मध्यप्रदेश विधानसभा उपचुनाव : कांग्रेस ने घोषित किये 9 अन्य उम्मीदवार, जाने किसमें कितना है दम

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मध्यप्रदेश में उपचुनावों (By-elections) की सरगर्मियाँ तेजी से चल रही है, आगामी दो-तीन दिनों में चुनावी आचार संहिता लग सकती है। भाजपा के अधिकतर उम्मीदवार जहाँ एक तरह से घोषित हैं, वहीं कांग्रेस ने आज अपने नौ अन्य उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी, इस लेख में हम इन उम्मीदवारों के दमखम तथा अन्य समीकरणों की चर्चा करेंगे।

संपादकीय / इंडियामिक्स न्यूज़ आज मप्र कांग्रेस ने उपचुनावों के लिये उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की, जिसमें 9 उम्मीदवारों के नाम घोषित किये गये, 15 उम्मीदवारों की घोषणा कांग्रेस पहले ही कर चुकी है, इस तरह कुल 24 सीटों पर कांग्रेस के चेहरे साफ हो चुकें हैं, अब मात्र मुरैना, बड़ा मलहारा, ब्यावरा तथा मेहगांव में उम्मीदवार की घोषणा बाकी है।

मध्यप्रदेश विधानसभा उपचुनाव : कांग्रेस ने घोषित किये 9 अन्य उम्मीदवार, जाने किसमें कितना है दम
कांग्रेस द्वारा घोषित उम्मीदवारों की सूची

कांग्रेस ने जौरा से पंकज उपाध्याय, सुमावली से अजब सिंह कुशवाहा, ग्वालियर पूर्व से सतीश सिकरवार, पोहरी से हरिवल्लभ शुक्ला, मुंगावली से कन्हैया राम लोधी, सुरखी से भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुई पारूल साहू, मांधाता से उत्तम राजनारायण सिंह, बदनावर से अभिषेक सिंह तथा सुवासरा से राकेश पाटीदार को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।

मध्यप्रदेश विधानसभा उपचुनाव : कांग्रेस ने घोषित किये 9 अन्य उम्मीदवार, जाने किसमें कितना है दम
प्रतीकात्मक चित्र – साभार वेब दुनिया

आज घोषित उम्मीदवारों की सूची को देख कर साफ झलक रहा है कि प्रदेश कांग्रेस के नीति निर्धारण में कमलनाथ का कद कितना बढ़ गया है, घोषित सूची के सभी उम्मीदवार एक तरह से कमलनाथ द्वारा चयनित उम्मीदवार कहे जा सकतें हैं। बताया जा रहा है कि कमलनाथ द्वारा करवाये गये तीन विभिन्न सर्वे के आधार पर इन उम्मीदवारों की घोषणा की गई है। 

आइये जानतें हैं किसमें कितना है दम

  • जौरा – पंकज उपाध्याय

जातिगत रूप से ब्राह्मण, राजपूत, किरार (धाकड़) और कुशवाहा के प्रभाव वाली इस विधानसभा में कांग्रेस ने ब्राह्मण मतों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुये पंकज उपाध्याय को अपना उम्मीदवार बनाया है, प्रदेश कांग्रेस के महासचिव उपाध्याय पिछली बार भी चुनाव लड़ना चाहतें थें लेकिन सिंधिया समर्थक दिवंगत विधायक बनवारीलाल शर्मा के कारण उनका नम्बर नहीं लग पा रहा था, लेकिन इस बार उनके चुनाव लड़ने की चर्चा थी जो सूची आने के बाद सही साबित हुई।

ब्राह्मण उम्मीदवार घोषित कर करने मात्र से कांग्रेस की राह इस विधानसभा में आसान हुई है ऐसा कहना मुश्किल है। क्योंकि यहां पर बसपा का भी अच्छा खासा जनाधार है, बसपा ने यहां पर पूर्व विधायक सोनेराम कुशवाहा को इसी कारण अपना उम्मीदवार घोषित किया है। कुशवाहा का जनाधार पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं में भीअच्छा है, जिसके साथ इनको बसपा का पारंपरिक मत भी मिलेगा, इसकी वजह से भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों के उम्मीदवारों को बराबर नुकसान देने में सक्षम है।

इस सीट के जटिल समीकरणो को देखते हुये पंकज उपाध्याय को जिताऊ उम्मीदवार दावे से नहीं कहा जा सकता। हालांकि भाजपा ने अभी तक यहां से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है इसलिये पूरी पिक्चर क्लियर नहीं हैं, फिर भी अगर भाजपा यहां दिवंगत विधायक के पुत्र प्रदीप शर्मा या पूर्व विधायक सत्यपाल सिकरवार को अपना उम्मीदवार बनाती है तो चुनाव और टाइट हो सकतें हैं।

सुमावली – अजब सिंह कुशवाहा

बताया जा रहा है कि बसपा की ओर से सोनेराम कुशवाहा का टिकट होने से पूर्व विधायक मनीराम धाकड़ निर्दलीय चुनाव लड़ सकतें हैं, अगर ऐसा होता है भाजपा के लिये मुश्किले बढ़ सकती है। इस स्थिति में पिछड़ा वोट तीन हिस्सों में बंटेगा जिससे भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान होगा, जिसकी वजह से भाजपा हार भी सकती है। फिलहाल भाजपा का उम्मीदवार घोषित नहीं होने की वजह से तस्वीर साफ नहीं है, भाजपा का उम्मीदवार आने के बाद ही स्थिति का वास्तविक आकलन किया जा सकता है, वर्तमान में यहाँ भाजपा व कांग्रेस दोनों ही मुश्किल में दिख रहें हैं।

सुमावली से कांग्रेस ने उचित उम्मीदवार नहीं दिया है। जातिगत समीकरणों के अनुसार कुशवाहा बिरादरी विधानसभा का सबसे बड़ा वोट बैंक हैं लेकिन मात्र इतना ही काफी नहीं हैं। भाजपा के परम्परागत सामान्य मतों व विधानसभा की दूसरी सबसे बड़ी जाति गुर्जर से होने के कारण एंदलसिंह कंसाना की स्थिति मजबूत दिख रही है।

पूर्व विधायक कुशवाहा के मुकाबले क्षेत्र में कंसाना का व्यक्तिगत व राजनीतिक प्रभाव भी अधिक है, जो उनके लिये मददगार होगा साथ ही इस उम्मीदवारी ने स्थानीय कांग्रेस में भितरघात की संभावना व बगावत के अंदेशे को मजबूत कर दिया है, जिसका नुकसान होना तय है।

भाजपा को यहाँ से चुनाव जीतने के लिये दो काम प्रमुखता से करने होंगे, पहला पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार को साधना तथा कुशवाहा की उम्मीदवारी से नाराज होने वाले वृंदावन सिंह सिकरवार, मानवेन्द्र सिंह गांधी व उनके समर्थकों को साधना, जो वर्तमान स्थिति में सिंधिया के समर्थन से आसान है। इन दोनों नेताओं की महत्वकांक्षा का उपयोग कर भाजपा यहां आसानी से जीत सकती है।

इस उम्मीदवारी के बाद भाजपा के सामने गुर्जर व किरार मतों के साथ राजपूत मतों को अपने से जोड़े रखना आवश्यक हो गया है, ऐसा करने के लिये अंदरखाने नाराज बताये जा रहे सत्यपाल सिंह सिकरवार को साधना आवश्यक है, अगर भाजपा उन्हें जौरा से चुनाव लड़वा दे तो उनका इस विधानसभा में सहयोग मिलेगा वही जौरा सीट पर भी जीत की संभावना बढ़ जायेगी। वर्तमान स्थिति में इतना दावे से कहा जा सकता है कि यहाँ भाजपा के संभावित उम्मीदवार की स्थिति कांग्रेस के मुकाबले मजबूत है।

ग्वालियर पूर्व से सतीश सिकरवार

ग्वालियर पूर्व से भाजपा की ओर से मुन्नालाल गोयल लड़ेंगे जिनको सतीश सिकरवार टक्कर देंगे। कांग्रेस ने यहां पर मजबूत उम्मीदवार दिया है। सतीश सिंह सिकरवार मुन्नालाल गोयल से पिछले चुनाव में हार चुके हैं, गोयल के भाजपा के आने के बाद इन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। अतः दोनों पारंपरिक विरोधियों के बीच यहां पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।

जातिगत समीकरणों के आधार पर कांग्रेस की उम्मीदवारी सही है, गोयल जहाँ विधानसभा से सबसे बड़े वोट बैंक बनिया बिरादरी से आतें हैं वहीं सिकरवार दूसरे सबसे बड़े वोट बैंक ठाकुर बिरादरी से आतें हैं। यह सीट भाजपा की पारंपरिक सीट रही है, अतः मात्र जातिगत समीकरणों को साधने से कांग्रेस की दाल यहां नहीं गलेगी। अगर मुन्नालाल गोयल के लिये भाजपा एकजुट होकर लड़ती है तथा अनूप मिश्रा, प्रभात झा व जयभान सिंह पवैया के समर्थक इनके साथ होतें हैं तो भाजपा आसानी से जीत सकती है।

वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा उम्मीदवार की हार तभी हो सकती है जब जयभान सिंह पवैया व अनूप मिश्रा का सहयोग न हो, इसी को ध्यान में रखते हुये सिकरवार को यहां से कांग्रेस ने उतारा है। लेकिन इसका कितना लाभ होगा यह चुनाव के समय पता चलेगा। वर्तमान स्थिति में यहां रोचक चुनावी मुकाबला देखने को मिल सकता है।

पोहरी से हरिवल्लभ शुक्ला

पोहरी से हरिवल्लभ शुक्ला के ही चुनाव लड़ने की उम्मीद थी, यहां विकल्पहीनता के कारण कांग्रेस ने नये व्यक्ति को लड़वाने की वजाय अनुभव को प्रधानता दी, जिसकी वजह से ही इनका नाम तय हुआ। शुक्ला यहां से कांग्रेस व समता दल के टिकट पर तीन बार विधायक रह चुके हैं तथा पांच बार चुनाव लड़ चुके हैं। अतः भाजपा के सम्भावित उम्मीदवार सुरेश धाकड़ व बसपा उम्मीदवार कैलास कुशवाहा का मुकाबला करने के लिये कांग्रेस के पास इनके अलावा कोई अन्य अनुभवी व जिताऊ विकल्प नहीं था।

हरिवल्लभ शुक्ला की उम्मीदवारी ने चुनाव को जटिल बना दिया है। जातिगत आधार पर शुक्ला की उम्मीदवारी मजबूत दिखाई देती। भाजपा उम्मीदवार सर्वाधिक बड़े जातीय समूह किरार से आतें हैं तथा बसपा उम्मीदवार कुशवाहा विधानसभा की तीसरी सबसे बड़े वोट बैंक से आतें हैं। लेकिन विधानसभा के सम्पूर्ण जातीय समीकरण को देखा जाये तो शुक्ला बड़ा फेरबदल करने में सम्भव है।

भाजपा उम्मीदवार को उनके परम्परागत सामान्य मतदाता से मिलने वाले मतों में शुक्ला की दावेदारी सेंध लगाये गी, इसके साथ ही कांग्रेस के परम्परागत मत तथा अपने व्यक्तिगत सम्पर्कों के कारण शुक्ला सुरेश धाकड़ के सामने बड़ी चुनौती पेश करेंगे। बसपा के कैलास कुशवाहा के पास भी अपनी बिरादरी के मतों के साथ बसपा के पारंपरिक मतों के रूप में बड़ा वोट बैंक हैं। पिछले चुनावों में भाजपा के हारने के कारण भी इनकी मजबूत उपस्थिति रही। अगर यहां कुशवाहा अपना पिछला प्रदर्शन दोहरातें हैं तो भाजपा की हार तय मानी जा सकती है। 

यहां पर भाजपा उम्मीदवार को पार्टी के स्थानीय नेताओं से चुनाव में भितरघात का डर है साथ ही विधानसभा में उनकी व्यक्तिगत छवि के कारण भी उन्हें नुकसान होता दिख रहा है, ऐसे में वर्तमान में यहाँ भाजपा कांग्रेस से पिछड़ती दिखाई दे रही है।

  • मुंगावली – कन्हैया राम लोधी

यहां पर कांग्रेस ने अशोकनगर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष  कन्हैया राम लोधी को अपना उम्मीदवार बनाया है। लोधी जिले की राजनीति में किसान नेता के रूप में जाने जातें हैं। इनको ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थक होने के कारण जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन सिंधिया के जाने के बाद भी इन्होंने पार्टी का दामन नहीं छोड़ा, जिले में बिखरी कांग्रेस को जोड़ने के लिये कार्य किया व कमलनाथ का विश्वास जीता, जिसकी वजह से इनकी उम्मीदवारी तय हुई।

इनकी उम्मीदवारी का अन्य मुख्य कारण जिले की दोनों विधानसभा सीटों पर लोधी समुदाय के मतों की संख्या तथा पार्टी के पास कोई अन्य मजबूत उम्मीदवार नहीं होना भी है। कांग्रेस ने यहां आदिवासी, दलित, लोधी व मुस्लिम मतों के मजबूत जातिगत समीकरण को ध्यान में रखते हुये इनकी उम्मीदवारी तय की है, जो कि प्रथम दृष्टया समझदार चाल लगती है। लेकिन बसपा की तरफ से यहां दीपा देवेंद्र लोधी के चुनाव लड़ने की चर्चा है, अगर ऐसा है तो लोधी व दलित मतों पर बसपा द्वारा लगने वाली सेंध से इनको बड़ा नुकसान हो सकता है।

भाजपा उम्मीदवार बृजेन्द्र सिंह यादव विधानसभा के सबसे बड़े गैर आदिवासी – दलित जातीय समूह यादव से आतें हैं, जिनकी मत संख्या सार्वधिक है, इसके साथ ही भाजपा के परम्परागत मतों, तथा सिंधिया समर्थक सरपंचों का भी समर्थन इनको चुनाव में मिल सकता है, अगर भाजपा के प्रभावी नेता और सांसद KP यादव का गुट अगर चुनावों के समय भितरघात नहीं करता है तो इनको कोई खास समस्या नहीं है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस की जीत यहां से मुश्किल दिख रही है।

  • सुरखी – पारूल साहू

सुरखी इस उपचुनाव की सबसे चर्चित विधानसभाओं में से एक है, यहाँ भाजपा की ओर से सिंधिया समर्थक केबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, इनके भाजपा में आने के कारण भाजपा छोड़ कांग्रेस में गई पारूल साहू का मुकाबला करेंगे। साहू ने इनको 2013 के विधानसभा चुनाव में मात्र 141 मतों के अंतर से हराया था, कांग्रेस के पास विधानसभा में अपना कोई विकल्प नहीं था, अजय सिंह आदि बड़े व स्थापित नेता इस असहज स्थिति में चुनाव नहीं लड़ना चाहते थें, इन्हीं कारणों से यहाँ इन्हें लड़ाया जा रहा है। 

गोविंद सिंह राजपूत यहां के स्थापित नेता हैं, पाँच बार चुनाव लड़ चुके हैं, 3 बार विधायक रह चुकें हैं, ऐसे में इनके सामने प्रथम दृष्टया पारूल साहू कमजोर उम्मीदवार लग रही है। विधानसभा के राजनीतिक समीकरणों को देखा जाये तो यहां क्रमशः सर्वाधिक जातिगत संख्या वाला समुदाय है – दलित, दांगी, राजपूत, ब्राह्मण, पटेल, कुर्मी तथा यादव। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद है कि वो जातिगत रूप से अपने पारंपरिक मतों के साथ यादव व कुर्मी मतदाताओं के सहयोग से वो गढ़ जीत सकती है।

अगर इस विधानसभा के राजनीतिक इतिहास का अध्ययन किया जाये तो यह इस क्षेत्र की ऐसी प्रमुख विधानसभा है जहाँ जातिगत गणित की जगह उम्मीदवार की छवि, उसके कार्य, सम्पर्क तथा क्षेत्र से जुड़ाव का चुनाव जीतने में अधिक योगदान रहा है। इस पहलू पर गौर किया जाये तो जहाँ राजपूत विधानसभा की प्रभावशाली ठाकुर बिरादरी से आने के साथ सरकार में केंद्रीय मंत्री है व आगे भी रहेंगे, कद्दावर नेता हैं। वही पारुल साहू का कद इतना बड़ा नहीं है, भाजपा सन्गठन की सारी ताकत लगाने के बावजूद भी यह राजपूत के सामने मुश्किल से जीत पाई थी, साथ ही इनकी छवि भी कमजोर है, जिसकी वजह से भाजपा ने 2018 में इनका टिकट काटा था, ऐसे में पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह के साथ कदम से कदम मिला चुनाव लड़ने की तैयारी करते दिख रहे गोविंद सिंह राजपूत का मुकाबला करने में प्रथम दृष्टया पारूल साहू सक्षम नहीं दिख रहीं हैं। अगर यहाँ कांग्रेस पुरे दमखम से चुनाव लड़ें तथा भाजपा में भितरघात हो तो इनके जीतने की सम्भावना बन सकती है

  • मांधाता – उत्तम राजनारायण सिंह

मान्धाता विधानसभा से कांग्रेस ने नारायण सिंह पटेल का मुकाबला करने के लिये पूर्व विधायक ठाकुर राजनारायण सिंह पूर्णि के परिवार से उत्तम सिंह को चुना है जो कि कांग्रेस के पास उपलब्ध श्रेष्ठ विकल्प था। यहां भाजपा के लिये चुनाव अब आसान नहीं होगा।

इस विधानसभा में राजपूत समुदाय सबसे बड़ा जातिगत समूह है, जो कि एकजुट होकर वोट देने के लिये जाना जाता है, साथ ही विधानसभा की करणी सेना पर भी इस परिवार का एकाधार है जो राजपूत मतों को उत्तम सिंह के पक्ष में एकत्र करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। नारायण सिंह पटेल के भाजपा के आने के कारण भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर आदि भी इनका सहयोग कर सकतें है, जो कि यहाँ भाजपा को कमजोर करता है।

मजबूत क्षेत्रीय पृष्ठभूमि, जातिगत अनुकूल समीकरण के कारण यहाँ कांग्रेस भाजपा के मुकाबले ज्यादा मजबूत दिख रही है। नारायण सिंह पटेल के पक्ष में जातीय समीकरण बनते नहीं दिख रहें हैं, इनके आने से भाजपा समर्थक ब्राह्मण, राजपूत मत का बड़ा हिस्सा पार्टी के हाथ से जा रहा है, सारा गुर्जर मत इनके आने से भाजपा की ओर आता नहीं दिख रहा है। इसके बाद सबसे बड़े मत समूह भील, भिलाला व दलित समुदाय के भाजपा को मिलने वाले मतों को जोड़ने पर भी पटेल प्रथम दृष्टया उत्तम सिंह के मुकाबले कमजोर दिख रहें हैं, लेकिन यहां संघ, पंधाना विधायक राम गंगोड़े, भील समाज के अध्यक्ष व भाजपा नेता गुलाब सिंह वास्कले तथा सांसद नंदकुमार चौहान अगर पटेल को पुश करें तो एक कड़े मुकाबले में भाजपा यह सीट निकाल भी सकती है।

  • बदनावर – अभिषेक सिंह “टिंकू बन्ना”

यहाँ से कांग्रेस ने राजपूत समाज के मत विभाजन की संभावना को ध्यान में रख कर युवा अभिषेक सिंह को मौका दिया है। कांग्रेस द्वारा इनकी उम्मीदवारी को अप्रत्याशित माना जा रहा है लेकिन किसी बाहरी को चुनाव लड़वाने से क्षेत्र में अंदरूनी-बाहरी के मुद्दे पर चुनाव न भटके और कांग्रेस को ज्यादा नुकसान न हो इसलिये यह करना आवश्यक था। इसके साथ ही कांग्रेस के पास कोई बड़ा कद्दावर चेहरा यहाँ नहीं था जिस हेतु नये चेहरे पर दाव लगाने की मजबूरी भी है।

अभिषेक सिंह युवा कांग्रेस के नेता होने के साथ जिला कांग्रेस के प्रवक्ता व तेज तर्रार युवा हैं लेकिन यहाँ के जटिल जातिगत समीकरण तथा मप्र सरकार के उद्योग मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के कद को भेद पाना उनके लिये विधानसभा में बिखरे व अलग-अलग गुटों में बंटे संगठन के साथ कर पाना मुश्किल होगा। राजवर्धन सिंह के भाजपा से आने से नाराज चल रहें पूर्व विधायक भंवरसिंह शेखावत व अन्य भाजपा नेता अगर भितरघात करतें हैं तो हमें यहाँ अच्छी टक्कर देखने को मिल सकती है। फिलहाल सामान्य स्थिति में यहाँ कांग्रेस के उम्मीदवार मजबूत प्रतीत नहीं हो रहें हैं।

  • सुवासरा – राकेश पाटीदार

मंदसौर जिले की यह विधानसभा भाजपा का गढ़ मानी जाती है, यहाँ की वर्तमान राजनीतिक स्थिति तथा जातिगत समीकरण को ध्यान में रख कर कांग्रेस ने राकेश पाटीदार के रूप में उपयुक्त उम्मीदवार दिया है। जिला कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम करने के कारण पाटीदार के पास संगठनात्मक व चुनावी अनुभव है, ये युवा होने के साथ ही अनुभवी व स्वछ छवि के नेता हैं तथा विधानसभा के सबसे बड़े जातीय समूह पाटीदार से आतें हैं अतः इनकी उम्मीदवारी से भाजपा के संभावित उम्मीदवार व हरदीप सिंह डंग को मुश्किल हो सकती है।

हरदीप सिंह डंग अभी तक अपनी छवि और कांग्रेस के वोट बैंक की वजह से यहां से जीत जातें थें, लेकिन इस बार स्थिति बदली हुई है। बेवजह पार्टी छोड़ने के कारण मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग भी इनके विरोध में स्वतः स्फूर्त दिख रहा है कि जो कि सबसे बड़ी चुनौती है, इसके साथ चुनावों में भितरघात की संभावना इनको और कमजोर बनाती है।

जटिल जातीय समीकरण वाली इस विधानसभा में पोरवाल, पाटीदार, खाती व गुर्जर वर्ग के मत महत्वपूर्ण प्रभाव रखतें हैं, इनके अतिरिक्त सेंधव, राजपूत, जैन व मुस्लिम समाज का मत निर्णायक भूमिका निभाता है। पाटीदार, पोरवाल, राजपूत, जैन व सेंधव समाज के मतों के दम पर भाजपा के राधेश्याम पाटीदार ने अब तक यहाँ पर दमदार प्रदर्शन किया है, लेकिन इस बार पाटीदार समाज के साथ सेंधव समाज के काफी मत भाजपा के हाथ से छिटक सकतें हैं, अगर ऐसा है तो भाजपा उम्मीदवार की हार तय है, यही समीकरण राकेश पाटीदार की उम्मीदवारी का मूल कारण रहा होगा। हालांकि पिछले चुनावों की तरह इस बार भी अगर कांग्रेस के आईदान सिंह भाटी निर्दलीय लड़े या भितरघात करें ( जिसकी सम्भावना है, क्योंकि इस बार उनको टिकट की संभावना ज्यादा दिख रही थी ) तो थोड़ा नुकसान हो सकता है। फिलहाल यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने यहां पर एक मजबूत व योग्य उम्मीदवार दिया है, जिससे यहाँ पर एक बार फिर नजदीकी मुकाबला देखने को मिल सकता है।

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