रतलाम : अमृत सागर के किनारे पर विराजे “गढ़ कैलाश”, रिश्वत के धन से बना अमृत सागर – जानिए क्या है पूरी कहानी?

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अपराधी द्वारा मुंशी शामत अली को रिश्वत के रूप में बहुत सारा धन उनके घर भिजवा दिया/ चांदनी चौक में बनाया सोने व चांदी का द्वार, तब 9 लाख रुपये में हुआ था महाराजा सज्ज्न सिंह जी की राजकुमारी का विवाह – राज ज्योतिषाचार्य पंडित अभिषेक जोशी

रतलाम : अमृत सागर के किनारे पर विराजे &Quot;गढ़ कैलाश&Quot;, रिश्वत के धन से बना अमृत सागर - जानिए क्या है पूरी कहानी?

रतलाम इंडियामिक्स न्यूज़ भगवान शिव की भक्ति के लिए उत्तम कहे जाने वाले इस श्रावण मास का आज दूसरा सोमवार है। आज हम आपको रतलाम के प्राचीन श्री गढ़ कैलाश मन्दिर से जुड़े इतिहास के बारे मे बताएंगे। जिस तरह उज्जैन में बाबा महाकाल को अवंतिका नगर का प्रथम महाराजा कहा जाता है , ठीक उसी प्रकार अमृत सागर तालाब के किनारे बसे भगवान श्री गढ़ कैलाश को भी रत्नपुरी का महाराजा कहा जाता है। जिले के लाखों भक्तो की श्रद्धा इस मंदिर से जुड़ी है। श्रावण के आखरी सोमवार पर भगवान गढ़ कैलाश शाही ठाट-बाट के साथ नगर भृमण पर निकलते है।

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राज ज्योतिषाचार्य पंडित अभिषेक जोशी ने इंडियामिक्स न्यूज़ को जानकारी देते हुुये मन्दिर के प्राचीन इतिहास के बारे में बताया की मन्दिर की स्थापना की सटीक जानकारी तो उपलब्ध नहीं है किंतु इतिहास के पन्नो पर मन्दिर के उलेक्ख से प्रतीत होता है की यह मंदिर तत्कालीन महाराजा रणजीत सिंह (27 जनवरी 1864 – 20 जनवरी 1893) के कार्यकाल से भी पहले का है। मन्दिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहाँ भगवान शिव अपने परिवार के साथ विराजमान है। भगवान शिव का यह स्वरूप “श्री गोदी शंकर” कहलाता है और रतलाम में यह पहली बड़े आकार की प्रतिमा है इसके बाद दूसरी खेरादिवास व तीसरी स्वयं पं. जोशी के घर पर स्थापित है। वर्तमान में श्री गढ़ कैलाश मन्दिर का जीर्णोद्धार शिवरात्रि को 2 मार्च 2011 में उत्तम स्वामी जी व नर्मदानन्द जी के सानिध्य में हुआ था। गढ़कैलाश मन्दिर का यह क्षेत्र प्राचीन व सिद्ध क्षेत्र माना जाता है। विशेष रूप से तालाब के किनारे ही पंचमुखी हनुमान जी स्वयं विराजित हैं तथा पास ही गणेश मंदिर, शनि महाराज का मन्दिर आदि तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध है।

मुंशी शामत अली ने ठुकराई रिश्वत तब हुआ अमृत सागर का निर्माण – पं अभिषेक जोशी

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ज्योतिषाचार्य पं. अभिषेक जोशी ने रतलाम राज परिवार से जुड़ी इतिहास की रोचक घटना को साझा किया व बताया कि अमृत सागर तालाब का निर्माण किस प्रकार हुआ। पं. जोशी ने बताया कि महाराजा रणजीत सिंह के कार्यकाल में मुंशी शामत अली दरबार का लेखा जोखा रखते थे। किसी अपराधी द्वारा मुंशी शामत अली को रिश्वत के रूप में बहुत सारा धन उनके घर भिजवा दिया। जब वे शाम को घर आये तब पत्नी द्वारा उन्हें इसकी जानकारी मिली। उन्होंने तुरन्त इस धन को राजकोष में जमा करवा दिया।


जब महाराज रणजीत सिंह को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने मुंशी शामत अली से इसका कारण पूछा इस पर मुंशी जी ने कहा कि- “यह धनराशि अन्याय की है, रिश्वत के रूप में मेरे यहां आई है। यह पैसा अगर मैं अपने कार्य में लेता हूं तो मेरा परिवार पथ भ्रष्ट हो सकता है। इसलिए इसे रखना मेरे लिए उचित नहीं था तथा इसे प्रजा की भलाई में राजकोष में जमा करवाया।”

महाराजा रणजीत सिंह यह सुनकर हतप्रभ थे। महाराजा प्रजा के प्रति प्रेम रखते थे, इसलिए उन्होने विचार किया की इस राशि का उपयोग यदि प्रजा के लिए होगा तो इसका दुष्प्रभाव प्रजा पर भी होगा। अतः इस अन्याय की राशि का क्या जाये?


अन्ततः निर्णय हुआ की अमृत सागर तालाब की पाल बांधी जाए। सन 1864 से 1884 के मध्य इस कार्य को पूरा किया गया। तालाब का प्राचीन नाम ही अमृत सागर है इसके पीछे बताया जाता है की तालाब का जल निर्मल व अत्यंत मीठा हुआ करता था जिसको पी लेने से अमृत सेवन की अनुभूति होती थी।

तालाब पर उस समय हुई हैरतअंगेज आतिशबाजी, सोने व चांदी के जेवरों से सजा था स्वागत द्वार-

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पंडित जोशी ने तालाब से जुड़ी एक ओर घटना का वर्णन करते हुए बताया की रतलाम के तत्कालिक महाराजा सज्जन सिंह जी की बड़ी राजकुमारी साहिबा गुलाब कुंवर जी की शादी बूंदी राज्य के हाड़ा राजकुमार के साथ हुई। तब बारात के स्वागत के लिए चांदनी चौक में “स्वागत द्वार” बनाया गया। इसकी मुख्य विशेषता यह थी की इस द्वार की सजावट चांदी और सोने के जेवरो से की गई थी।

उस समय उल्लास व आनंद के माहौल में अमृत सागर तालाब के चारों ओर शामियाने (टेंट/तम्बू लगा कर शाम को ठहरने की व्यवस्था) लगा कर राजघराने के अतिथियों को वहाँ बुलाया गया व उनका सम्मान किया। तालाब की भव्यता उस समय बढ़ गयी जब तालाब के पानी पर आतिशबाजी की गई। उस विवाह में उस समय लगभग 9 लाख रुपयों का खर्च हुआ था।

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