कन्नड़ भाषा विवाद और भारतीय तथा यूरोपीय भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव

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यह लेख लंबे समय से चली आ रही कन्नड़ भाषा विवाद पर बात करता है, लेख इस प्रश्न पर केन्द्रित है कि कन्नड़ संस्कृत से प्रभावित है या नहीं। यह यूरोप और भारत की विभिन्न भाषाओं पर संस्कृत के प्रभाव की भी चर्चा करता है।

कन्नड़ भाषा विवाद और भारतीय तथा यूरोपीय भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव
कन्नड़ भाषा विवाद और भारतीय तथा यूरोपीय भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव 2

स्वतंत्रता के बाद से भारत में भाषा एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। ऐसा ही एक विवाद जो अभी भी कर्नाटक और भारत के अन्य हिस्सों में चर्चा में है, वह है कन्नड़ भाषा का विवाद। कन्नड़ भाषा का विवाद इस प्रश्न के इर्द-गिर्द केन्द्रित है कि कन्नड़ संस्कृत से प्रभावित है या नहीं। दूसरी ओर, संस्कृत को दुनिया की सबसे पुरानी भाषा माना जाता है तथा इसका प्रभाव यूरोप और भारत की कई भाषाओं पर है, जो की भाषा वैज्ञानिकों द्वारा मान्य है। इस लेख में, हम कन्नड़ भाषा विवाद और विभिन्न भाषाओं पर संस्कृत के प्रभाव के बारे में बात करेंगे।

कन्नड़ भाषा विवाद:

कन्नड़ भाषा विवाद कर्नाटक में एक लंबे समय से चली आ रही बहस है, जिसे शुरू में प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक कुवेम्पु ने छेड़ा था। कुवेम्पु ने प्रस्तावित किया कि कन्नड़ को एक स्वतंत्र भाषा माना जाना चाहिए जो संस्कृत से उत्पन्न नहीं हुई है। उन्होंने तर्क दिया कि कन्नड़ का अपना अनूठा व्याकरण, शब्दावली और लिपि है जो इसे संस्कृत से अलग करती है। हालाँकि, इस दृष्टिकोण को विद्वानों के एक समूह द्वारा चुनौती मिली, जो मानते थे कि कन्नड़ संस्कृत से प्रभावित है।

जो विद्वान इस सिद्धांत का समर्थन करते हैं कि कन्नड़ संस्कृत से प्रभावित  है, उनका तर्क है कि कन्नड़ के व्याकरण, शब्दावली और लिपि पर संस्कृत के प्रभाव के स्पष्ट संकेत दिखाई देतें  हैं। वे यह भी बताते हैं कि कन्नड़ के कई शब्दों की जड़ें संस्कृत में हैं। विद्वानों के इस समूह का मानना ​​है कि कन्नड़ को संस्कृत की बहन भाषा माना जाना चाहिए।

दूसरी ओर, कुवेम्पु के विचार के समर्थकों का तर्क है कि कन्नड़ का अपना अनूठा इतिहास, संस्कृति और साहित्य है। उनका मानना ​​है कि कन्नड़ को एक स्वतंत्र भाषा माना जाना चाहिए जो किसी अन्य भाषा से उत्पन्न नहीं हुई है। वे यह भी बताते हैं कि कन्नड़ की एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा है जो कर्नाटक में संस्कृत के आगमन से पहले की है।

यूरोपीय भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव:

संस्कृत को दुनिया की सबसे पुरानी भाषा माना जाता है और इसका प्रभाव यूरोप की कई भाषाओं में देखा जा सकता है। माना जाता है कि इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार, जिसमें ग्रीक, लैटिन और अंग्रेजी जैसी भाषाएं शामिल हैं, प्रोटो-इंडो-यूरोपीय नामक एक सामान्य पूर्वज भाषा से विकसित हुई हैं। माना जाता है कि इस भाषा की उत्पत्ति उस क्षेत्र में हुई थी जो अब आधुनिक भारत और पाकिस्तान है।

यूरोपीय भाषाओं के कई शब्दों की जड़ें संस्कृत में हैं। उदाहरण के लिए, अंग्रेजी शब्द “mother” संस्कृत शब्द “मातृ” से लिया गया है और लैटिन शब्द”pater” (जिसका अर्थ है पिता) संस्कृत शब्द “पितृ” से लिया गया है। माना जाता है कि ग्रीक शब्द “nous”  (जिसका अर्थ है मन) भी संस्कृत से लिया गया हैं।

भारतीय भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव:

भारत में कई भाषाओं पर संस्कृत का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। यह साहित्य, कविता और दर्शन के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। भारतीय भाषाओं के कई शब्दों की जड़ें संस्कृत में हैं, और कई भारतीय भाषाओं का व्याकरण और वाक्य रचना संस्कृत पर आधारित हैं।

उदाहरण के लिए, कन्नड़ और अन्य द्रविड़ भाषाओं का व्याकरण संस्कृत से प्रभावित रहा है। कन्नड़ ने संस्कृत से कई शब्द उधार लिए हैं, लेकिन इसने अपनी अनूठी शब्दावली और व्याकरण भी विकसित किया है।

इसी प्रकार, हिंदी, बंगाली और अन्य इंडो-आर्यन भाषाओं का व्याकरण भी संस्कृत से प्रभावित रहा है। भारत के साहित्य और दर्शन पर भी संस्कृत का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। भारतीय साहित्य की कई रचनाएँ, जैसे वेद, पुराण,   रामायण और महाभारत आदि, संस्कृत में लिखी गई थीं।

निष्कर्ष:

भारत में भाषा को लेकर गाहे-बगाहे विवाद होता रहा है। कन्नड़ भाषा का विवाद भारत में भाषा को लेकर हुई विभिन्न बहसों का हिस्सा मात्र है। संस्कृत को दुनिया की सबसे पुरानी भाषा माना जाता है और इसका यूरोप और भारत की कई भाषाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि संस्कृत ने विभिन्न भारतीय भाषाओं को जन्म दिया है। 

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