राजस्थान की राजधानी जयपुर की एक प्रमुख निशानी अल्बर्ट हॉल म्यूजियम के पीछे दादूपंथी संतो का आश्रम, ठिकाना था. राजा सवाई रामसिंह द्वितीय द्वारा बनवाई गई दादूपंथी संतों की छतरियां हैं आज भी मौजूद

जयपुर – रामनिवास बाग में अल्बर्ट हॉल के पीछे का सारा इलाका कभी दादूपंथी संतों की तपस्या स्थली था। बागबनने के पहले यह इलाका रतिराम जी का बाग कह लाता था। म्यूजियम के पीछे आज भी दादू संत रति राम जी और राम रतन जी महाराज की समाधि पर छतरी बनी हुई है। सवाई रामसिंह द्वितीय ने इस बात का निर्माण करवाया था दादूपंथी संतो के आश्रमों की जमीन का अधिग्रहण कर बदले में मुआवजा भी दिया गया संत रतिराम की समाधि पहले बड़े आकार की थी बाग निर्माण के समय उसको छोटा कर दिया गया।गुरु राम रतन के 8 साल बाद उनके शिष्य रतिराम जी महाराज ब्रह्मलीन हुए थे।
संवत1812 मैं रतिराम जी के शिष्य किशोर दास जी बी इस बार में रहकर तपस्या करते थे। उन्होंने संत दादू दयाल जी पर एक नाटक भी लिखा,जो उनके ब्रह्मलीन होने के कारण पूरा नहीं हो सका।
केशवदास के शिष्य मोतीराम के समय में ही रतीराम के बाद को रामनिवास बाग में मिला दिया गया। रामरतन के 1 सीसी बुद्ध राम के शिष्य ज्ञान दास चंदन दास भी हुए । इस समाधि की चरण चौकी पर संवत 1914 जेष्ठ शुक्ल पंचमी गुरुवार को स्थापित होने का शिलालेख है।सवाई राम सिंह के शासन में रतिराम के इस बाग में नारायण पीठ के संत श्री चतुर्मास करने के लिए आते थे।
रामनिवास बाग सन 1868 मैं अकाल के समय निर्धन लोगों को रोजगार देने के लिए बनाया गया था। स्कूल ऑफ आर्ट्स के प्राचार्य मेजर फावेट ने इसका नक्शा बनाया तब उनकी योजना में साधु संतों का आश्रम भी आ गया था।बाद में संत चंदन दास आदि संतों ने मोती डूंगरी रोड पर आश्रम कायम किए। कुआं, महल भी उन्होंने बनवाई। जयपुर राजघराने से जुड़े बहादुर सिंह तंवर ने बताया वर्तमान में सेंट्रल जेल से रामनिवास बाग तक बहुत सारी बगीचीया थी।
इसमें ज्यादातर संतो के आश्रम रहे। संत महात्मा एकांत में रहकर तपस्या करते रहते। रामनिवास बाग चिड़ियाघर से खरबूजा मंडी, मोती डूंगरी रोड पर आज भी पता तो बालों की बगीची बनी हुई है।बदलते दौर में कई बाग बगीचे अब खत्म हो चुके हैं। संतों की बगीची होने के कारण रामनिवास बाग को बसाने में थोड़ी परेशानी हुई। राम सिंह के समय इस बार में बड़े जागीरदार सेठ और आत्मा को भी भ्रमण करने की इजाजत थी। इसके लिए सिटी पैलेस के मुबारक मेल्स से पास जारी होते। मां का पहला नक्शा भी बना जो काफी विचार-विमर्श के बाद निरसत कर दिया गया।बाद में मुगलों की चारबाग पद्धति इंग्लैंड के पार्क और अन्य पाठकों का अध्ययन करने के बाद अलग से ऐसा नक्शा बनाया गया, जिसमें बाघ निर्माण की कई विधाओं को शामिल किया गया। महाराजा माधव सिंह के जमाने में तीज त्योहार आदि खास अवसरों पर ही आम जनता को बाग में आने की इजाजत दी गई। सर मिर्जा इस्माइल ने बाप को सही करवाया था।उन्होंने लोहे के एंगल की चारदीवारी बनवाई और शेयर करने वालों का समय निर्धारित कर दिया था