मप्र उपचुनाव विशेष – करैरा विधानसभा सीट का संक्षिप्त राजनीतिक विश्लेषण

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मप्र में अगले महीने 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहें है, India MIX News आपके सामने हर विधानसभा सीट का राजनितिक विश्लेषण ला रहा है, जिससे आपकी राजनीतिक जानकारी बढ़ सके, इसी क्रम में पढिये शिवपुरी जिले की करैरा विधानसभा का राजनितिक विश्लेषण

मप्र उपचुनाव विशेष - करैरा विधानसभा सीट का संक्षिप्त राजनीतिक विश्लेषण
मप्र उपचुनाव विशेष - करैरा विधानसभा सीट का संक्षिप्त राजनीतिक विश्लेषण 2

यह सीट कई मामलों में विशेष सीट है, मसलन यहाँ से आज तक कोई व्यक्ति दुबारा विधायक नहीं चुना गया है, 2008 में अनुसूचित जाति के लिये इस सीट को आरक्षित किया गया, उसके बाद हुये 3 चुनावों में यहाँ से 2 बार कांग्रेस और 1 बार भाजपा को जीत मिली है. 

फिलहाल हमें यहाँ भाजपा के जसवंत जाटव, कांग्रेस के परागीलाल जाटव व बसपा के राजेन्द्र जाटव के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता हैं.

सीट का संक्षिप्त इतिहास

1977 से अब तक, यहाँ हुये 10 प्रमुख चुनावों में यहाँ भाजपा व जनता पार्टी ने 4 बार, कांग्रेस ने 5 बार व बसपा ने 1 बार जीत हासिल की है. 2003 में बसपा के लखनसिंह बघेल ऐसा करने में सक्षम हुये थें. यह चुनाव इस सीट का सबसे जटिल चुनाव था, इसमें भाजपा के रणवीर सिंह रावत 4% मतों के अंतर से दुसरे स्थान पर रहें थें, इस चुनाव में सपा, राष्ट्रीय समता दल समेत, स्थानीय स्तर पर लोकप्रिय रहें चन्द्रभान सिंह बुंदेला ने भी चुनाव लड़ा था, इसका परिणाम यह हुआ की इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार कीरत सिंह रावत को मात्र 3.7 प्रतिशत मत मिले, और वो छठे स्थान पर रहें, 

यह एक उदाहरण इस सीट पे चुनाव की जटिलता को समझाने के लिये पर्याप्त है. यहाँ जातिगत समीकरणों के साथ उम्मीदवार की व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक छवि का बहुत बड़ा योगदान प्रत्येक चुनाव में देखने को मिलता है. इसके साथ ही यहाँ बसपा के प्रदर्शन पर चुनाव परिणाम का काफी दारोमदार निर्भर करता है.

जातीय तथा अन्य समीकरण 

लगभग 2 लाख 40 हजार मतदाताओं वाली इस विधानसभा में SC वर्ग प्रमुख हैं, इसमें भी जाटव समुदाय के पास कुल विधानसभा की लगभग 15% मत संख्या है, जो इसे विधानसभा का सबसे बड़ा जातीय समूह बनाती हैं, यही कारण है की भाजपा, कांग्रेस व बसपा उम्मीदवार हमें जाटव समुदाय से देखने को मिल रहा है. 

यहाँ सबसे बड़ा व प्रमुख मतदाता समूह ओबीसी वर्ग का है, जिसमें रावत समाज का मत लगभग 13%, लोधी समाज का मत लगभग 8%, यादव समाज का मत लगभग लगभग 8%, कुशवाहा समाज का मत लगभग 8% व गुर्जर समाज का मत लगभग 7% हैं. इसके अतिरिक्त यहाँ पाल समाज के लगभग 7 हजार व मुस्लिम समाज के 10-12 हजार मतदाता हैं, जो चुनाव परिणामों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभातें हैं. 

यहाँ सामान्य वर्ग के पास भी ठीक-ठाक मत संख्या है, राजपूत समाज के पास लगभग 9.5%, ब्राह्मण समाज के पास लगभग 8.5% व बनिया समाज के पास 8 हजार मतों की संख्या है.

यह जटिल जातीय गणित ही इस विधानसभा को रोचक बनाता है, 2008 से पहले ओबीसी समुदाय को टारगेट कर के ही दोनों पार्टिया रावत, यादव अथवा राजपुत उममीदवार दियें. 2008 से यहाँ आरक्षण मिलने के बाद, पहले चुनाव मे बसपा व सपा ने जाटव समाज से अपना उम्मीदवार दिया, लेकिन भाजपा ने SC वर्ग के द्वितीय प्रमुख समुदाय खट्टिक से अपना उम्मीदवार दिया, जिसका उन्हें लाभ भी हुआ. 2013 के दुसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस दोनों ने खट्टिक समुदाय के उम्मीदवार पर दाव लगाया, बसपा की ओर से इस बार भी जाटव समुदाय से परगिलाल उम्मीदवार थे, इस चुनाव में कांग्रेस अपने वोटों को कटाने से बचा पाई, और जीतने में सक्षम हुई. 2018 में कांग्रेस व बसपा ने जाटव समुदाय से अपना उम्मीदवार दिया, जिसकी वजह से जाटव समाज के मत बराबर बंटें, इस बार भी भाजपा ने खट्टीक समुदाय के उम्मीदवार पर भरोसा जताया लेकिन कांग्रेस के किसान कर्जमाफी के वादे, उम्मीदवार के प्रति स्थानीय रोष का खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा और भाजपा की हार हुई.

विधासनभा के जातीय व अन्य समीकरणों तथा पिछले तीन चुनावों पर बात करने के बाद हम यह कह सकतें हैं की यहाँ जातीय रूप से जाटव, रावत, यादव, लोधी व कुशवाहा समाज के मत काफी निर्णायक है. इस बार तीनों प्रमुख दलों ने जाटव समाज से उम्मीदवार देकर जाटव समाज के मतों को बांटने का काम किया है, ऐसे में इस बार जीत का सेहरा उसी उम्मीदवार के सर पर बंधने की उम्मीद है जो पिछड़ा वर्ग के मतों के एक बड़े हिस्से को अपनी ओर करने में सक्षम रहेगा.

वर्तमान राजनीतिक स्थिति

विधानसभा की वर्तमान राजनीतिक स्थिति भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किलों भरी है. कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आये जसवंत सिंह जाटव व अन्य सिंधिया समर्थकों को यहाँ स्थानीय भाजपा में समायोजन की समस्या हो रही है, पूर्व विधायक राजकुमार खट्टिक व उनके समर्थकों के द्वारा भितरघात भी यहाँ जसवंत जाटव को डर हैं.

कुछ ऐसा ही हाल यहाँ बसपा से कांग्रेस में शामिल हुये परागीलाल जाटव का भी बताया जा रहा है, पूर्व विधायक व कांग्रेस नेत्री शकुन्तला खट्टिक के असहयोग के साथ स्थानीय कांग्रेस काडर में संतुलन बनाने का दोहरा कार्य इन्हें करना हैं, इसके अलावा बसपा से राजेन्द्र जाटव की उम्मीदवारी भी परागीलाल जाटव को परेशान करती हुई दिख रही हैं.

सभी स्थितियों को एक साथ जोड़ कर देखा जाये तो कुछ विषमताओं के बावजूद भी परागीलाल जाटव यहाँ जसवंत जाटव के सामने एक बड़ी चुनौती है, SC वर्ग के स्थानीय मतदाताओं में परागीलाल जाटव की व्यक्तिगत पकड, इसके साथ ही यादव, कुशवाहा, मुस्लिम व अन्य समुदायों से कांग्रेस को मिलने वाले पारम्परिक मत इन्हें यहाँ मजबूत स्थिति में पंहुचाते हैं. 

दूसरी और जसवंत जाटव को भाजपा के संगठन व सिंधिया का ही सहारा है, उन्हें यहाँ स्थानीय भाजपा के असहयोग के साथ भितरघात का भी खतरा है, ऐसे में इनकी स्थिति कमजोर प्रतीत होती है. अगर भाजपा यहाँ अपने पारम्परिक मतों के साथ ओबीसी वर्ग से अच्छा मत प्रतिशत अपने पाले में करें व बसपा उम्मीदवार 20% से अधिक मत अपने पाले में करने में सक्षम होता है तो भाजपा के यहाँ से जितने की संभावना बनती हैं.

वर्तमान में यही कहा जा सकता है की यहाँ जसवंत जाटव की गाड़ी रामजी के भरोसे ही है.

प्रमुख मुद्दे

इस सीट के बहुसंख्यक पिछड़ा व अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं का मुख्य व्यवसाय किसानी हैं अतः यहाँ भी खेती मुख्य मुद्दा है. किसान कर्ज माफ़ी को लेकर यहाँ भी किसानों का मिलाजुला रूख नजर आता है, एक हिस्सा जहाँ इसका समर्थन कर रहा है वही दूसरा हिस्सा इसे ढकोसला बता रहा है. 

कांग्रेस यहाँ किसान कर्ज माफ़ी, कमलनाथ सरकार की उपलब्धियों, शिवराज सरकार के समय हुये भ्रष्टाचार आदि के साथ जसवंत जाटव व सिंधिया की गद्दारी को मुख्य मुद्दा बनाकर जनता के सामने जा रही है वही भाजपा मोदी और शिवराज सरकार की उपलब्धियों, कमलनाथ सरकार के 15 महीनों के कुप्रबंधन, लूट व अराजकता के माहौल, जनता के काम को रोकने की नीति आदि को लेकर मैदान में उतरेगी. 

इस सीट पर हाल ही शिवराज सरकार द्वारा शुरू की गई किसान सम्मान निधि योजना को भुनाने का प्रयास भी भाजपा के द्वारा किया जायेगा, इसके साथ ही भाजपा के पास यहाँ भी कृषि सुधार कानूनों को लेकर जनता को समझाने की चुनौती होगी. यहाँ भी कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों के द्वारा किसान सुधार कानूनों का मुखर नकारात्मक प्रचार किया जा रहा है, अगर भाजपा इसको काटने में नाकाम होती है तो यहाँ बड़ा नुकसान हो सकता है. 

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