों के लिये ) तथा अंतिम सेकेंडरी स्टेज यानि कक्षा 9 से 12 ( 14-18 वर्ष के बच्चों के लिये ) में विभक्त कर अध्यापन करवाया गया है.  सेकेंडरी स्टेज दो फेज में विभक्त है पहले फेज में कक्षा 9-10 तथा दुसरे फेज में कक्षा 11-12 में विभक्त किया गया हैं. 

पिछली 10+2 व्यवस्था की कई खामियों को इनके इस निति के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया गया है. पिछली व्यवस्था में बच्चों की शिक्षा में सर्वाधिक जरूरी प्री-प्राइमरी व प्राइमरी पर विशेष ध्यान देने की व्यवस्था नहीं थी जिसके कारण पांचवी का बच्चा तीसरी की किताब भी नहीं पढ़ पाता था, चौथी के बच्चे को सामान्य जोड़ना-घटाना नहीं आता था. अब इन समस्याओं का उचित स्तर पर समुचित निराकरण हो सकेगा. पिछली व्यवस्था में बच्चा अक्सर स्कूल में सीधे कक्षा 1 में आता था, सीधे स्कूल में आने के कारण उसकी सिखने की गति धीमी होती व अन्य दिक्कतें  भी होती, जिनका अब शमन हो सकेगा. सबसे महत्वपूर्ण फाउंडेशनल स्टेज के इन 5 वर्षों में लचीली, बहुस्तरीय खेल/गतिविधि आधारित अध्ययन व्यवस्था होगी जिसमे ECE के पाठ्यक्रम और शिक्षणशास्त्र शामिल होंगे. यह ECE के पाठ्यक्रम NCERT द्वारा विकसित किया जाएगा, जो 8 वर्ष तक के बालकों के लिये 2 भागों में विभक्त होगा. NCERT द्वारा विकसित किये जाने वाले इस आदर्श फ्रेमवर्क में अक्षर, संख्या, गिनती, रंग, आकार, इनडोर-आउटडोर खेल, पहेली, चित्रकला, नाटक, संगीत,शिल्प आदि को शामिल किया जाएगा. यह फ्रेमवर्क शैक्षिणक ज्ञान के साथ मानवीय सम्वेदना, शिष्टाचार, नैतिकता, भारतीय जीवनमूल्यों, व्यक्तिगत व सार्वजनिक साक्षरता, एकता आदि के गुणों को बच्चों में विकसित करेगा.

NCERT द्वारा निर्धारित किये गए फ्रेमवर्क के अनुसार ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व इस वर्ग के शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जायेगा, जिससे प्री प्राइमरीस्कूल अथवा आंगनबाड़ी में पढने वाले बच्चों में शैक्षणिक समानता मेंटेन हो सके. इस शिक्षा निति में पहले स्स्टेज पर आंगनबाड़ी के महत्व को ध्यान में रखते हुये आगामी 5-6 वर्षों में इन्हें NCERT द्वारा निर्मित फ्रेमवर्क तथा ECCE व इस निति के मानकों के अनुरूप सशक्त व विकसित किया जायेगा. इन पांच प्रमुख वर्षों की मुख्य शैक्षिक पद्धति खेल-खोज व गतिविधि आधारित होगी. शिक्षा के इन बुनियादी 5 वर्षों के लिए यह व्यवस्था कारगर होगी, इसमें बच्चा खेलते-खाते हुये पढना, लिखना, बोलना सीखेगा तथा सामान्य कला, गणित, विज्ञान, भाषा व शारीरिक शिक्षा का ज्ञान भी अर्जित करेगा इस उम्र के हर बालक को उचित शिक्षा मिले इसलिए सरकार शासकीय स्कूलों में कक्षा 1 तक के बच्चों के लिये निर्धारित इस कार्यक्रम को बालवाटिका नाम दिया है, आदिवासी क्षेत्रों में इस स्तर के बालकों के लिए इन्ही नियमों के तहत आश्रमशाला के नाम से ECCE केंद्र विकसित किये जायेगे, जहाँ शिक्षा के साथ पोषण का भी ध्यान रखा जायेगा.

मिडिल स्टेज में विषय शिक्षकों द्वारा अमूर्त अवधारणाओं पर काम किया जाएगा, जिसके लिए बच्चे पिछली स्टेज में तैयार हो चुके होंगे, इस स्टेज में बच्चों को विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित, कला, खेल, मानविकी व व्यावसायिक विषयों का अध्ययन करवाया जायेगा. प्रथम फाउन्डेशन जो शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करता हैं पंजाब, हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाक़ों में स्कूलों में प्री-प्राइमरी में इस  5+3+3+4 पर कर रहा है, जिसके अच्छे नतीजे सामने आयें हैं .

हाईस्कूल में बच्चों को विषय उन्मुख शिक्षा दी जायेगी, जो उनमे आलोचनात्मक सोच विकसित करने के साथ विषय को गहराई से समझने तथा अपनी जीवन आकांक्षाओं को समझने की सोच विकसित करेगी. इसमें विद्यार्थी को विषयों के चुनाव में लचीलापन मिलेगा. मतलब की अब वो फिजिक्स के साथ रोबोटिक्स व म्यूजिक भी पढ़ सकेगा, पुराने ढर्रे पर चलने की आवश्यकता नहीं होगी. इसके बाद सीनियर सेकेंडरी में विद्यार्थी अपनी इच्छा व आकांक्षा के अनुरूप व्यावसायिक अथवा पारंपरिक विषयों का अध्ययन कर सकेगा, यह व्यवस्था बच्चों का संज्ञानात्मक विकास करने वाली है, रटंत विद्या से दूर करने वाली है तथा व्यावसायिक, विषयक व व्यावहारिक का सुंदर मिश्रण होने के कारण वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के मुकाबले बच्चों को मात्र पढ़ा-लिखा नहीं काबिल व आत्मनिर्भर बनाने की दूरदृष्टि वाली है. 

अन्य बड़ा परिवर्तन माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को लेकर हमें इस नीति में देखने को मिलता है, जो भारत में अब तक चली आ रही व्यवस्था के ठीक उलट लेकिन परिपूर्ण है. अब माध्यमिक का बच्चा अपने मन के अनुरूप पढने के लिये स्वतंत्र होगा, अब मात्र पाठ्क्रम होगा पहले की तरह कला, विज्ञान, मानविकी, भाषा, खेल, व्यावसायिक तथा अकादमिक श्रेणिया नहीं होगी, अब 10 वी- 12 वी का बच्चा में इनमे से कुछ भी पढने के लिए स्वतंत्र होगा, ग्रुप की बाध्यता खत्म होने से शिक्षा में बहुत बड़ा सुधार देखने को मिलेगा. एक लड़का जिसे गणित, इतिहास व अर्थशास्त्र पसंद है पहले वह इन्हें एक साथ नहीं पढ़ सकता था, लेकिन यह नीति उसे अब ऐसा करने की स्वतंत्रा देती है. अब उसके पास गणितज्ञ, इतिहासकार अथवा अर्थशास्त्री बनने का मार्ग होगा, जो पहले असंभव था. यह नवीन स्कूली शिक्षा व्यवस्था निश्चित रूप से लाभदायक रहेगी, क्यूंकि यह सच्चे अर्थ में सीखने वाले पर आधारित हैं, जबकि पिछली व्यवस्था अधिकांशतः सिखाने वाले पर आधारित थी. 

इस नीति में त्रिभाषा सिद्धांत को पुष्ट करने की बात कही गई है, जो इस नित की सबसे बड़ी विशेषता हैं. कम से कम कक्षा 5 तक बच्चे को उसकी मातृभाषा में शिक्षा देने का जो प्रावधान किया गया है, यह उत्तम हैं. क्योंकि इस उम्र में बच्चे अपनी मातृभाषा को सहजता से समझते हैं, ऐसे में उन्हें अक्षर, संख्या, विज्ञान, आकार, आदि का जो बुनियादी ज्ञान जो इस उम्र में मिलता है वो अगर उनको उनकी अपनी मातृभाषा में मिले तो वो उसका अधिगम तेजी से कर पाएंगे तथा वो सदा स्थायी रहेगा. शिक्षा नीति यहाँ कक्षा 6 से छात्रों को एक भारतीय भाषा का अध्ययन करने के लिए प्रतिबद्ध करती है जो उन्हें कम से कम कक्षा 10 तक करना होगा. इसमें हिंदी, संस्कृत, कन्नड़, उड़िया मलयालम आदि कोई भी भारतीय भाषा हो सकती हैं, यह बिलकुल वैसा ही है जैसा पुरानी शिक्षा-नीति में था, जिसके तहत बच्चों को हिन्दी व अंग्रेजी के साथ कोई अन्य भारतीय भाषा पढनी होती थी, उत्तरभारत में अधिकांश छात्र तृतीय भाषा के रूप में संस्कृत, उर्दू आदि का अध्ययन करते थें. इस नीति में प्राइमरी वर्ग में शिक्षण अनुदेशन के लिये जो भाषा सम्बन्धी प्रावधान किया गया है वो इसे पिछली नीति के त्रिभाषा सिंद्धांत के मुकाबले अधिक पुष्ट व सक्षम बनाता है. बचपने में बच्चों को मातृभाषा से अध्ययन करवाने की इस नीति का पालन रूस, जापान, चीन, ताइवान, फ्रांस, जर्मनी, आदि देश पहले से ही काम में ले रहें है तथा वहां यह नीति सफल रही है अतः भारत में भी यह उपयोगी रहेगी. यह बच्चों को ज्ञान देने के साथ मातृभाषा के माध्यम से भारतीय संस्कृति व जीवनमूल्यों से भी जोड़ेगी. 

नयी शिक्षा नीति में समसामयिक विषयों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिज़ाइन थिंकिंग, होलिस्टिक हेल्थ, आर्गेनिंग लिविंग, पर्यावरण शिक्षा, मशीन लर्निंग, डेटा साइंस, वैश्विक नागरिकता शिक्षा आदि विषयों को विभिन्न कक्षाओं के स्तर के अनुसार पाठ्यक्रम में फ्रेम किया जायेगा. जोकि वर्तमान समय के अनुसार वांछित विषय हैं. समय पर इनका ज्ञान मिलने से हमारी आने वाली पीढ़ी डिजिटल विश्व का नेतृत्व करने में सक्षम होगी. NEP 2020 कहती है की कक्षा 6-8 तक के बच्चों को हर शैक्षिक सत्र में 10 दिनों तक बस्ता रहित पीरियड में स्थानीय विशेषज्ञों द्वारा बढई, माली, कुम्हार, कलाकार आदि से प्रशिक्षण दिलवाया जायेगा तथा कक्षा 6-12 के विद्यार्थियों को छुट्टियों के दौरान विभिन्न व्यावसायिक विषयों का ज्ञान करवाया जायेगा, जो वर्तमान युग में आवश्यक है.इन नये निर्णयों से हमारी स्कूली शिक्षा ज्ञानपरक से रोजगारपरक भी होगी, यह निर्णय SKILL INDIA मिशन को भी गति देगा.

स्कूली शिक्षा में छात्र अनुपात का भी ध्यान इस नीति में रखा गया है, सामान्यत यह अनुपात 30:1 रखने की बात कही गई है लेकिन आर्थिक व सामाजिक रूप से कमजोर बच्चों के लिये इसे 25:1 रखा जाएगा. इसके लिए सरकार एक राष्ट्रीय स्तर का पोर्टल भी संचालित करेगी जिसे  Digital Infrastructure for Knowledge Sharing (DIKSHA) नाम दिया गया है.

सरकार का लक्ष्य इस नीति के माध्यम से शत प्रतिशत बच्चों को स्कूल लाना भी है वर्तमान में 6-8 तक के बच्चों का सकल नामांकन अनुपात 90.9% हैं, लेकिन यह बच्चे आगे नहीं पढ़ पाते, 9-10 में यह अनुपात 79.3% है तथा 11-12 में 56.5% हैं, सरकार 2035 तक कक्षा 12 में सकल नामांकन अनुपात 100% लाना चाहती है. इसका मतलब सरकार की मंशा है की 2035 तक कम से कम यह सुनिश्चित किया जाए की भारत का हर बच्चा अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करे. पढाई बीच में न छुटे इसके लिए सरकार की यह सोच प्रशंसनीय है. इसके लिए सरकार सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के बच्चों के लिए National Institute of Open Schooling (NIOS) के तहत Open and Distance Learning (ODL) भी शुरू करेगी साथ ही साथ पढ़ाई जारी रखने के लिए उनको बढ़ावा देने के लिए पूर्व छात्रों और स्थानीय समुदाय के लोगों की सहायता भी लेगी.

NEP 2020 में परीक्षा व मुल्यांकन का स्वरूप भी बदला जायेगा, जिसका मुख्य लक्ष्य बस्ते का बोझ कम करना है. इसके लिए NCERT द्वारा NCF 20 लागू करेगा जिसका हर 5-10 वर्ष में मूल्यांकन होगा. इसके लिए बच्चों की परीक्षाओं का पैटर्न बदला जायेगा, बोर्ड की परीक्षाओं में बच्चों को ‘बेस्ट ऑफ़ टू’   असेसमेंट की सुविधा दी जाएगी. कक्षा 10 का बोर्ड एक तरह से खत्म हो जायेगा. छात्रों के मूल्यांकन के लिए National Assessment Centre का निर्माण किया जायेगा. जिसका कार्य छात्रों की परीक्षाओं और मूल्यांकन के लिए दिशा-निर्देश तैयार करना होगा. इसे लागू करने करने के लिये  State Achievement Survey (SAS) और National Achievement Survey (NAS) बनाया जायेगा. विद्यालयों में विषय और प्रोजेक्ट संबंधी समूह (क्लब/सर्कल) बनाए जाएँगे। इसमें विज्ञान, गणित, संगीत, शतरंज, कविता, भाषा, परिचर्चा के अलग -अलग सर्कल बनाए जाएंगे। यह बच्चों की पढ़ाई से पूरी तरह होगा.

NEP 2020 में बीएड को 4 वर्ष का करने का निर्णय लिया गया है तथा शैक्षणिक शिक्षा में नवाचारों के साथ बदलाव व शिक्षण प्रशिक्षण के लिए छात्रवृत्ति की सुविधा भी दी गई है, जो उपयोगी व गुणी शिक्षकों के निर्माण में मदद करेगी. TET को और मजबूत करने का की बात भी NEP में है, जिससे विद्यालयों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षक मिल सके. शिक्षकों को स्वयं पर काम करने के लिए 50 घंटे मिलेंगे तथा शिक्षकों को अपने तरीके से पाठ्यक्रम लागू करने की छुट होगी.  2022 के अंत तक National Professional Standards for Teachers (NPST) बनाई जाएगी. इसमें शिक्षकों के विकास प्रोन्नति से जुड़े दिशा-निर्देश मौजूद होंगे. दिव्यांग बच्चों के लिए अलग शिक्षक रखे जाएँगे, जिनका काम उन बच्चों के विकास पर ध्यान देना होगा. 2030 के अंत तक शिक्षकों को पढ़ाने के लिए 4 साल का बीएड अनिवार्य होगा.

NEP 2020 में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEDGs) से आने वाली जनसँख्या को विभिन्न श्रेणी में विभक्त किया गया है, जिसमें मुख्य रूप से लैंगिक आधार पर (महिलाएँ और ट्रांसजेंडर), अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक को रखा गया है। इसके अलावा दिव्यांग, गरीबी रेखा से नीचे के लोग, तस्करी का शिकार हुए बच्चे, अनाथ और शोषित वर्ग से आने वाले बच्चों को इसमें रखा गया है तथा इन सभी को समान शिक्षा मिले यह सुनिश्चित किया गया है. जिन क्षेत्रों में  SEDGs श्रेणी के बच्चे अधिक होंगे उनको Special Education Zones घोषित कर जवाहर नवोदय विद्यालय के जैसे  विद्यालय विकसित किये जाएँगे, जिसमें छात्रों को लगभग मुफ़्त सुविधाएँ मिलेंगी. इसमें लड़कियों और ट्रांसजेंडर की शिक्षा और सुरक्षा को मद्देनज़र रखते हुए छात्रावास तैयार किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त दिव्यांग अधिकार क़ानून 2016 के तहत दिव्यांग बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित निर्णय लिये जायेंगे, दिव्यांग बच्चों को समान शिक्षा दिलाने के लिए शिक्षा पद्धति में उनके अनुसार बदलाव होंगे, SEDGs वर्ग के बच्चों के लिए कई छात्रवृत्ति योजना भी शुरू की जाएँगी. आर्थिक व समाजिक रूप से कमजोर बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये यह एक उचित निर्णय है. इसके क्रियान्वयन से इस श्रेणी के बच्चे आसानी से मुख्यधारा में शामिल हो सकेंगे. 

NEP 2020 में शिक्षा के गवर्नंस के लिए जिला शिक्षा अधिकारी व खंड शिक्षा अधिकारी को कई अहम अधिकार व कार्य मिलेंगे. अब इनकी जवाबदेही तय की जायेगी. इन्हें अपने क्षेत्र में विद्यालयों के ‘कोम्प्लेक्स समूहों’ के साथ मिल कर NEP 2020 के दिशा निर्देशों का पालन करना व करवाना होगा. इस निर्णय से इन अधिकारीयों के साथ समबन्धित स्कूलों के प्राचार्य, शिक्षकों व विद्यालय समितियों की एक तरह से जिम्मेदारी तय हो जाएगी तथा कार्य की मोनिटरिंग भी सुचारू रूप से होगी. इस निर्णय का असर विद्यालय की अधोसंरचना, शिक्षा तथा संचालन पर होगा, इससे कई लूपहोल बंद होंगे तथा स्कूली शिक्षा मजबूत होगी. हर ज़िले या राज्य में “बाल भवन” का निर्माण कराया जाएगा जिसमें बच्चे हफ्ते के एक दिन जा सकेंगे. यह मूल रूप से सामुदायिक शिक्षा पर केन्द्रित होंगे और कई विद्यालयों के साथ मिल कर चलाए जाएँगे. विद्यालयों को बतौर ‘सामाजिक चेतना केंद्र’ भी स्थापित किया जाएगा. जोकि एक नवीन नवाचार होने के साथ शिक्षा को समाज के साथ जोड़ने का प्रकल्प होगा. 

पुरानी शिक्षानीति में नीति निर्देशन के अधिकार कुछ इकाइयों तक ही सिमित रहे, जैसे स्कूली शिक्षा विभाग. इसका तन्त्र ही ऐसा विकसित किया गया की था की बदलावों के लिए जगह ही नहीं बचाई गई तथा आमजन से सीधे सरोकार के सभी रास्ते एक तरह से बंद रखे गये. जिसकी वजह से शिक्षा का निजीकरण व व्यवसायीकरण तेजी से हुआ, शिक्षा मंहगी होती गई लेकिन कोई ऐसा तंत्र विकसित नहीं हुआ जो शिक्षा की गुणवत्ता को जाँच सके. NEP 2020 में इस समस्या को दूर करने की कोशिस की गई है. अब NAS व SAS के तहत निजी व सार्वजनिक विद्यालयों की नियमित जांच की जायेगी तथा सुनिश्चित किया जायेगा की बच्चों को शुरूआती स्तर से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है या नहीं, सुनिश्चित किया जाएगा की विद्यालय Sustainable Development Goal4 (SDG4) को पाने में सक्षम है या नहीं. 

ये तो थी स्कूली शिक्षा की बातें, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी NEP 2020 में कई बुनियादी बदलाव किये गये हैं. बुनियादी कौशल को भारतीय शिक्षा का मुख्य भाग बनाने की नीति पर काम किया जाएगा. इसमें कला विशेषकर लिबरल आर्ट पर ध्यान दिया जाएगा, छात्रों में कला विधा की समझ विकसित हो इस हेतु नालंदा व तक्षशिला मॉडल के तहत कार्य किया जायेगा. महाकवि बाण ने अपने कालजयी ग्रन्थ कादम्बरी में सभी 64 कलाओं को शामिल किया है, शुक्रनीतिसार व कामशास्त्र आदि में भी इनका वर्णन हैं, इनमें मात्र चित्र, वास्तु , संगीत आदि कलाएं ही शामिल नहीं हैं, अपितु विज्ञान को भी कला के रूप में परिगणित किया गया है. इसी भारतीय शास्त्रीय अवधारणा के आधार पर IIT के पाठ्यक्रम में भी मानविकी व कला को शमिल किया जाएगा. जो की एक अच्छी पहल है. इससे विद्यार्थी दबाव से बचेंगे साथ ही विज्ञान के अध्ययन के साथ एक अन्य क्षेत्र में उसी समय में विशेष योग्यता अर्जित करने में भी सफल रहेंगे. उच्च शिक्षा में मानव संबंधी मूल्यों को विशेष रूप से शामिल किया जाएगा, सत्य, धर्म, शांति, प्रेम, अहिंसा, नागरिक मूल्य और जीवन कौशल। एक एकेडमिक बैंक ऑफ़ क्रेडिट बनाया जाएगा जिसके तहत संस्थानों के क्रेडिट का ब्यौरा तैयार किया जाएगा.  

देश में अच्छा प्रदर्शन करने वाले विश्वविद्यालयों को कई बड़े अवसर दिए जाएँगे. एक ऐसा केंद्र तैयार किए जाएगा जिसमें विदेशी छात्र भारतीय छात्रों के साथ मिल कर अनुसंधान संबंधी विषयों पर काम कर सकते हैं. दूसरे देशों के साथ इस पर समझौते भी किए जायेंगे, जिसे अंतर्देशीय साझा शोध व शैक्षणिक सम्बन्ध विकसित हो सकें. देश में बढ़िया प्रदर्शन क्र रहें विश्वविद्यालयों को दुनिया के कुछ देशों में अपना परिसर बनाने का मौक़ा मिलेगा, इसके अतिरिक्त  दुनिया के 100 सबसे अच्छे विश्वविद्यालय भारत में अपना परिसर स्थापित कर सकेंगे. इससे भारत के छात्रों व अध्यापकों को देश के अंदर तथा बाहर गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक माहौल मिलेगा. भारतीय उच्चशिक्षा व्यवस्था विकसित होगी तथा वैश्विक स्तर पर इसे अपनी अलग पहचान बनाने का मौका मिलेगा. छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए आर्थिक मदद भी दी जाएगी, इसके लिए नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल को बढ़ाया जाएगा. इसके अलावा शिक्षक और छात्रों का अनुपात कम से कम 10:1 और ज़्यादा से ज़्यादा 20:1 रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. जिससे छात्रों को पढने में व शिक्षकों को पढ़ाने में सुविधा होगी, छात्रों पर व्यक्तिगत ध्यान रखना आसान होगा तथा शिक्षा की गुणवत्ता भी बढ़ेगी.    

NEP 2020 में देश के हर वर्ग, हर क्षेत्र से आने अपनी छात्र उच्च शिक्षा जारी रख सकें इसके लिए भी कई नए प्रावधान किए गए हैं. इस हेतु सरकार उच्च शिक्षा के लिए फंड बढ़ाएगी, उच्च शिक्षा में लिंगानुपात का विशेष ध्यान रखा जाएगा, देश में अधिकतम स्पेशल एजुकेशन ज़ोन बनाए जाएँगे, विश्वविद्यालयों में भारतीय और स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई कराने पर ज़ोर दिया जाएगा, उच्च शिक्षा में छात्रवृत्ति बढ़ाई जाएगी, शिक्षा में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाया जाएगा. उच्च शिक्षा में  ऐसे परिवर्तन किये जायेंगे जिनसे अधिकतम छात्रों को रोजगार मिल सके. इस बात का ख़ास ख़याल रखा जाएगा कि पढ़ाई के दौरान किसी छात्र का शोषण न किया जा रहा हो.   

प्रोफेशनल स्टडीज़ को उच्च शिक्षा का मुख्य भाग बनाया जायेगा. कृषि विश्वविद्यालय, विधि विश्वविद्यालय, स्वास्थ्य और विज्ञान विश्वविद्यालय, तकनीकी विश्वविद्यालय समेत हर तरह के शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा दिया जाएगा. NEP 2020 के लक्ष्य के अनुसार 2030 तक प्रोफेशनल स्टडीज़ प्रदान करने वाले हर संस्थान को समूह के तौर पर विकसित किया जाएगा। अलग-अलग प्रोफेशनल पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले संस्थानों के लिए उनकी आवश्यकता के हिसाब से निर्देश तैयार किए जाएँगे।    

शोध और अनुसंधान उच्च शिक्षा का मुख्य विषय होने के बावजूद भी भारत इस पर अपनी जीडीपी का केवल 0.69 हिस्सा खर्च करता है। वहीं दूसरे देश जैसे अमेरिका 2.8%, इज़रायल 4.3%, चीन 2.1% और दक्षिण कोरिया 4.2% हिस्सा खर्च करता है. अतः NEP 2020 में भारत ने इस विषय पर भी ध्यान दिया है. जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या बढ़ोतरी और नियंत्रण, बायो टेक्नोलॉजी, डिजिटल दुनिया का प्रभाव और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे कई ऐसे विषय है जो आने वाले समय में महत्वपूर्ण रोल निभाएंगे लेकिन वर्तमान में भारत इन क्षेत्रों में शोध के मामले में बहुत पीछे है. ऐसे में इस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान देते हुए National Research Foundation (NRF) तैयार किया जायेगा, जिसका कार्य  देश के विश्वविद्यालयों में शोध कार्य को बढ़ावा देना होगा, यह विश्वविद्यालयों में होने वाले शोध का मूल्यांकन भी करेगा, महत्वपूर्ण शोध कार्यक्रमों की जानकारी सरकारी समूहों और एजेंसियों को देगा, शोध कार्यों की फंडिंग भी करेगा. इससे शोध के क्षेत्र में भी भारत को काम करने तथा आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा, जिससे हमें भविष्य में लाभ होगा. 

उच्च शिक्षा के स्वरूप को सुधरने के लिए इसे लागू करने की पद्धति को बदला जाएगा, जो भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) के तहत किया जाएगा. इस आयोग में 4 स्वतंत्र इकाइयाँ शामिल की जाएँगी, जिनके माध्यम से उच्च शिक्षा के बुनियादी ढांचे को सुधारा जायेगा. पहली इकाई होगी  National Higher Education Regulatory Council (NHERC) यह NEP व अन्य प्रावधान तरीके से लागू हुए या नहीं इसे देखेगी. दूसरी है National Accreditation Council (NAC) जो विश्वविद्यालयों का निरिक्षण करेगी व उनकी मान्यता आदि का रेगुलेशन देखेगी. तीसरी इकाई है Higher Education Grants Council (HEGC) यह शोध आदि के क्षेत्रों में फंड मुहैया करवाएगी. चौथी है General Education Council (GEC) जो शिक्षा के उचित मानक तय करेगी व उनका क्रियान्वयन करवाएगी.

 

NEP 2020 में उच्च शिक्षा में गवर्नेंस को लेकर कई अहम कदम उठाए जाएँगे. सुविधाजनक मान्यता प्रणाली को विकसित किया जाएगा. उच्च शैक्षणिक संस्थाओं को अधिक स्वायत्ता दी जाएगी जिससे वो स्वयं बड़े तथा सकरात्मक बदलाव करने में सक्षम होंगे. उच्च शिक्षा संस्थानों में बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स स्थापित किया जाएगा जिसका काम इन  संस्थानों को राजनीति दखलंदाज़ी से बचाकर रखना, प्राध्यापकों की भर्ती करना तथा संस्थागत निर्णय लेना होगा. इस समूह में शिक्षाविदों तथा शिक्षा से जुड़े अनुभवी व्यक्तियों को शामिल किया जाएगा. यह बोर्ड स्वतन्त्र रूप से कार्य करेगा. 2035 तक सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों में इस बोर्ड का निर्माण कर लिया जायेगा. इस बोर्ड के निर्माण के बाद इन संस्थानों से गैरजरूरी सरकारी दबाव कम होगा व संस्थान अपनी क्षमता व आकांक्षा के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण काम कर सकेंगे. 

उच्च शिक्षा में अब मल्टीपल इंट्री और एग्जिट का विकल्प दिया जाएगा.  इसके तहत, पहले साल के बाद सर्टिफिकेट, दूसरे साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल बाद डिग्री दी जाएगी. पाँच साल के इंटीग्रेटेड कोर्स करने वालों को एमफिल नहीं करना होगा. 4 साल का डिग्री प्रोग्राम (स्नातक), फिर MA, और उसके बाद बिना M.Phil के सीधा PhD कर सकते हैं. इस निर्णय से अब छात्रों को किन्ही कारणों से कुछ हो जाये तो अब पढाई नहीं छोडनी पड़ेगी, उदाहरण के लिए, वर्तमान व्यवस्था में विज्ञान के साथ फैशन डिजायनिंग नहीं ली जा सकती, जबकि अब मेजर और माइनर प्रोग्राम लेने की सुविधा होगी. इसका फायदा यह होगा कि आर्थिक या अन्य कारणों से ड्रापआउट होने वाले लोगों का वर्ष बर्बाद नहीं होगा और अलग-अलग क्षेत्रों में रूचि रखने वाले छात्र अपनी रूचि के अनुसार प्रमुख विषय के साथ माइनर विषय को चुनने की आजादी रखेंगे. इससे छात्र अपनी क्षमता, परिस्थिति व रुचि के अनुरूप पढ़ सकेगा, अपना विषय चुन सकेगा. 

दशकों पहले देश में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन शुरू किया गया था, जिसे अब भी आवश्यक मानते हुये आगे बढाया जायेगा, जिसके तहत देश भर में एडल्ट एजुकेशन सेंटर खोले जायेंगे . 

नई शिक्षा नीति में ‘अतुल्य भारत’ को आधार बनाते हुए भारतीय संस्कृति के एक बड़े हिस्से को पढ़ाई में शामिल करने की बात कही है। यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को लगभग लुप्त बताया है। पिछले 50 सालों में लगभग 50 भारतीय भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं। इसके अलावा एक और नए तरह का संस्थान शुरू किया जाएगा Indian Institute of Translation and Interpretation (IITI)। इसका काम व्याख्या और अनुवाद संबंधी काम को बढ़ावा देना होगा।  भाषा और संस्कृति की पढ़ाई करने वालों के लिए छात्रवृत्ति शुरू की जाएगी। इतना ही नहीं डिजिटल इंडिया अभियान के तहत देश में आधुनिक माध्यमों के ज़रिए संवाद को बढ़ावा दिया जाएगा. सरकार शिक्षा के क्षेत्र में शीघ्र आमूलचूल परिवर्तन करने के लिए NEP 2020 को  2030 से 2040 के दशक के बीच पूर्णरूप से लागू करने के प्रयास में हैं, जो की उचित है. 

नयी शिक्षा नीति 2020 पर व्यापक चर्चा के बाद यह कहा जा सकता है की मोदी सरकारं ने इसमें सभी क्षेत्रों पर समान रूप से ध्यान दिया है. सभी वर्ग का ध्यान रखा है. शिक्षा को बोरिंग व रटने की परम्परा से हटा कर सिखने की परम्परा विकसित करने का प्रयास किया है तथा शिक्षा को ज्ञानवर्धक के साथ रोचक व आनन्ददायक बनाने का प्रयास किया है. स्कूली शिक्षा से उच्चशिक्षा तक भारतीय विषयों, मूल्यों, ज्ञान, परम्परा व भाषा को शामिल कर पूर्ण भारतीय नीति विकसित की है. जो सफल, सक्षम तथा भारतीय परम्परा से जुड़े नागरिक विकसित करने में सक्षम है तथा आने वाली पीढ़ी के सामने अनेक अवसरों के द्वार खोलती है. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की अगर इस नीति का क्रियान्वयन सही तरीके से किया गया तो यह नीति भारत को पुनः विश्व-गुरू के पद पर पुनर्स्थापित करने में सक्षम हैं.

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