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INDIAMIX > देश > कांग्रेस के विरोध के बाद भी मोदी के खास शशि थरूर
देश

कांग्रेस के विरोध के बाद भी मोदी के खास शशि थरूर

Shashi Tharoor is Modi's special man despite opposition from Congress

SANJAY SAXENA
Last updated: 20/05/2025 3:13 PM
By
SANJAY SAXENA
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10 Min Read
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Shashi Tharoor is Modi's special man despite opposition from Congress

न्यूज़ डेस्क/इंडियामिक्स ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की केंद्र सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ अपने सख्त रुख को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूती से रखने के लिए एक बड़ा कूटनीतिक कदम उठाया है। इस रणनीति के तहत भारत सरकार ने एक के बाद एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गठित कर दुनिया के उन देशों की यात्रा की योजना बनाई है जो या तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं या फिर भारत के रणनीतिक सहयोगी माने जाते हैं। इन प्रतिनिधिमंडलों का उद्देश्य न केवल भारत के पक्ष को वैश्विक समुदाय के सामने स्पष्ट करना है, बल्कि यह दिखाना भी है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत की राजनीतिक व्यवस्था पूरी तरह एकजुट है। लेकिन इस राष्ट्रहित की कवायद के बीच एक ऐसा विवाद खड़ा हो गया है जिसने न सिर्फ कांग्रेस पार्टी के भीतर बहस को जन्म दे दिया है बल्कि केंद्र और विपक्ष के रिश्तों में भी खटास बढ़ा दी है।

विवाद की जड़ में कांग्रेस सांसद शशि थरूर का नाम है जिन्हें केंद्र सरकार ने बिना कांग्रेस नेतृत्व की सिफारिश के एक प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर लिया। जबकि कांग्रेस का दावा है कि उसने अपनी तरफ से चार वरिष्ठ सांसदों के नाम सरकार को भेजे थे, जिनमें से किसी को भी नहीं चुना गया। कांग्रेस का यह भी आरोप है कि सरकार ने अपनी मनमर्जी से शशि थरूर को चुना और उन्हें प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सौंप दिया। वहीं, केंद्र सरकार के संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस से कोई औपचारिक नाम नहीं मांगे गए थे, बल्कि जो जानकारी दी गई थी, वह केवल सूचनात्मक थी, कोई आग्रह नहीं। कांग्रेस इस सफाई से संतुष्ट नहीं है और उसका मानना है कि सरकार ने जानबूझकर कांग्रेस को दरकिनार किया और शशि थरूर को शामिल कर सियासी संदेश देने की कोशिश की।

यह पहला मौका नहीं है जब शशि थरूर की कांग्रेस नेतृत्व से टकराव की स्थिति सामने आई है। इससे पहले भी वे विदेश राज्य मंत्री रहते हुए ‘कैटल क्लास’ जैसे ट्वीट की वजह से विवादों में आए और उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में खड़े होने के बाद से तो पार्टी के भीतर उन्हें शक की नजर से देखा जाने लगा। लेकिन इन सबके बावजूद शशि थरूर की एक अलग पहचान है एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुभवी राजनयिक की, जो संयुक्त राष्ट्र में 30 साल से ज्यादा समय तक अपनी सेवाएं दे चुके हैं। उनकी वाक्पटुता, कूटनीतिक समझ और वैश्विक मंचों पर प्रभावशाली उपस्थिति ने उन्हें न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी विशिष्ट पहचान दिलाई है।

शशि थरूर ने खुद को प्रतिनिधिमंडल में शामिल किए जाने पर खुशी और गर्व का इजहार किया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि वे भारत सरकार के इस आमंत्रण से सम्मानित महसूस कर रहे हैं और जब भी राष्ट्रीय हित की बात होगी, वे पीछे नहीं रहेंगे। उन्होंने किसी तरह की पार्टी अनुमति की आवश्यकता नहीं समझी, जो कांग्रेस नेताओं को खटक गया। पार्टी नेतृत्व का यह मानना है कि थरूर को पहले नेतृत्व से राय लेनी चाहिए थी, लेकिन शायद थरूर को खुद ही इस बात की आशंका थी कि यदि वे अनुमति मांगते तो उन्हें मना कर दिया जाता। ऐसे में उन्होंने खुद ही निर्णय लेना उचित समझा, खासकर तब जब उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव मिला।

शशि थरूर की इस भूमिका से न केवल बीजेपी को लाभ मिल रहा है बल्कि खुद थरूर की राजनीतिक हैसियत भी बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब संसद में विदेश नीति पर बोलते हुए कांग्रेस पर हमला करते हैं, तब वे विशेष रूप से यह कहते हैं कि शशि थरूर इस दायरे से बाहर हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि कांग्रेस को यह चुभेगा। वहीं, बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने भी थरूर की तारीफ करते हुए कहा कि उनकी विदेश नीति की समझ और संयुक्त राष्ट्र में उनके अनुभव से कोई इनकार नहीं कर सकता। फिर कांग्रेस ने उन्हें क्यों नहीं चुना? क्या यह राहुल गांधी की असुरक्षा की भावना है? यह सवाल बीजेपी के माध्यम से आम जनमानस के बीच भी फेंका गया है, जो कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है।

कांग्रेस की तरफ से जिन चार सांसदों के नाम सुझाए गए थे उनमें आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉ. सैयद नसीर हुसैन और राजा ब्रार शामिल थे। आनंद शर्मा पूर्व विदेश राज्य मंत्री रह चुके हैं, गौरव गोगोई लोकसभा में कांग्रेस के डिप्टी लीडर हैं और राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। वहीं, राजा ब्रार और नसीर हुसैन को लेकर भी राजनीतिक विवाद जुड़ा रहा है। राजा ब्रार पर खालिस्तानी समर्थक गायकों के समर्थन का आरोप लगा है और नसीर हुसैन की एक रैली में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगने की घटना भी विवाद का कारण बनी थी। ऐसे में शशि थरूर का नाम इनमें से अधिक उपयुक्त और अंतरराष्ट्रीय छवि वाला नजर आता है।

दरअसल, कांग्रेस को इस बात की तकलीफ है कि एक ऐसा नेता जो पार्टी के भीतर लगातार उपेक्षा का शिकार रहा है, आज राष्ट्रीय मंच पर केंद्र सरकार द्वारा प्रतिष्ठित किया जा रहा है। यह बात कांग्रेस के नेतृत्व को असहज कर रही है। हालांकि पार्टी के कुछ नेता यह मानते हैं कि थरूर की राय और सोच भले ही अलग हो, लेकिन पार्टी को उन्हें अपने साथ बनाए रखना चाहिए क्योंकि उनका अंतरराष्ट्रीय अनुभव और बौद्धिक क्षमता कांग्रेस के लिए ताकत बन सकती है। कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में हालांकि कुछ नेताओं ने यह भी कहा कि थरूर ने पार्टी की लक्ष्मण रेखा पार कर ली है और अब उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन फिलहाल कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।

एक ओर कांग्रेस थरूर के खिलाफ कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं है, तो दूसरी ओर वह उन्हें खुला समर्थन भी नहीं दे पा रही है। यह दुविधा कांग्रेस नेतृत्व के भीतर चल रही अंदरूनी खींचतान और सत्ता संरचना की अस्थिरता को दर्शाती है। शशि थरूर एक ऐसे नेता हैं जो पार्टी लाइन से इतर राय रखने की हिम्मत करते हैं और अपनी बातों को खुले मंच पर रखते हैं। यही बात उन्हें विशिष्ट बनाती है और शायद यही बात कांग्रेस नेतृत्व को चुभती भी है।

इस पूरे प्रकरण का एक और पहलू यह है कि थरूर को केरल में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भी केंद्र सरकार ने आगे किया है। केरल में कांग्रेस के लिए हर सीट महत्वपूर्ण है, और वायनाड से राहुल गांधी के सांसद होने के कारण इस राज्य की राजनीतिक गतिविधियों पर पार्टी विशेष नजर रखती है। शशि थरूर तिरुवनंतपुरम से सांसद हैं और उनकी लोकप्रियता के चलते बीजेपी को लगता है कि उनके माध्यम से केरल में एक वैकल्पिक नैरेटिव खड़ा किया जा सकता है। यदि थरूर को कांग्रेस में उचित सम्मान और भूमिका नहीं दी गई तो यह संभावना बन सकती है कि वे किसी भी समय पार्टी छोड़ दें या कम से कम एक स्वतंत्र रुख अख्तियार कर लें, जो कांग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदायक साबित होगा।

शशि थरूर के पास इस वक्त अपने राजनीतिक जीवन को नई दिशा देने का पूरा अवसर है। वो न तो कांग्रेस के लिए पूरी तरह विश्वसनीय रहे हैं, न ही बीजेपी के लिए आज्ञाकारी। लेकिन यही स्थिति उन्हें खास बनाती है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि थरूर जैसे नेता पार्टी की विविधता और बौद्धिक गहराई का प्रतीक हैं। यदि उन्हें दरकिनार किया जाता है तो इससे न केवल पार्टी की छवि को नुकसान होगा, बल्कि ऐसे नेताओं के बीच भी निराशा बढ़ेगी जो विचार और विवेक के आधार पर राजनीति करना चाहते हैं।

अब देखना यह है कि कांग्रेस इस चुनौती से कैसे निपटती है। क्या वह शशि थरूर को उनके हाल पर छोड़ देगी, या फिर उन्हें पार्टी के भीतर सम्मानजनक भूमिका देकर संतुलन साधेगी? केंद्र सरकार की रणनीति तो साफ है विपक्ष के प्रभावशाली नेताओं को अलग-थलग करना, उन्हें राष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठा देना और इससे विपक्ष के भीतर मतभेद को और गहरा करना। कांग्रेस यदि समय रहते नहीं चेती, तो यह मामला सिर्फ शशि थरूर तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि पार्टी के भीतर असंतोष और टकराव को और गहरा कर देगा। राजनीति में प्रतीकात्मक घटनाओं का बड़ा महत्व होता है, और शशि थरूर की यह नियुक्ति भी आने वाले समय में भारतीय राजनीति के समीकरणों को प्रभावित कर सकती है।  

डिस्क्लेमर

 खबर से सम्बंधित समस्त जानकारी और साक्ष्य ऑथर/पत्रकार/संवाददाता की जिम्मेदारी हैं. खबर से इंडियामिक्स मीडिया नेटवर्क सहमत हो ये जरुरी नही है. आपत्ति या सुझाव के लिए ईमेल करे : editor@indiamix.in

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