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Reading: बांग्लादेश में हिंदुओं के कत्लेआम पर विश्व की बेशर्म खामोशी
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INDIAMIX > दुनिया > बांग्लादेश में हिंदुओं के कत्लेआम पर विश्व की बेशर्म खामोशी
दुनिया

बांग्लादेश में हिंदुओं के कत्लेआम पर विश्व की बेशर्म खामोशी

IndiaMIXSANJAY SAXENA
Last updated: 24/12/2025 12:19 AM
By
INDIAMIX
SANJAY SAXENA
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7 Min Read
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The world's shameful silence on the massacre of Hindus in Bangladesh.

दुनिया/इंडियामिक्स बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार को ज़बरदस्ती गिराने के बाद वहां हिंदू समुदाय पर हो रही बर्बरता ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। हिन्दुओं पर अत्याचार के मामले में बांग्लादेश भी पाकिस्तान की राह पर चलता नज़र आ रहा है। हसीना की सरकार जाने के बाद बांग्लादेश में करीब दो सौ हिंदुओं की हत्या हो चुकी है, उनकी करोड़ों की संपत्ति लूटी जा चुकी है और हिंदू लड़कियों व महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाएं सामने आ रही हैं। भारत सरकार के पास इस संकट से निपटने के लिए कई मजबूत विकल्प मौजूद हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुप्पी ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि बड़े देश और मीडिया क्यों इस पर गंभीर नहीं हो रहे। बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के जाने के बाद अगस्त 2024 से बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले तेज हो गए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अगस्त से फरवरी 2025 तक इक्कीस हिंदुओं की हत्या हुई और एक सौ बावन मंदिरों पर हमले किए गए। पिछले दो महीनों में ही 76 घटनाएं दर्ज की गई, जिनमें लूटपाट, घरों पर आगजनी और महिलाओं पर अत्याचार शामिल हैं। एक रिपोर्ट में कहा गया कि 281 हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और एक सौ तिरासी हिंदुओं की हत्या कर दी गई। हाल ही में दीपू दास नामक हिंदू युवक को ईशनिंदा के झूठे आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला, जबकि वहां की पुलिस कह रही है कि उसके पास दीपू दास के खिलाफ ईशनिंदा का कोई सबूत नहीं है, जिससे भारत में जन आक्रोश फैल गया। इन घटनाओं ने साबित कर दिया कि वहां कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और अल्पसंख्यक हिंदू निशाने पर हैं।

जहां तक भारत सरकार क्या कदम उठा सकती है, इसकी बात की जाए तो हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार सबसे पहले बांग्लादेश सरकार पर कूटनीतिक दबाव बना सकती है। उच्च स्तरीय वार्ताओं के ज़रिए बांग्लादेश सरकार से अल्पसंख्यकों की रक्षा के ठोस कदम उठाने की मांग की जा सकती है, जैसा कि विदेश सचिव की यात्रा में किया गया। दूसरे विकल्प के रूप में संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुद्दा उठाना संभव है, जहां बांग्लादेश पर वैश्विक दबाव बन सके। तीसरा, मानवीय सहायता कार्यक्रम शुरू करके हिंदुओं को भोजन, चिकित्सा और शरण प्रदान की जा सकती है। चौथा, बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठनों पर नजर रखी जा सकती है और उनके भारत-विरोधी एजेंडे को रोकने के लिए दबाव बनाया जा सकता है। पांचवां विकल्प आर्थिक निर्भरता का इस्तेमाल है, क्योंकि बांग्लादेश भारत से ईंधन, बिजली, कपास, दवाइयां और खाद्यान्न मंगाता है। इनकी आपूर्ति पर शर्तें लगाकर या अस्थायी रोक लगाकर दबाव बनाया जा सकता है, बिना आम जनता को ज़्यादा नुकसान पहुंचाए। छठा, सीमा पर सुरक्षा बढ़ाकर हिंदू शरणार्थियों को सुरक्षित प्रवेश देकर उनकी सहायता की जा सकती है। ये सभी कदम क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखते हुए प्रभावी साबित हो सकते हैं।

वैसे मोदी सरकार पहले ही बांग्लादेश के साथ अपनी चिंताएं साझा कर चुकी है और उच्चायोग वहां स्थिति पर नज़र रख रहा है। दिसंबर 2024 में बांग्लादेश ने कहा कि 1282 घटनाओं की जांच में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन ये कदम अपर्याप्त हैं, क्योंकि हिंसा थम नहीं रही। भारत सांस्कृतिक कार्यक्रमों के ज़रिए दोनों देशों के हिंदू-मुस्लिम समुदायों में भाईचारा बढ़ा सकता है। साथ ही, व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने की शर्त पर अल्पसंख्यक सुरक्षा को बांध सकता है। अगर जरूरत पड़ी तो सैन्य सहायता या संयुक्त अभियान की तैयारी भी रखी जा सकती है, हालांकि फिलहाल कूटनीति को प्राथमिकता दी जा रही है ताकि बांग्लादेश की आम जनता पर बोझ न पड़े। ये विकल्प भारत की मानवीय प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

पूरे घटनाक्रम में अंतरराष्ट्रीय मीडिया और बड़े देशों की चुप्पी सबसे बड़ा सवाल है। संयुक्त राष्ट्र ने हिंसा पर चिंता जताई और महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने नस्लीय हमलों की निंदा की, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई। पश्चिमी देश जैसे अमेरिका और ब्रिटेन ने कुछ बयान दिए, लेकिन वे कमजोर रहे। अमेरिकी सांसदों ने दीपू दास हत्याकांड की निंदा की, पर व्यापक विरोध नहीं हुआ। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी और ह्यूमन राइट्स वॉच चुप हैं, जबकि अन्य संकटों पर वे मुखर रहते हैं। इसका कारण धार्मिक पूर्वाग्रह माना जा रहा है, क्योंकि हिंदू पीड़ित होने पर वैश्विक सहानुभूति कम मिलती है। उधर, पश्चिमी मीडिया ने हिंसा को कमतर आंका या फर्जी खबरों का हवाला देकर टाला। बीबीसी जैसे चैनलों ने सोशल मीडिया पोस्ट को झूठा बताया, जबकि घटनाएं सिद्ध हैं। अमेरिका की चुप्पी शेख हसीना विरोध से जुड़ी है, जिन्हें उन्होंने तानाशाह कहा था। यूरोपीय देशों ने भी हसीना की धर्मनिरपेक्ष छवि को नकार दिया। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भी पुरानी सरकार पर उंगली उठाई गई, वर्तमान हिंसा पर कम ज़ोर। यह दोहरा मापदंड हिंदुओं के खिलाफ वैश्विक उपेक्षा को दर्शाता है। बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार के चलते हिंदू आबादी घट रही है और कट्टर ताकतें मजबूत हो रही हैं। ऐसे में भारत को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। कूटनीति से आगे बढ़कर आर्थिक दबाव और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाना ज़रूरी है। दुनिया के अन्य देश विरोध में मुखर नहीं हो रहे क्योंकि उनके हित मुस्लिम बहुल देशों से जुड़े हैं। लेकिन भारत की मजबूत नीति से स्थिति सुधर सकती है। हिंदू समुदाय की सुरक्षा न केवल पड़ोसी का कर्तव्य है, बल्कि सभ्यता का प्रश्न है। सरकार के विकल्पों का सही इस्तेमाल ही बांग्लादेश में शांति ला सकता है।

डिस्क्लेमर

 खबर से सम्बंधित समस्त जानकारी और साक्ष्य ऑथर/पत्रकार/संवाददाता की जिम्मेदारी हैं. खबर से इंडियामिक्स मीडिया नेटवर्क सहमत हो ये जरुरी नही है. आपत्ति या सुझाव के लिए ईमेल करे : editor@indiamix.in

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