
संपादकीय/इंडियामिक्स शिक्षा का मूल आदर्श क्या होना चाहिए? अगर मैं अपने नज़रिये की बात करूं तो मैं शिक्षा को समानता के दृष्टिकोण से देखता हूँ।एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जहां विद्यार्थियों में समानता का दृष्टिकोण हो। शिक्षा भविष्य तैयार करती है, अतः किसी भी देश का भविष्य किस स्तर का हो सकता है हम अगर इसका अंदाज़ा लगाना चाहें तो सर्वप्रथम हमें उस देश की शिक्षा प्रणाली का अनुशीलन करना होगा। समय के साथ शिक्षा प्रणाली भी बदलती रही है।
आज के अपने इस विश्लेषण में मैंने शिक्षा प्रणाली का एक तुलनात्मक दृष्टिकोण रखा है, जिससे हमें यह समझ आएगा कि वर्तमान परिदृश्य में भारतीय शिक्षा की प्रणाली विश्व के कुछ देशों की बेहतरीन शिक्षा प्रणाली के समक्ष कहाँ स्थान रखती है।इसके लिए हमें सिस्टम के कुछ प्रमुख बिंदुओं की तुलना करनी होगी।
- यदि हम भारत की नवीन शिक्षा प्रणाली को देखें तो यहाँ जिस मुख्य बिंदु को उजागर किया गया है वो है 5+3+3+4 व्यवस्था। जहाँ 5 का अर्थ है Nursery, LKG, UKG, 1st, और 2nd अर्थात विद्यार्थी का स्कूल में प्रवेश कक्षा Nursery से हो जाता है।जहाँ बच्चे की उम्र होती है 3 वर्ष और प्रथम कक्षा में प्रवेश करने तक उसकी उम्र होती है 6 वर्ष। अर्थात सही मायनों में बच्चे की स्कूलिंग शुरू होती है 6 वर्ष की उम्र से।इसे बुनियादी चरण कहा गया है और यह चरण होता है 3 वर्ष से 8 वर्ष की उम्र तक। जहां बच्चों को सिखाया जाएगा – सार्वजनिक व्यवहार, सार्वजनिक स्वच्छता, सार्वजनिक सहयोग और टीम वर्क।
- दूसरा चरण (3) शुरू होता है 8 से 11 वर्ष के बच्चों के लिए, जहां बच्चा पहुंच जाता है कक्षा 3 में। कक्षा 3, 4 और 5 को तैयारी का चरण (Preparatory stage) कहा गया है। यहाँ बच्चा पढ़ाई, शारीरिक शिक्षा, विज्ञान, गणित, कला, भाषा आदि सीखता है।
- तीसरे चरण (3) को मध्य अवस्था कहा गया है जो 11 वर्ष की उम्र से 14 वर्ष की उम्र तक होती है, इस चरण में बच्चे कक्षा 6 में पहुँच जाते हैं और यह चरण होता है कक्षा 6 से कक्षा 8 तक I इस चरण में बच्चे विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, मानविकी आदि सीखते हैं।
- अब बात करते हैं चौथे चरण की जो शुरू होता है 14 वर्ष की उम्र से और 18 वर्ष की उम्र तक बच्चा इस चरण में शिक्षा ग्रहण करता है, और चरण में बच्चा कक्षा 9, 10, 11 और 12 में अध्ययन करता है जहाँ वह अपने पसंदीदा विषय पर गहराई से और बहुविषयक अध्ययन कर सकता है।
उपरोक्त सारे चरणों को भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक परिवर्तन के रूप में देखा जा रहा है और यह उम्मीद जताई जा रही है कि यह शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन साबित होगा। उपरोक्त सारे चरणों को अगर हमने सही से समझा है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि इस प्रणाली में बच्चे के सर्वांगीण विकास को महत्व दिया गया है।
लेकिन क्या वाकई ये एक क्रांतिकारी परिवर्तन है? ऐसा क्या नया है इस नीति में?
इस प्रश्न के उत्तर को जानने के लिए हमें एक छोटी सी तुलना करनी होगी वर्तमान शिक्षा प्रणाली के साथ। वर्तमान में भारत में 10+2 शिक्षा प्रणाली है, जहाँ कक्षा 11 में विद्यार्थी अपने लिए एक ऐसा विषय चुनता है जिसमें वह अपना करियर बना सके।
वर्तमान में अध्ययन प्रणाली को देखा जाए तो बच्चा वही सब पढ़ रहा है – जैसे नर्सरी, LKG, UKG ,1 , 2 में सार्वजनिक व्यवहार, सार्वजनिक स्वच्छता, सार्वजनिक सहयोग और टीम वर्क। कक्षा 3, 4, 5 में वही गणित की मूलभूत अवधारणाएँ जैसे गिनती, पहाड़े, जोड़ना, घटाना आदि।
आज भी तो बच्चा कक्षा 6 से 8 तक में विज्ञान, गणित, भाषा आदि का अध्ययन कर रहा है। कक्षा 11 में वह अपने लिए विषय चुन रहा है और भविष्य का रास्ता तय कर रहा है। तो बदला क्या? सिर्फ नाम? जो पहले 10+2 के नाम से जाना जा रहा था अब 5+3+3+4 के नाम से जाना जाएगा । अब हम बात करते हैं दुनिया के कुछ बेहतरीन देशों की शिक्षा प्रणाली की जिसमें अमेरिका, जापान, चीन, कोरिया, फिनलैंड आदि आते हैं। जिनकी शैक्षिक व्यवस्था का स्तर बाकी किसी भी देश से सर्वोच्च माना जाता है।
बात अगर शैक्षिक प्रणाली की है तो इसमें फिनलैंड का नाम सर्वोच्च माना जाता है। फिनलैंड ऐसा देश है जहाँ साक्षरता का प्रतिशत 99.3% है। अगर हम फ़िनलैंड की शिक्षा प्रणाली को देखें तो यहाँ स्कूलिंग शुरू होती है 7 वर्ष की उम्र से। फिनलैंड में नर्सरी, एल.के.जी और यू.के.जी. (पूर्व प्राथमिक) जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं होता। फिनलैंड में बच्चों का प्रवेश 7 वर्ष की उम्र में सीधा कक्षा 1 में होता है। इसके पीछे वहां के विशेषज्ञों का तर्क है कि जैविक दृष्टि से देखा जाए तो किसी भी बच्चे के दिमाग का सर्वांगीण विकास 7 से 8 वर्ष की उम्र तक हो पाता है। अतः 7 वर्ष की उम्र से पहले बच्चों पर पढ़ाई का बोझ रखना उचित नहीं। किसी भी बच्चे के लिए पढ़ाई तभी प्रासंगिक हो पाएगी जब बच्चे का दिमाग पूर्णता विकसित हो जाएगा। तब तक बच्चों को उनका बचपन जीने दिया जाता है। वैसे वहाँ ७ साल से कम उम्र के बच्चों के लिए डे-केयर की भी व्यवस्था होती है लेकिन वहां पढ़ाई नहीं होती। बल्कि खेलना-कूदना, नए दोस्त बनाना, दूसरे बच्चों को समझना उनसे परस्पर सहयोग बनाते हुए रिश्ते बनाना, आदि के साथ बच्चों को स्कूल के माहौल के लिए तैयार किया जाता है।
बेहतर स्कूल समय : यहाँ कक्षाएं छोटी होती है। करीब २० बच्चों को एक कक्षा में रखा जाता है। स्कूल का समय बहुत कम होता है। हर दिन करीब 4 घंटे ही स्कूल लगता है। जिसमे लंच ब्रेक भी शामिल होता है।
फिनलैंड में प्राथमिक स्तर पर बेगलेस पढ़ाई का कॉन्सेप्ट है अर्थात वहाँ किताबों का सहारा न ले कर व्यावहारिक ज्ञान अर्जित करने पर जोर दिया जाता है। बच्चों को होमवर्क नहीं दिया जाता जिससे बच्चों को कोचिंग की आवश्यकता नहीं होती।
वहाँ शिक्षकों की गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। फिनलैंड में स्कूलिंग को बहुत लंबा नहीं खींचा जाता अर्थात 7 से 16 वर्ष तक बच्चों की स्कूलिंग खत्म हो जाती है। यानी छात्र कक्षा 9 में ही अपने पसंदीदा विषय को चुन सकता है और उसमें अपना भविष्य तैयार कर सकता है।16 वर्ष की उम्र अर्थात कक्षा 9 तक विद्यार्थी की परीक्षा न लेने का कॉन्सेप्ट है, जिसके पीछे तर्क यह है कि बच्चों को किसी परीक्षा का डर नहीं रहता और बच्चा 16 वर्ष की उम्र तक केवल और केवल सीखने पर ध्यान केंद्रित कर पाता है। और इसका परिणाम भी हमारे सामने है कि, फिनलैंड का साक्षरता प्रतिशत 99.3% है।
कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए छात्र को एक राष्ट्रीय परीक्षा से गुजरना होता है जहाँ छात्र कॉलेज में अपने विषय को पढ़कर स्नातक तथा स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त कर पाते हैं। कक्षा 9 के बाद से ही बच्चों के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का कॉन्सेप्ट है जिसे पढ़कर बच्चे अपने लिए कमाई का स्रोत बना सकते हैं। फिनलैंड में शिक्षकों का कार्य सिर्फ शिक्षा को उत्कृष्ट बनाना है, इसलिए वहां शिक्षकों को सिर्फ शिक्षण का ही कार्य करना होता है। तुलनात्मक रूप से भारत में देखा जाए तो एक शिक्षक पढ़ाने के साथ साथ और भी कई कामों में जैसे जनसंख्या में ड्यूटी, चुनावों में ड्यूटी, और भी कई ऐसे कार्य हैं जहाँ शिक्षकों की ड्यूटी लगाने का कोई अर्थ नहीं रहता, लगा दिया जाता है।
फिनलैंड में कक्षा 1 से कक्षा 6 तक एक ही क्लास टीचर का कॉन्सेप्ट है, अर्थात 1 से 6 तक एक ही शिक्षक बच्चों का क्लास टीचर होता है। जिससे बच्चे शिक्षक के साथ दोस्ताना व्यवहार रख पाते हैं, भावनात्मक रूप से जुड़े पाते हैं, तथा खुलकर प्रश्न कर पाते हैं जिससे उनमें बौद्धिक विकास मजबूत हो पाता है। फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ शिक्षण एक सबसे उच्चतम वेतन पाने वाली नौकरी है और एक बहुत ही सम्मानजनक नौकरी है। अच्छी सैलरी होने की वजह से यहाँ शिक्षण बच्चों की ड्रीम जॉब भी होती है। जबकि भारत में इसका बिलकुल विपरीत तथ्य है। भारत में शिक्षण किसी भी विद्यार्थी की ड्रीम नौकरी नहीं होती। कारण है शिक्षण नौकरी में होने वाली अव्यवस्थाएँ और होने वाला शोषण ।
भारत विश्व गुरु बनने की राह पर है जिसके लिए बिना शिक्षा के मंजिल तक पहुँचना नामुमकिन है। हम भारत के सफर का आकलन एक छोटी सी सारणी के माध्यम से कर सकते हैं और अनुमान लगा सकते हैं कि अभी हमें कितना सफर और तय करना है।
अंततः तुलना करने पर हम पाते हैं कि भारत literacy rate में टॉप 10 में भी नहीं आता।वैश्विक स्तर पर यदि तुलना की जाए तो भारत में अब तक सिर्फ नाम परिवर्तन पर ही कार्य किया जाता रहा है, व्यावहारिक दृष्टिकोण से भारत में शिक्षा प्रणाली में अभी भी परिवर्तन की आवश्यकता है।