क्या मज़दूरों को मिलेगा लॉकडाउन के 54 दिनों का पूरा वेतन? 12 जून को सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला

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देश में लगे लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के मामले में उद्योग जगत से जुड़े लोग सरकार की इस दलील से संतुष्ट नहीं थे. वहीं उन्होंने 29 मार्च से 17 मई के बीच के 54 दिनों का पूरा वेतन देने में असमर्थता जताई है. जिसके बाद मामले में सुनवाई करते हुए SC ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. जिसे SC 12 जून को सुनाएगी.

क्या मज़दूरों को मिलेगा लॉकडाउन के 54 दिनों का पूरा वेतन? 12 जून को सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला

नई दिल्लीः इंडियामिक्स न्यूज़ लॉकडाउन की अवधि में कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है. 12 जून को इस मसले पर कोर्ट का आदेश आएगा. उद्योगों ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के 29 मार्च के आदेश को चुनौती दी है जिसमें कहा गया था कि लॉकडाउन के दौरान का पूरा वेतन नियोक्ता को देना होगा.

आज की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि मज़दूरों को पूरा वेतन देने का आदेश जारी करना ज़रूरी था. मज़दूर आर्थिक रूप से समाज के निचले तबके में हैं. बिना औद्योगिक गतिविधि के उन्हें पैसा मिलने में दिक्कत न हो, इसका ध्यान रखा गया. अब गतिविधियों की इजाज़त दे दी गई है. 17 मई से उस आदेश को वापस ले लिया गया है.

उद्योग सरकार की इस दलील से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने 29 मार्च से 17 मई के बीच के 54 दिनों का पूरा वेतन देने में असमर्थता जताई. उनकी दलील थी कि सरकार को उद्योगों की मदद करनी चाहिए. गौरतलब है कि पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल किया था कि जिस दौरान उद्योगों में कोई उत्पादन नहीं हुआ, क्या सरकार उस अवधि का वेतन देने में उद्योगों की मदद करेगी.

जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने आज भी पूछा, ‘इंडस्ट्रीयल डिस्प्यूट एक्ट के तहत विवाद की स्थिति में उद्योगों को कर्मचारियों को 50 फीसदी वेतन देने के लिए कहा जा सकता है. आपने 100 फीसदी वेतन देने को कहा. क्या आपको ऐसा करने का अधिकार है?”

केंद्र ने कोर्ट में दाखिल हलफनामे में तो यह कहते हुए कड़ा स्टैंड लिया था कि पूरा वेतन देने में आनाकानी कर रहे उद्योगों की एडिट रिपोर्ट देखनी चाहिए. लेकिन कोर्ट के इस सवाल पर सरकार की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा, “अगर उद्योग और मज़दूर रकम के भुगतान पर आपस में कोई समझौता कर सकते हैं तो इस पर सरकार आपत्ति नहीं करेगी.”

बेंच के सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा, “एक तरफ आप मज़दूरों को पूरा पैसा दिलवाने की बात कर रहे हैं, दूसरी तरफ मालिक और मज़दूरों में आपसी समझौते की बात कर रहे हैं. ठीक है आर्थिक गतिविधियों का पूरी तरह शुरू हो जाना जरूरी है, लेकिन इसमें सरकार की क्या भूमिका होगी? उसे दोनों पक्षों में संतुलन के लिए कुछ करना चाहिए.”

सुनवाई के उद्योगों के वकीलों ने कई दलीलें दीं. उनका कहना था कि सरकार ने आपदा राहत के नाम पर यह आदेश दिया था. लेकिन उसने यह नहीं समझा कि उसका आदेश अपने आप में उद्योगों के लिए आपदा है. एम्पलाई स्टेट इंश्योरेंस यानी कर्मचारी राज्य बीमा के खाते में 80 से 90 हजार करोड़ रुपए हैं. सरकार चाहती तो 30 हजार करोड़ रुपए खर्च कर पूरे देश के कर्मचारियों को इस अवधि का वेतन दे सकती थी.”

कोर्ट ने जब इस पहलू पर एटॉर्नी जनरल से जवाब मांगा, तो उन्होंने कहा, “कर्मचारी राज्य बीमा के खाते में जमा पैसों को कहीं और ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है. विशेष परिस्थितियों में अगर कोई कर्मचारी चाहे तो उसमें से पैसे ले सकता है.” आज की सुनवाई में कई मजदूर संगठनों ने भी अपनी दलीलें रखीं. उनका कहना था कि सरकार और उद्योग अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं. मजदूरों को उनका पूरा पैसा मिल सके, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने करीब डेढ़ घंटे तक सभी पक्षों को विस्तार से सुना. उसके बाद आदेश सुरक्षित रख लिया. कोर्ट के आदेश से यह तय होगा कि क्या मजदूरों को 54 दिन की अवधि का पूरा वेतन मिलेगा? अगर हां तो इसमें क्या कुछ हिस्सा सरकार भी देगी?

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