कोरोना का टीका : दुनिया में भारत का बढाया मान लेकिन अपने देश में हो रहा बदनाम, राजनीति और टीकों के विरुद्ध प्रोपेगेंडा भारत के प्रयास को कमतर आंकने की कोशिस

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स्वदेशी कोरोना का टीका विकसित कर भारत ने न सिर्फ अपना वरन तीसरी दुनिया के अन्य साथी मुल्कों जैसे पाकिस्तान आदि को बुरे दौर से उबारने में की मदद लेकिन अपने देश में मजाक का विषय बनता जा रहा. विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण को लेकर की जा रही राजनीति व मजाक तथा भ्रामक प्रचार भारत को बदनाम कर रहा है.

कोरोना का टीका : दुनिया में भारत का बढाया मान लेकिन अपने देश में हो रहा बदनाम, राजनीति और टीकों के विरुद्ध प्रोपेगेंडा भारत के प्रयास को कमतर आंकने की कोशिस
कोरोना का टीका : दुनिया में भारत का बढाया मान लेकिन अपने देश में हो रहा बदनाम, राजनीति और टीकों के विरुद्ध प्रोपेगेंडा भारत के प्रयास को कमतर आंकने की कोशिस 3

सन 2020 भारत के साथ पूरी दुनिया के लिए एक ऐसा साल रहा जो किसी भयानक सपने से कम नहीं था, कोरोना के नाम में आई यह महामारी ऐसी आपदा थी जो सदियों में एक बार आती है. पिछले साल फ़रवरी में जब भारत में इस महामारी ने घोषित रूप से प्रवेश किया था तब भारत के बुद्धिजीवियों व विशेषज्ञों के साथ कई विदेशी हस्तियों ने भी यह अनुमान लगाया था की भारत को इस महामारी से जानोमाल का बड़ा नुकसान होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. हालाँकि इनके अनुमान का आधार कमजोर नहीं था, उस समय भारत में कोरोना से सुरक्षा में सार्वाधिक उपयोगी मास्क, PPE कीट आदि को विदेश विशेषकर चीन से आयात किया जाता था. हमारे अधिकतम राज्यों की स्वास्थ्य व्यवस्था को लचर माना जाता था. हालाँकि ऐसा नहीं हुआ, भारत में यह महामारी उस विकराल रूप में नहीं दिखी, जिसका मुख्य कारण आपदा का उचित प्रबंधन, हमारे कोरोना वारियर्स, चिकित्सा कर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर्स, सफाई कर्मियों तथा विभिन्न सरकारी कर्मियों द्वारा की निस्वार्थ सेवा रही.

भारत सरकार के साथ विभिन्न राज्य सरकारों जैसे राजस्थान, मप्र, उप्र, केरल, बिहार आदि ने बहुत अच्छा काम किया, मोदी सरकार से इस विषय पर कुछ मतभेदों के बीच भी केद्रीय व राज्य स्तरीय सरकारी तंत्रों ने बेहतर तालमेल से काम किया. स्वास्थ्य महकमे की बेहतरी इस आपदा के बीच पुरे देश में तेजी से देखने को मिली. प्रधानमंत्री ने आपदा के पहले दिन से विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत तक कोरोना से जुड़े हर निर्णय व इवेंट पर अपनी सीधी नजर रखी, जिसे देश के साथ दुनिया ने देखा. विश्व के सबसे लम्बे व सफल लॉकडाउन के साथ पुरे नियंत्रण के साथ देश को सफल अनलॉक करना, कोरोना के संक्रमण को नियंत्रित रखना, विश्व में सबसे कम मृत्युदर को बरकरार रखना, कोरोना परीक्षण के लिए तेजी से संसाधन विकसित करना  प्रधानमंत्री के नेतृत्व में देश की बड़ी उपलब्धि रही. प्रधानमंत्री ने PM केयर फंड के माध्यम से देश में वेंटीलेटर व वेक्सीन ( टीका ) की व्यवस्था करने का सफल प्रयास किया. कोरोना काल में भारत सरकार ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का निर्णय लिया, जिसकी वजह से आज हमारे पास हमारी जरूरतों के अनुसार दो देशी टीके हैं, हम अब मास्क, सेनेटाईजर, PPE किट तथा कोरोना में कारगर विभिन्न जीवन रक्षक दवाओं के प्रमुख निर्यातकों में से एक हैं. हमने कोरोना का देश के विभिन्न विकसित देश जैसे अमरीका, इटली, ब्रिटेन आदि से बेहतर प्रबंध किया तथा अपनी जरूरत के अनुरूप अपना टीका विकसित करने में सक्षम रहें, जो की हमारे लिए गर्व का विषय है, लेकिन हम देश में टीकों को लेकर भ्रामक प्रचार तथा राजनीति के शिकार हो रहें हैं जो कि दुखद हैं. 

देश में कोरोना के टीके को लेकर 4 बड़े कार्यक्रम चल रहें थें, जिनपर प्रधानमंत्री मोदी की सीधी नजर थी, प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत हमारे वैज्ञानिकों तथा चिकित्साशास्त्रियों ने  उत्साहपूर्वक कड़ी मेहनत से काम किया, यही कारण रहा की DGCI ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्रोजेनेका द्वारा विकसित व भारत में बन रहे “कोविशील्ड” तथा हैदराबाद की कम्पनी भारत बायोटेक एवं देश में कोरोना के विरुद्ध युद्ध के सेनापति के रूप में काम कर रही सरकारी संस्था ICMR द्वारा विकसित किये गए “को-वेक्सीन” नामक 2 टीकों के आपात उपयोग की अनुमति दी. इनके अलावा अहमदाबाद की कंपनी जायड्स केंडीला तथा रेड्डीज लैब द्वारा रुसी टीके “स्पुतनिक” के क्लिनिकल ट्रायल जारी है. हमने जैसे ही दो देशी व एक पूर्ण स्वदेशी टीके को विकसित किया, देश व विश्व के मिडिया में इस बात को लेकर बहस प्रारम्भ हुई, यह बहस बड़े पैमाने पर भारत की प्रशंसा कर रही थी लेकिन अपने देश में ही इस अतुलनीय उपलब्धी पर जो नकारात्मक राजनीति, बहस हो रही है वो वस्तुतः हमारे वैज्ञानिकों तथा चिकित्साशास्त्रीयों के श्रम का अपमान हैं.

भारत के देशी टीका विकसित कर लेने से जहाँ एक ओर दुनिया दंग हैं वही भारत में इसको लेकर राजनीति हो रही है, इनके विरुद्ध भ्रामक प्रचार हो रहा है. DGCI ने कोविशिल्ड व कोवेक्सीन नामक जिन दो टीकों को मंजूरी दी हैं उन्हें पर्याप्त क्लिनिकल ट्रायल के बाद अनुमति दी गई है, यह दोनों टीके भारत की जरूरतों के अनुकूल हैं, इनको सुरक्षित रखने के लिए अन्य टीकों जैसे फाइजर, मोडर्ना आदि की तरह -80 डिग्री तापमान के फ्रीजर की आवश्यकता नहीं हैं यह -8 डिग्री के तापमान तक सुरक्षित रहने में सक्षम है, जो की भारत की लोजिस्टिक तथा भंडारण क्षमताओं के अनुकूल हैं, साथ ही इनकी एफिसिएंसी भी प्रमुख टीकों फाइजर व मोडर्ना के समकक्ष ही हैं जबकि चीन व रूस द्वारा विकसित किये गए टीकों से बेहतर है, विश्व में विकसित अन्य टीकों की अपेक्षा सस्तें हैं, यह किसी देश में विकसित हुए विश्व के सबसे सस्ते कोरोना टीकें हैं  यही कारण हैं अधिकांश विकाशशील देश इन टीकों में रूची दिखा रहें हैं. लेकिन फिर भी देश का एक बड़ा वर्ग इन टीकों के विरोध में भ्रामक प्रचार कर रहा है तथा विपक्षी दल राजनीति कर रहें हैं. 

कोरोना का टीका : दुनिया में भारत का बढाया मान लेकिन अपने देश में हो रहा बदनाम, राजनीति और टीकों के विरुद्ध प्रोपेगेंडा भारत के प्रयास को कमतर आंकने की कोशिस
फाइजर के टीके में समर्थन में एक सीनियर पत्रकार के ट्वीट व इससे नार्वे में हुई मौतों का समाचार

हमारे यहाँ कोविशील्ड की वजाय  को-वेक्सिन का अधिक विरोध देखने को मिल रहा है, जबकि यह भी कोविशील्ड के समकक्ष सभी चिकित्सकीय मानकों पर खरा उतरा है तथा पूर्णतः स्वदेशी हैं. इसको विभिन्न राजनितिक पार्टियाँ भाजपा का अथवा मोदी का टीका कह के प्रचारित कर रही हैं. कुछ पत्रकारों व बुद्धिजीवियों का वर्ग भी इन पार्टियों को सपोर्ट कर रहा है, कई इंटेलेक्चुअल सेलिब्रेटी तो खुले तौर पर अमरीका के टीके फाइजर के प्रयोग की अनुमति भारत सरकार द्वारा नहीं देने पर सरकार को कोस रहें हैं तथा देश के सफल प्रयास पर प्रश्न खड़े कर रहे हैं जबकि कोरोना के विश्व में विकसित सभी टीकों में फाइजर पर ही सबसे अधिक सवाल खड़े हो रहें हैं, इसके दुष्परिणाम ऐसे है की नार्वे में 23 लोगों की इसने जान ले ली. हमारे यहाँ कई वर्ग ऐसे भी है जो कोरोना के टीकाकरण को लेकर विभिन्न प्रकार के भ्रम फैला रहें हैं. कोई कह रहा है की यह टीकाकरण मानवों की प्रजनन क्षमता कम करने का प्रयास है, कोई इसे विभिन्न साजिशों से जोड़ के देख रहा है, कुछ धर्म गुरू टीकाकरण को अपने मजहब के विपरीत बता लोगों को गुमराह कर रहें हैं तो कोई यह कह रहा है की अब जब महामारी समाप्ति की और है तो टीकाकरण की क्या आवश्यकता ? राजनीति व टीकाकरण को लेकर किये जा रहें इन भ्रामक प्रचारों की वजह से “विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान” की छवि धूमिल हो रही है व भारत की क्षमताओं पर प्रश्न खड़े हो रहें हैं जो की उचित नहीं है.

भारत में टीकाकरण के बाद जिन्होंने टीका लिया हैं उनमे से बहुत कम लोगों में टीके के साइड इफेक्ट देखने को मिल रहें हैं लेकिन ये विदेशों में अन्य टीकों के साइड इफेक्ट्स के मुकाबले कमतर है. यहाँ आम तौर और टीकाकरण के बाद सिरदर्द, चक्कर आना, सीने में भारीपन व पसीना आना जैसे समान्य लक्षण देखें जा रहें हैं. पिछले दो दिनों में दो लाख से अधिक लोगों का टीकाकरण किया गया है जिसमें 447 लोगों में हल्का रिएक्शन देखने को मिला जिसे अधिकतर विशेषज्ञ सामान्य बता रहें हैं. हालाँकि इस मामले में भी विरोधी विरोध के लिए आतुर दिखाई दे रहें हैं, यही कारण है की उप्र में कोरोना का टीका लगवाने के 2 दिन बाद एक व्यक्ति की मृत्यु को कोरोना के टीके की वजह से हुई मौत बता कर कुछ मिडिया संस्थानों तथा बुद्धिजीवियों द्वारा प्रचारित किया गया. भारतीय कोरोना टीकाकरण अभियान को कमजोर बताने के लिए कुछ भी करगुजरने वालों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का भी इंतज़ार नहीं किया जो उसकी मौत का कारण दिल का दौरा बता रही है. एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक होने के कारण मेरी और आपकी जिम्मेदारी है की हम अपनी सरकार, चिकित्साशास्त्रियों तथा वैज्ञानिकों पर विश्वास करें, देशी कोरोना टीके पर गर्व करें तथा राजनीति व भ्रम से बचें.

भारत में विकसित टीके भारतीयों के गर्व का विषय होने के साथ तीसरी दुनिया के देशों तथा विकासशील देशों के लिए कोरोना के विरुद्ध जारी युद्ध में एक अफोर्डेबल व आसान विकल्प के रूप में तेजी से लोकप्रिय हो रहें हैं. भारत में विकसित दोनों टीके अमरीकी टीकों फाइजर व मॉडर्ना से लगभग 10 गुना से कम सस्ते तथा लोजिस्टिक व स्टोरेज में भी किफायती है यही कारण है की पाकिस्तान ने भी कोविशील्ड के आपात उपयोग की अनुमति देने के साथ 12 लाख डोजेज की मांग की है. इसके अलावा ब्राजील ने 10 मिलियन, दक्षिण अफ्रीका ने 1.5 मिलियन, जापान ने 120 मिलियन, दक्षिण कोरिया ने 20 मिलियन, ऑस्ट्रेलिया ने 53.8 मिलियन, फिलिपिन्स ने 20 मिलियन, इंडोनेशिया ने 100 मिलियन, थाईलेंड ने 26 मिलियन नेपाल ने 12 मिलियन, भूटान ने 10 लाख, बांग्लादेश ने 30 मिलियन कोविशील्ड(ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रोजेनेका) के डोज की मांग की है, इनके अतिरिक्त  म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव तथा अफगानिस्तान भी कोविशील्ड की मांग कर रहें हैं. इनके अलावा दुनिया के ज्यादातर देश WHO तथा के गावी द्वारा तैयार किये गये “कोवैक्स-एलायंस” के माध्यम से भारत में विकसित टीकों का लाभ उठाएंगे. ऐसे में पुरी दुनिया के सामने “वैक्सीन पीलर” के रूप में खड़े हो रहे भारत में ही भारतीय टीकों की आलोचना व उन्हें कमतर बताना भारत को बदनाम करने के समान है. राजनीति व प्रोपेगेंडा करने वालों को कम से पूरी दुनिया के करोड़ो लोगों के जीवन से जुड़े इस मामले में हल्की बातें करने से बचना चाहिए, क्यूंकि जनता से सीधे जुड़े मामलों में राजनीति व प्रोपेगेंडा करने वालों को जनता जूती के नीचे रखती हैं. यह गर्व करने का विषय है गर्व करें, भारतीय टीके न सिर्फ भारत के काम आ रहें बल्कि कई गरीब व पिछड़े देशों की इस महामारी से लड़ने में मदद कर रहें हैं. धन्यवाद.

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