देवास: हाटपीपल्या सप्तदिवसिय श्रीमद्भागवत कथा का आज पूर्ण विराम यज्ञ हवन की पूर्णाहुति

शिक्षा का लक्ष्य केवल साक्षर ही नही व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करना है।जीवन के अंतिम दिनों में परीक्षित जी ने केवल अपना ही कल्याण ना सोच कर समस्त जग के कल्याण की सोची। और सभी का उद्धार कराया

देवास इंडियामिक्स न्युज हमारे कर्म ही हमें महान यानी ईश्वरीय गुणों से संपन्न करते है।स्वयं से पहले परहित की सोच सबसे बड़ा पुण्य धर्म व कर्म है । स्व लाभ के लिए लाखों रु भी दान भी व्यर्थ है जब तक आप पुण्य कर्म व धर्म करने से पहले स्वार्थ को नही त्यागते। इस तरह से किया कार्य ही संतोष का अनुभव कराएगा। यह कहते हुए आज कथा के अंतिम दिन विराम की और प्रवेश करते हुए दीदी मां ने श्रीकृष्ण सुदामा चरित्र , परीक्षित मोक्ष के साथ अन्य प्रसंगों को विस्तार दिया।

सप्तदिवसिय श्रीमद्भागवतम कथा का आजपूर्ण विराम यज्ञ हवन की पूर्णाहुति व भण्डारे के साथ हुआ गया । कथा के अंतिम दिन भी रसपान पाने के लिए भक्तों का सैलाब कथा स्थल पर उमड़ पड़ा। कथावाचिका साध्वीअखिलेश्वरी जी ने कहा कि केवल सात दिन में कथा श्रवण से आपका कल्याण तभी संभव है जब आप कथा के भाव कर्म अपने जीवन में उतारे। जिससे भक्ति व सद्कर्मो की बढ़ोतरी होगी, सभी लोग धर्म की ओर अग्रसर होंगे।

और इन सबके लिए आपको सच्चे गुरु रूपी संत की जीवन में सदैव आवश्यकता होगी जो आपको ईश्वर तक जाने के लिए सत्संग का भक्ति रुपी मार्ग दिखाएगा। दीदीमां ने कहा कि यदि परीक्षित को शुकदेवजी ना मिलते तो आज हम जग कल्याण करने वाले पवित्र भागवत ग्रंथ का श्रवण दर्शन नही कर पाते । ना ही सद्प्रेरणा पा सकते थे। जीवन के अंतिम दिनों में परीक्षित जी ने केवल अपना ही कल्याण ना सोच कर समस्त जग के कल्याण की सोची। और सभी का उद्धार कराया

साध्वी जी ने श्रीकृष्ण ,बलराम को शिक्षा प्राप्त करने हेतु गुरुकुल गमन प्रसंग को सुनाते हुए कहा कि श्री कृष्ण भले ही भगवान थे पर वोभी मार्ग दर्शनप्राप्त करने हेतु शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु संदीपन के पास गए।उन्होंने कहा कि आज पढ़ने से केवल डिग्री तो मिल जाती है पर मनुष्यता तो संतो सच्चे गुरुओं के मार्ग दर्शन से ही मिलती है।वास्तविक शिक्षा वही है जो व्यक्ति को सभी प्रकार के अज्ञान, व्यवहारिक व्यवहार में जीने का सलीका बताती है दीदी मां ने बताया कि प्राचीन काल में गुरुकुल में शिष्य व गुरु का बहुत ही संस्कारित रिश्ता होता था। तब शिक्षा का उद्देश्य और शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थियों के अंदर अच्छे संस्कार पैदा करना भी होता था।

उन्हें आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने के साथ वो सहीग़लत का फैसला लेकर अपना जीवन सही तरीके से जी सके यह विवेक जगाना शिक्षा का कार्य होता है । दीदी मां ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज की शिक्षा कहि ना कहि संस्कार व आद्यात्म से दूर हो गई है, जहां बालक केवल किताबी कीड़ा बनकर रह गया है । जहां पढ़ने को बहुत से शब्द है पर जीने जी कला सिखाने वाले नियम व सनातन धर्म को समझने के कोई नियम नही है ।दीदी मां ने सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती का उदाहरण देते हुए कहा कि कष्ट के समय काम आने,सही राह दिखाने वाले व्यक्ति ही आपके सच्चे मित्र है।श्रीकृष्ण सुदामा की सुंदर सजीव झाँकी में भक्त भावविह्ल हो गए और साथ ही भजनों पर खूब झूमकर भी आनंद उठाया।

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