पंजाब की राजनीति में इस बार रोचक होगें विधानसभा चुनाव, सूबे की सियासत रोमांचक दौर में

A+A-
Reset

कैप्टन अमरिंदर सिंह जिनकी वजह से कांग्रेस पंजाब में पिछले 3 दशकों से मजबूत रही, दो बार कैप्टन साहब की वजह से कांग्रेस की सरकार बनी

पंजाब की राजनीति में इस बार रोचक होगें विधानसभा चुनाव, सूबे की सियासत रोमांचक दौर में

सम्पादकीय/इंडियामिक्स आने वाले दो महीनों में देश के सेंसेटिव सीमावर्ती राज्य पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं. ये चुनाव इस बार कई मायने में महत्वपूर्ण हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह की बेअदबी के साथ हुई विदाई, नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का मुखिया बनाना, आम आदमी पार्टी की बढती हुई लोकप्रियता और शिरोमणि अकाली दल की चुनावी तैयारी व चन्नी सरकार द्वारा बादल परिवार की घेराबंदी, पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी की नियुक्ति और चन्नी के साथ सिद्धू की अप्रत्यक्ष व प्रत्यक्ष तकरार इस बार पंजाब के विधानसभा चुनाव को रोचक बनाने वाले प्रमुख घटक हैं. आगे हम इन सभी विषयों पर विस्तार से चर्चा करेंगे.

पंजाब की राजनीति में इस बार रोचक होगें विधानसभा चुनाव, सूबे की सियासत रोमांचक दौर में

कैप्टन अमरिंदर सिंह की बेअदबी के साथ रूखसती

कैप्टन अमरिंदर सिंह जिनकी वजह से कांग्रेस पंजाब में पिछले 3 दशकों से मजबूत रही, दो बार कैप्टन साहब की वजह से कांग्रेस की सरकार बनी, पिछला विधानसभा चुनाव जिसमें कांग्रेस को पंजाब विधानसभा चुनावों के इतिहास का सबसे बड़ा बहुमत मिला वो भी कैप्टन साहब की वजह से था. लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू के साथ उनकी बढती दूरियों ने उन्हें धीरे धीरे कांग्रेस आलाकमान से दूर किया जिसकी वजह से कैप्टन साहब कमजोर हुये. कैप्टन के कमजोर होने का फायदा नवजोत सिंह सिद्धू ने उठाया, उन्होंने वर्तमान में कांग्रेस में सभी बड़े फैसले ले रही प्रियंका गाँधी के साथ अपने रिश्ते मजबूत किये, तत्कालीन पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत की सहायता से कैप्टन के विरुद्ध आलाकमान के सामने मजबूत लोबिंग की और पंजाब के अधिकांश विधायकों को कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ लामबंद किया. नतीजतन किसी ज़माने में पंजाब कांग्रेस के केप्टन रहे केप्टन अमरिंदर सिंह की बेइज्जत रूखसती हुई. बेइज्जती ही वो कारण बना जिसकी वजह से पंजाब की सियासत में पंजाब लोक कांग्रेस नाम की नयी पार्टी का जन्म केप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में हुआ.

पंजाब की राजनीति में इस बार रोचक होगें विधानसभा चुनाव, सूबे की सियासत रोमांचक दौर में

पहले दलित CM के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी का आगमन

कैप्टन अमरिंदर सिंह की बिदाई के बाद पंजाब कांग्रेस के सामने अगला मुख्यमंत्री चुनने की चुनौती थी. पंजाब कांग्रेस के मुखिया बने नवजोत सिंह सिद्धू ताजपोशी की फिराक में थें लेकिन पंजाब कांग्रेस ने हिन्दू CM बनाने का दाव चला, पूर्व पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड के नाम की चर्चा चली लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी के के कारण सीनियर कांग्रेसी नेता अम्बिका सोनी का नाम आगे आया, सोनी ने पंजाब व पंजाबीयत की बात करते हुए किसी सिक्ख चेहरे को पंजाब सूबे का CM बनाने की बात कही, यही से पिक्चर में एंट्री हुई चरणजीत सिंह चन्नी की. राहुल गाँधी से अच्छे सम्बन्धों व दलित बिरादरी से आने के कारण कांग्रेस आलाकमान ने चरणजीत चन्नी के नाम पर मुहर लगा दी साथ ही एक जट्टसिक्ख व एक हिन्दू उपमुख्यमंत्री नियुक्त कर इस चुनाव का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक चल दिया. गौरतलब है की शिरोमणि अकाली दल (बादल) ने सरकार बनने पर एक दलित व एक हिन्दू उपमुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था तथा भाजपा ने सरकार बनने पर दलित बिरादरी से मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था

चरणजीत सिंह चन्नी ने मुख्यमंत्री बनने के साथ ही अपने निर्णयों और काम करने के तरीके के कारण छत्तीस कौम में अपनी पैठ कायम की. इन्होने ताबड़तोड़ निर्णय लिए और जनता से जुड़ने के लिए जनता की पसंद का तरीका चुना. जिसकी वजह से यह कैप्टन के नेतृत्व वाली सुस्त कांग्रेस सरकार को एक्सप्रेस के रूप में चला कर दिखाया नतीजतन पंजाब की आवाम को चन्नी पसंद आने लगे, जो की कई न्यूज चैनलों के सर्वे में जाहिर भी हुआ. हालाँकि चन्नी के सामने चुनौतिया बेतहाशा है. इन्हें पार्टी के अन्दर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, गृहमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा से तकरार व असहयोग का सामना करना पड़ रहा है. पंजाब  कांग्रेस में गुटबाजी इस कदर हावी है की सुनील जाखड के नेतृत्व व प्रदेश कांग्रेस प्रभारी हरीश चौधरी के ओब्जर्वेशन में बनी प्रचार कमेटी चंडीगढ़ व दिल्ली में दो राउंड की बैठक में कोई निर्णय नहीं ले पाई, आखिर में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को निर्णय लेने के लिए अधिकृत करना पड़ा. जब पार्टी के अंदर कुर्सी को लेकर सम्मान व शक्ति के नाम पर ऐसी लड़ाई हो तो चन्नी को मुश्किलें होना लाजमी है. 

पंजाब की राजनीति में इस बार रोचक होगें विधानसभा चुनाव, सूबे की सियासत रोमांचक दौर में

कैप्टन की पार्टी का जन्म व किसान आन्दोलन का अंत

कैप्टन अमरिंदर सिंह की नवगठित पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी पंजाब कांग्रेस के सामने एक घातक शमशीर के समान है साथ ही किसान आन्दोलन की समाप्ति के बाद चुनावी मैदान में खुल के उतर रही भाजपा इसे और धारदार बना रही हैं. पंजाब चूँकि कृषि प्रधान सूबा है इसलिए यहाँ किसानी व किसानों का वर्चस्व राजनितिक व सामाजिक रूप से है. यही कारण है की किसान आन्दोलन के समय भाजपा को किसान पंजाब के शहरों व गांवों में घुसने तक नहीं दे रहें थें विरोध का आलम ऐसा था की कई इलाकों में भाजपा नेताओं का केम्पेन के लिए निकलना दूभर था, कई जगहों से भाजपा नेताओं के साथ दुर्व्यवहार की ख़बरें भी आई थी. हालाँकि अब किसान आन्दोलन समाप्त हो गया है अतः भाजपा को कुछ इलाकों में राहत है लेकिन किसानों के बीच गुस्सा अब भी बरक़रार है. इस गुस्से को भाजपा केप्टन अमरिंदर सिंह व उनके चेहरे की सहायता से दूर कर सकती है, चूंकि केप्टन साहब का किसानों से लगाव रहा है, उन्होंने इस आन्दोलन को मुख्यमंत्री रहते हुये अपना पूरा सहयोग दिया है यही कारण है की पंजाब के किसान केप्टन अमरिंदर सिंह को पसंद करतें हैं. केप्टन अमरिंदर सिंह की सहायता से भाजपा ग्रामीण क्षेत्रों में खुद को मजबूत करेगी साथ ही शहरी क्षेत्र में उसकी मौजूदगी को केप्टन के साथ आने से और बल मिलेगा, यही कारण है की भाजपा ने केप्टन अमरिंदर सिंह को पंजाब में अपने साथ गठबंधन में लिया है. 

पंजाब की राजनीति में इस बार रोचक होगें विधानसभा चुनाव, सूबे की सियासत रोमांचक दौर में

कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब कांग्रेस को भी बड़ा नुकसान पहुचाएंगे, लगभग एक दर्जन छोटे बड़े कांग्रेसी नेता पंजाब लोक कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं, विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने के बाद इनकी संख्या तेजी से बढ़ सकती है, चन्नी सरकार के कई मंत्री व कुछ कद्दावर कांग्रेस नेता पंजाब लोक कांग्रेस में शामिल हो सकतें हैं. गुटबाजी व नवजोत सिंह सिद्धू के दिशाहीन नेतृत्व के कारण पहले से कमजोर कांग्रेस को राजनीति के अनुभवी केप्टन आसानी से तोड़ सकतें हैं. अगर शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ पंजाब लोक कांग्रेस तथा भाजपा का गठबंधन हो जाता है तो लड़ाई और रोचक हो जायेगी. ऐसे में पंजाब में पंजाब लोक कांग्रेस के जन्म तथा किसान आन्दोलन के अंत ने चुनाव को राजनीति के रसिकों के लिए दर्शनीय बना दिया है.

पंजाब की राजनीति में इस बार रोचक होगें विधानसभा चुनाव, सूबे की सियासत रोमांचक दौर में

सूबे में चल निकला बेअदबी का सिलसिला

गुरूग्रन्थ साहीब या किसी अन्य सिक्ख धर्म के प्रतीक चिन्ह के साथ बेअदबी पंजाब में वर्षों से सदा ही संवेदनशील मुद्ददा रहा है, इसी मुद्दे पर 2017 में 10 वर्षों से सत्ता में रहे भाजपा तथा शिरोमणि अकाली दल (बादल) गठबंधन को मुंह की खानी पड़ी थी. इस बार भी सूबे में बेअदबी का सिलसिला चल पड़ा है, स्वर्ण मंदिर अमृतसर तथा कपूरथला में हुई बेअदबी की घटना पंजाब के साथ देश भर में चर्चा का विषय रही है. इन दोनों घटनाओं में संदेही को भीड़ ने न्याय करते हुए मार डाला. चुनाव के समय में पंजाब में ऐसा होना निश्चित ही चिंता का सबब है, यही कारण है की केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने इन घटनाओं को लेकर पंजाब सरकार को निगरानी का अलर्ट दिया है. मात्र सिक्ख धार्मिक स्थलों पर बेअदबी की घटनाये देखने को नहीं मिल रही है बल्कि हिन्दू धार्मिक स्थलों में भी बेअदबी की घटनाये सामने आ रही है, लुधियाना के कृष्ण मंदिर में देव विग्रह व धार्मिक पुस्तकों के साथ बेअदबी का मामला नेशनल मीडया की सुर्ख़ियों में रहा. 

गुरूघरों तथा देवस्थलों में हो रही घटनाएँ पंजाब जैसे सीमावर्ती व राजनितिक तथा सामाजिक रूप से संवेदनशील राज्य के लिए ठीक नहीं हैं. सूबे में स्थिरता के लिए हिन्दू व सिक्ख भाईचारे के बीच एकता का होना जरूरी है. बेअदबी की घटनाओं को केंद्र व राज्य की एजेंसियों के द्वारा अगर समय पर रोका नहीं गया तो इसका असर हमें सूबे में अशांति के रूप में दिखाई देगा, जो की दोनों सरकारों की सहकारी विफलता होगी. सूबे में बहुसंख्यक सिक्ख पंथ बेअदबी के मसले पर संवेदनशील होता है, यहाँ के राजनितिक व सामाजिक स्ट्रक्चर में गुरूघरों तथा डेरों का बड़ा महत्व हैं ऐसे में चुनावों में जो पार्टी इस विषय पर जनता को अपने साथ ले पायेगी वो चुनाव में निश्चित रूप से आगे रहेगी. यही कारण है की भाजपा, पंजाब लोक कांग्रेस, कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (बादल) तथा आप के नेता इस विषय पर मुखर है, लेकिन किसी के पास ऐसा प्लान नहीं है जो पंजाब की आवाम को यह एन्स्योर कर सकें की आगे से बेअदबी की घटनाये नहीं होगी, ऐसे मामलों में न्याय शीघ्र होगा तथा सजा और कड़ी की जायेगी. ऐसी घटनाओं में न्याय देरी से मिलना लोगों को बीच आक्रोश का कारण बनता है जिसके फलस्वरूप हमें कपूरथला लिंचिंग जैसी घटनाएँ देखने को मिलती हैं.

पंजाब की राजनीति में इस बार रोचक होगें विधानसभा चुनाव, सूबे की सियासत रोमांचक दौर में

अरविन्द केजरीवाल का “ग्यारंटी केम्पेन”

2014 के लोकसभा चुनाव में सूबे में आप जैसे एकायेक उठी थी उसे देख कर लगा था की राज्य की राजनीति में एक राजनितिक विकल्प का उदय हुआ है, 2017 के विधानसभा चुनाव में भी आप ने मौजूदगी दर्ज की शिरोमणि अकाली दल (बादल) व भाजपा के गठबंधन को पीछे छोड़ विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में यह पार्टी अपने आप को संभाल नहीं सकी और मुंह के बल गिरी, पंजाब आप के मुखिया भगवंत मान अकेले ही लोकसभा पंहुच पायें. आप सूबे में शुरू से ही अरविन्द केजरीवाल के चेहरे पर कायम रही है, इस बार पार्टी के कार्यकर्ता पंजाब आप के मुखिया भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की मांग कर रहें हैं लेकिन आप सुप्रीमों इसके लिए राजी नहीं हैं. खुद पंजाब में केम्पेन की अगुआई कर रहें हैं. यहीं कारण हैं की आजकल अरविन्द केजरीवाल को अक्सर चंडीगढ़, अमृतसर, लुधियाना, जालन्धर में देखा जाता हैं. 

पूरे पंजाब में अरविन्द केजरीवाल द्वारा चलाये जा रहें “ग्यारंटी केम्पेन” का असर हो रहा है, केजरीवाल पंजाब के प्रमुख शहरों में जाकर सभाएं कर रहें हैं,  प्रभावशाली लोगों तथा समूहों से मिल रहे हैं तथा पंजाब के लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार आदि से सम्बंधित ग्यारंटी दे रहें हैं. इसके साथ ही पूरी आम आदमी पार्टी पंजाब में एक्टिव है, दिल्ली सरकार के शिक्षा व स्वास्थ्य मंत्री पंजाब के दौरे पर आ रहें हैं  तथा पंजाब सरकार की विफलताओं को सरेआम कर रहें हैं. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के विधानसभा क्षेत्र में आप नेता सरकारी स्कूलों व अस्पतालों का निरिक्षण करतें हुए देखे जा रहें हैं. दोनों सरकारों के समकक्ष मंत्रियों के बीच मिडिया और सोशल मिडिया पर जुबानी जंग भी देखी जा रही है. अरविन्द केजरीवाल के “ग्यारंटी केम्पेन” तथा आप नेताओं के एग्रेसिव एटीट्युड के कारण पंजाब में आप पुनः असरदार होती दिखाई दे रही है.

पंजाब की राजनीति में इस बार रोचक होगें विधानसभा चुनाव, सूबे की सियासत रोमांचक दौर में

बादल परिवार पर CM चन्नी का शिकंजा 

लगभग 5 दशकों से पंजाब की राजनीति में प्रभाव रखने वाले बादल परिवार के इर्दगिर्द पंजाब का विधानसभा चुनाव लगभग हर बार घूमफिर के आ जाता है. पिछले विधानसभा चुनाव में बेअदबी व ड्रग्स में मामले में बादल परिवार के खिलाफ हर विपक्षी पार्टी मुखर रही. कैप्टन अमरिंदर सिंह की नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा की गई मुखालफत व उनकी विदाई का कारण इनदोनों मुद्दों का निपटारा नहीं करना व बादल परिवार के खिलाफ ढिलाई रहा. नये मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की नियुक्ति के साथ ही बादल परिवार के विरुद्ध कार्यवाही शुरू हो गई, परिवहन विभागों द्वारा बादल परिवार की बसों पर की गई कार्यवाही से शुरू हुआ सिलसिला ड्रग्स केस में शिरोमणि अकाली दल (बादल) के मुखिया सुखबीर बादल के साले व पार्टी के मुख्य सिपहसलार विक्रम सिंह मजीठिया के विरुद्ध मामला दर्ज करने पर जा के साथ ही बेअदबी केस में भी सरकार ने अपनी जांच तेज कर दी है. चन्नी सरकार ने जिस तरह से बादल परिवार की घेराबंदी की है उससे उनकी लोकप्रियता तो बढ़ी ही है साथ ही शिरोमणि अकाली दल (बादल) को भी बल मिला है, बादल परिवार पर सीधे आक्रमण होने के कारण अकाली कार्यकर्ता एकजुट हो रहें हैं. इससे पंजाब के चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (बादल) तथा उनके गठबंधन के साथी बसपा पर चुनावी दबाव भी बढ़ रहा हैं.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है पंजाब के इसबार के विधानसभा चुनाव रोचक होने वाले हैं. शिरोमणि अकाली दल (बादल), कांग्रेस तथा आप के बाद अब पंजाब लोक कांग्रेस तथा भाजपा के पंजाब राजनितिक पिक्चर में आने के कारण आने वाले दिनों में यहाँ की राजनितिक फिजाओं की गर्माहट बढ़ने की संभावना हैं.

Rating
5/5

ये खबरे भी देखे

 

इंडिया मिक्स मीडिया नेटवर्क २०१८ से अपने वेब पोर्टल (www.indiamix.in )  के माध्यम से अपने पाठको तक प्रदेश के साथ देश दुनिया की खबरे पहुंचा रहा है. आगे भी आपके विश्वास के साथ आपकी सेवा करते रहेंगे

Registration 

RNI : MPHIN/2021/79988

MSME : UDYAM-MP-37-0000684

मुकेश धभाई

संपादक, इंडियामिक्स मीडिया नेटवर्क संपर्क : +91-8989821010

©2018-2023 IndiaMIX Media Network. All Right Reserved. Designed and Developed by Mukesh Dhabhai

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00