
न्यूज़ डेस्क/इंडियामिक्स हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में 30 जून और 1 जुलाई को जो जलप्रलय टूटा, उसने न केवल सड़कों, घरों और पुलों को बहा दिया, बल्कि सत्ता और जनप्रतिनिधियों के ज़मीर को भी बहते हुए उजागर कर दिया। जब सराज घाटी, थुनाग और जंजैहली जैसे क्षेत्र बाढ़ और भूस्खलन से जूझ रहे थे, तब इस समूचे संकट पर जो नाम सबसे ज़्यादा गूंज रहा था, वह मंडी की सांसद कंगना रनौत का था। गूंज इसलिए नहीं कि वह वहां थीं, बल्कि इसलिए कि वह वहां नहीं थीं। कंगना रनौत के नदारद रहने से पैदा हुए राजनीतिक और नैतिक सवाल अब भाजपा के भीतर से उठने लगे हैं। यह पहली बार नहीं है जब कंगना किसी संकट के समय अपने क्षेत्र से दूर रही हों। वर्ष 2023 में जब मंडी में बादल फटे थे और बड़ी संख्या में लोग बेघर हुए थे, तब भी यही आरोप लगे थे कि सांसद का क्षेत्र से संवाद बेहद सीमित है। दो वर्ष बाद वही त्रासदी, वही सवाल और वही चुप्पी फिर से लौट आई है, लेकिन इस बार विरोध का स्वर अंदरूनी गलियारों तक जा पहुंचा है।
पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जब पत्रकारों से यह कह दिया कि “हम अपने लोगों के साथ जीने-मरने तक खड़े हैं, जिनका कन्सर्न नहीं है, उनके बारे में टिप्पणी नहीं करेंगे”, तो यह बयान उतना ही तीखा था जितना सटीक। यह एक वरिष्ठ नेता की व्यथा थी, जो भाजपा के अंदर ही अपनी सांसद के व्यवहार से असहज था। जयराम ठाकुर वही नेता हैं जिनकी सराज विधानसभा सीट मंडी संसदीय क्षेत्र में आती है, और जिनका दशकों से उस इलाके में मजबूत जनाधार है। ऐसे में जब क्षेत्र जलमग्न हो और सांसद मुंबई में ट्रेलर लॉन्च में व्यस्त दिखें, तो यह विरोध स्वाभाविक था। राजनीति में जब जनप्रतिनिधि संवेदनहीनता की हदें पार करते हैं, तब सबसे पहले उनके अपने लोग ही सवाल उठाते हैं।कंगना ने इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर सफाई दी कि उन्हें जयराम ठाकुर ने ही वहां ना आने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा कि जब तक संपर्क मार्ग और प्रशासनिक इजाजत नहीं मिल जाती, तब तक वहां जाना व्यावहारिक नहीं था। लेकिन सवाल यह नहीं था कि वह कब पहुंचेंगी सवाल यह था कि वह अभी तक क्यों नहीं पहुंचीं और संकट की घड़ी में क्या उन्होंने लगातार संवाद बनाकर जनता को भरोसा दिलाया? जवाब में उन्होंने अपनी गाड़ी पर गिरी चट्टानों की तस्वीरें दिखाकर खुद को पीड़ित साबित करने की कोशिश की, लेकिन क्या सांसद का काम आत्मरक्षा है या नेतृत्व?
कंगना रनौत शायद ये भूल गईं कि सांसद होने का अर्थ सिर्फ संसद में भाषण देना नहीं, बल्कि संकट की घड़ी में जनता के बीच खड़े रहना है। भले ही सड़कें टूटी हों, लेकिन क्या एक ट्वीट, एक लाइव वीडियो, या स्थानीय प्रशासन से लगातार संपर्क और लोगों की मदद के लिए कोष जुटाना उनके लिए संभव नहीं था? सोशल मीडिया पर हल्के-फुल्के तंज और मजाकिया पोस्ट डालकर उन्होंने न सिर्फ जनता की पीड़ा को हल्के में लिया, बल्कि अपने संवैधानिक दायित्वों की अवहेलना भी की।भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को आखिरकार हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने बिलासपुर में मीडिया से कहा कि “कंगना जल्दी आएंगी। ऐसा कुछ नहीं है।” यह बयान जितना डिफेंसिव था, उतना ही असहज भी। भाजपा नेतृत्व को यह भलीभांति समझ में आ गया है कि मंडी की जनता अब प्रतीकात्मकता से संतुष्ट नहीं है। कंगना को टिकट देकर पार्टी ने भले ही एक ग्लैमरस चेहरा मंडी को दिया हो, लेकिन जनसंवाद, ज़मीन से जुड़ाव और निरंतर उपस्थिति वही पुरानी कसौटी है, जिस पर हर जनप्रतिनिधि को परखा जाता है। यहां यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या भाजपा कंगना रनौत को लेकर अब पश्चाताप की स्थिति में है?
जयराम ठाकुर की खामोशी और नाराजगी इसी ओर इशारा करती है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता भी अब “सेलिब्रिटी सांसद मॉडल” से परेशान हैं। जयराम जैसे नेता, जो हर विपत्ति में जनता के बीच खड़े होते हैं, उन्हें यह नागवार गुजरता है कि पार्टी का प्रतिनिधित्व कोई ऐसा व्यक्ति करे जो सियासत को ग्लैमर शो समझे। यही वजह है कि जयराम ने कंगना के जवाब में दोबारा कहा कि “कुछ लोग अनावश्यक भ्रम फैला रहे हैं, यह समय राजनीति का नहीं, सेवा का है।” लेकिन भाजपा के लिए यह वक्त सेवा के साथ-साथ आत्मनिरीक्षण का भी है।यह मामला सिर्फ मंडी या हिमाचल का नहीं, बल्कि पूरे देश की उस प्रवृत्ति का प्रतीक है, जिसमें राजनीतिक दल प्रभाव, चेहरा और प्रचार के आधार पर टिकट बांटते हैं। लेकिन जब असली संकट आता है तो वही चेहरे गायब हो जाते हैं। एक सांसद होने का मतलब सिर्फ संसद में उपस्थित रहना नहीं, बल्कि जनता की हर पीड़ा में भागीदारी निभाना है। जनता का भरोसा सस्ती बयानबाज़ी और ट्वीट्स से नहीं, बल्कि वास्तविक उपस्थिति और संवेदनशीलता से बनता है।
अब जब सोशल मीडिया से लेकर ज़मीनी राजनीति तक कंगना की आलोचना हो रही है, तो यह उनके लिए आत्ममंथन का समय है। क्या वह सिर्फ एक फिल्म स्टार हैं या सच में जनप्रतिनिधि? यह सवाल मंडी की जनता के साथ-साथ खुद भाजपा के लिए भी निर्णायक हो सकता है। आने वाले चुनावों में यह मुद्दा सिर्फ व्यक्तिगत आलोचना नहीं रहेगा, बल्कि यह पार्टी की नीतियों और उम्मीदवारों के चयन पर भी असर डालेगा।जनता देख रही है कि आपदा की घड़ी में कौन उनके साथ खड़ा है और कौन की बोर्ड से संवेदना प्रकट कर रहा है। संकट के समय जनप्रतिनिधि की परीक्षा होती है, और मंडी की इस त्रासदी ने कंगना को कठघरे में खड़ा कर दिया है। अब यदि उन्होंने तत्काल कदम नहीं उठाए और ज़मीनी स्तर पर राहत और पुनर्वास में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई, तो यह मामला केवल सोशल मीडिया की आलोचना नहीं रहेगा यह राजनीतिक जवाबदेही का बड़ा सवाल बन जाएगा।